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गोविषाण टीले के रहस्य को जानने के लिए कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज ने केंद्रीय पर्यटन राज्य मंत्री को पत्र भेजा

देहरादून । प्रदेश के पर्यटन, धर्मस्व एवं संस्कृति मंत्री सतपाल महाराज ने शनिवार को केंद्रीय पर्यटन राज्य मंत्री अजय भट्ट को पत्र प्रेषित कर गोविषाण टीले में उत्खनन कराए जाने को कहा है। प्रदेश के पर्यटन, धर्मस्व एवं संस्कृति मंत्री सतपाल महाराज ने शनिवार को केंद्रीय पर्यटन राज्य मंत्री अजय भट्ट को पत्र लिखकर काशीपुर स्थित गोविषाण टीले की ऐतिहासिकता व पुरातात्विक महत्व को देखते हुए यहां उत्खनन कराए जाने को कहा है।

पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने कहा कि देवभूमि उत्तराखंड उत्तर भारत में स्थित पर्यटन योग एवं आस्था का एक प्रमुख केंद्र है। उधम सिंह नगर की तराई में स्थित काशीपुर में नगर से आधे मील की दूरी गोविषाण टीला है। यह टीला अपने भीतर कई इतिहास समेटे हुए हैं। उन्होंने केंद्रीय पर्यटन मंत्री को लिखे पत्र में कहा कि काशीपुर को हर्षवर्धन के समय में “गोविषाण” के नाम से जाना जाता था।

इसी कालखंड के दौरान चीनी यात्री हेवनसांग एवं फाहियान यहां आए। हेवनसांग के अनुसार मादीपुर से 66 मील की दूरी पर एक ढाई मील ऊंचा गोलाकार स्थान है। कहा जाता है कि इस स्थान पर उद्यान, सरोवर एवं मछली कुण्ड थे। इनके इनके बीच ही दो मठ थे, जिसमें बौद्ध धर्मानुयायी रहते थे। जबकि नगर के बाहर एक बड़े मठ में 200 फुट ऊंचा अशोक का स्तूप था। इसके अलावा दो छोटे-छोटे स्तूप थे, जिनमें भगवान बुद्ध के नाख एवं बाल रखे गए थे। इन मठों में भगवान बुद्ध ने लोगों को धर्म उपदेश दिए थे।

पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने कहा कि काशीपुर स्थित गोविषाण टीले की ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्ता को देखते हुए यहां अति शीघ्र उत्खनन करवाया जाना चाहिए, जिससे मिट्टी में दबी यह विरासत विश्व के सामने उजागर हो सके। पर्यटन मंत्री ने कहा कि ऐतिहासिक, औद्योगिक और धार्मिक नगरी काशीपुर पर्यटन की दृष्टि से काफी समृद्ध है। काशीपुर के ऐतिहासिक गोविषाण टीले के पूर्व में हुए उत्खनन में छठी शताब्दी तक के अवशेष मिले हैं। भगवान बुद्ध की स्मृतियों के दृष्टिगत निश्चित रूप से यह स्थान बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए एक महत्वपूर्ण आस्था का केंद्र बन सकता है।

उन्होंने कहा कि पर्यटन विभाग द्वारा प्रस्तावित बुद्ध सर्किट में भी इस स्थान को शामिल किया गया है। इसलिए यदि इस ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक महत्व के स्थान पर उत्खनन करवाया जाए तो भगवान बुद्ध से जुड़े अनेक विषयों कि हमें जानकारी मिल सकती है। इतना ही नहीं बौद्ध सर्किट विकसित करने के लिए हमें कई बुद्धिस्त देशों का भी सहयोग मिल सकता है।

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