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आड़ू की किस्मों के विकास के लिए केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान कर रहा शोध

लखनऊ: “देखकर विश्वास होता है”, ज्यादातर किसान खेती के लिए नई फसल को स्वीकार तब करते हैं जब वे आश्वस्त होते हैं कि वे उसे सफलतापूर्वक अपने खेत में उगाया सकते है. भौगोलिक स्थिति बहुत से फलों की खेती के लिए सीमा कारक है और अनुकूल  जलवायु न होने के कारण कुछ फलों की खेती हर जगह संभव नहीं है. वैज्ञानिकों ने विशेष कृषि-पारिस्थितिक क्षेत्र के लिए उपयुक्त नयी किस्मों का विकास किया और खेती उन जलवायु में भी संभव हो सकी जहां सोचा भी नहीं था.

पीच (आड़ू) फील्ड डे का आयोजन 29 अप्रैल को

केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान, रहमानखेड़ा, लखनऊ ने कई आड़ू किस्मों का मूल्यांकन किया जो लखनऊ की परिस्थितियों में फल-फूल सकती हैं और इसके प्रदर्शन के लिए आड़ू फील्ड दिवस का आयोजन कर रहा है. उस दिन किसान  और  उत्साही अपनी आँखों से इन किस्मों को पेड़ों पैर फलते हुए  देख सकते हैं और लखनऊ की परिस्थितियों में सफलतापूर्वक आड़ू उगाने के जानकारी प्राप्त कर सकते हैं. अब सेंट्रल इंस्टीट्यूट फॉर सबट्रॉपिकल हॉर्टिकल्चर के वैज्ञानिक 29 अप्रैल को पूर्वाह्न 11 बजे रहमानखेरा में कार्यक्रम का आयोजन कर रहैं है  जिसमें विशेषज्ञों की प्रस्तुतियों के साथ आड़ू के बाग़ में परिचर्चा भी शामिल है जबकि डॉ केके श्रीवास्तव द्वारा विभिन्न किस्मों पर चर्चा की जाएगी और डॉ गुंडप्पा कीट समस्याओं पर प्रकाश डालेंगे. इसका महत्वपूर्ण उदाहरण ठन्डे मैदानी स्थानों के लिए आड़ू की किस्मों का विकासहै. आड़ू जो ठन्डे स्थानों का फल हैं उसे  भारत के उत्तरी मैदानी इलाकों में उगाया जा सकता है क्योंकि वृक्षों के फूलने के लिए नयी किस्मो के अनुसार ठण्ड उपलब्ध हैं. भारत में, सेब, आड़ू, प्लम और बादाम कीकुछ  विशेष किस्मो की खेती मैदानी  क्षेत्रों में भी की जा रही है लेकिन यह केवल विशिष्ट कम ठण्ड चाहनें वाली किस्मों के माध्यम से संभव है.

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