ब्रुनेई, सिंगापुर भारत की ‘एक्ट ईस्ट’ नीति, हिंद-प्रशांत के लिए दृष्टिकोण में अहम भागीदार : मोदी
नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज ब्रुनेई और सिंगापुर की अपनी आगामी यात्रा को भारत की ‘एक्ट ईस्ट’ नीति और हिंद-प्रशांत क्षेत्र के दृष्टिकोण के लिए महत्वपूर्ण करार दिया है। इस यात्रा से न केवल इन दो देशों के साथ भारत की साझेदारी को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि वृहद आसियान क्षेत्र में भी भारत की उपस्थिति मजबूत होगी।
क्या है ब्रुनेई और सिंगापुर की यात्रा का महत्व
प्रधानमंत्री मोदी ने एक बयान में कहा कि ब्रुनेई और सिंगापुर के साथ भारत की साझेदारी को नई ऊंचाइयों तक ले जाने की दिशा में यह यात्रा महत्वपूर्ण है। ब्रुनेई के साथ यह भारत का पहला द्विपक्षीय दौरा है, जो विशेष महत्व रखता है। मोदी ने कहा, “हम अपने राजनयिक संबंधों के 40 वर्षों का जश्न मना रहे हैं और मैं सुल्तान हाजी हसनल बोलकिया और उनके शाही परिवार के अन्य सदस्यों के साथ महत्वपूर्ण बैठकें करने की प्रतीक्षा कर रहा हूँ।”
सिंगापुर के साथ साझेदारी की दिशा
ब्रुनेई से चार सितंबर को सिंगापुर के लिए रवाना होने से पहले, प्रधानमंत्री मोदी ने सिंगापुर में राष्ट्रपति थर्मन शनमुगरतनम, प्रधानमंत्री लॉरेंस वोंग, वरिष्ठ मंत्री ली सीन लूंग और सेवानिवृत्त वरिष्ठ मंत्री गोह चोक टोंग के साथ मुलाकात का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि वह सिंगापुर के व्यावसायिक समुदाय के नेताओं से भी मुलाकात करेंगे और उन्नत विनिर्माण, डिजिटलीकरण और सतत विकास के क्षेत्रों में साझेदारी को और गहरा करने के लिए चर्चा करेंगे।
प्रधानमंत्री मोदी ने बताया कि ब्रुनेई और सिंगापुर भारत की ‘एक्ट ईस्ट’ नीति और हिंद-प्रशांत क्षेत्र के दृष्टिकोण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि उनकी यात्रा से ब्रुनेई, सिंगापुर और आसियान क्षेत्र के साथ भारत की साझेदारी और मजबूत होगी। सिंगापुर दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों के संगठन आसियान में भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है और यह प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) का भी एक प्रमुख स्रोत है।
प्रधानमंत्री मोदी की इस यात्रा से भारत और ब्रुनेई के बीच द्विपक्षीय संबंधों को नए स्तर पर ले जाने की उम्मीद है, साथ ही सिंगापुर के साथ व्यापार, निवेश और तकनीकी साझेदारी को भी मजबूत किया जाएगा। यह यात्रा भारत की विदेश नीति के तहत महत्वपूर्ण रणनीतिक कदम मानी जा रही है, जो हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत की भूमिका को और महत्वपूर्ण बनाएगी।