उत्तर प्रदेशराज्यलखनऊ

गरीबों को हर संभव मदद पहुँचाने की मुहिम रहेगी जारी: हर्षित राज

प्रवासी मज़दूरों व गरीबों को बांटे लंच पैकेट

बाराबंकी (भावना शुक्ला): “वो जिनके हाथ में हर वक्त छाले रहते हैं, आबाद उन्हीं के दम पर महल वाले रहते हैं।” आज अगर हम पैसों के दम पर बड़े-बड़े मकान बना कर उसमें रहते हैं, तो उस मकान की नींव से लेकर पूर्ण करने तक का समस्त कार्य जिसकी मेहनत से पूरा हो पाता है वो एक गरीब मज़दूर होता है। यूँ तो हम चंद पैसे फेंक कर दुकानों से अनाज खरीद लाते हैं पर क्या कभी किसी ने सोचा है कि उस अनाज को पैदा करने के पीछे वो गरीब किसान ही होता है जो दिन-रात अपना खून-पसीना लगाकर उस अनाज को पैदा कर दुकानों तक पहुँचाता है। ऐसे में आज अगर हमारे यही गरीब भाई भूखे सो जाये तो इससे ज़्यादा शर्म की बात हमारे लिये और कोई हो ही नहीं सकती।

उक्त बात बीते मंगलवार को ज्येष्ठ माह के चौथे व अन्तिम बड़े मंगल पर समाजसेवी हर्षित राजकुमार ने अपने साथियों के साथ लगभग 5000 लंच पैकेट, 2000 बूंदी के पैकेट, बच्चों के लिये 500 ओ. आर. एस. के पैकेट तथा 300 मास्क व सेनीटाइज़र वितरित करते हुये कही। इसके साथ-साथ उन्होंने 15 गरीब परिवारों के लिये राशन का भी प्रबंध कराया। उन्होंने इस बार भी लॉकडॉउन का पूरी निष्ठा से पालन करते हुये सफेदाबाद हाईवे, बड़ेल के साथ-साथ पूरे शहर को कवर किया तथा इस बात का विशेष ध्यान रखा कि उनकी इस मुहिम से एक भी गरीब भाई वंचित न रह जाये।

इस मौके पर बोलते हुये हर्षित राज ने कहा कि आज हमारे गरीब भाईयों को हमारी सबसे ज़्यादा ज़रूरत है, ऐसे में अगर हम आगे आकर उनका साथ नहीं देंगे तो ईश्वर हमें कभी माफ नहीं करेगा। और यदि भगवान ने हमें सक्षम बनाया है तो यह हम सब का कर्तव्य बनता है कि सकंट की इस घड़ी में हम हमारे गरीब तथा मज़दूर भाईयों की तथा उनके परिवार की जितनी हो सके उतनी मदद करें। उन्होंने इसके आगे बताया कि कोरोना जैसी महामारी से लड़ने के लिये यूं तो सरकार व प्रशासन अपना-अपना काम कर रहे हैं पर इन सब के साथ-साथ यह हमारा भी दायित्व है कि हम इस बात का विशेष ध्यान रखें कि हमारा एक भी गरीब भाई भूखा न सोये।

आज हमें जाति-धर्म की इन बेड़ियों को तोड़कर आगे आना होगा क्योंकि मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना। इसके बाद उन्होंने बाराबंकी वासियों से यह अपील करते हुये अपनी बात समाप्त की कि हमारे पूर्वजों ने हमेशा हमें मिल-जुलकर रहना सिखाया है तो क्यों न हम यूँ ही एक दूसरे का सहारा बनकर कोरोना को हमारे प्यारे भारत देश से मार भगांए। इस मौके पर मुख्य रूप से साथी मो० फैज़ अहमद, एड० हुज़ैफा खान, पत्रकार अदीब किदवाई ने भी बढ़-चढ़कर योगदान दिया।

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