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चांद पर उतरने के लिए चंद्रयान-3 तैयार, सफल लैंडिंग के लिए 80% बदलाव; 17 मिनट होगा खौफनाक

नई दिल्ली : भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (ISRO) का चंद्रयान-3 मिशन चंद्रमा पर सुरक्षित लैंड के लिए तैयार है। पिछली बार से सबक लेते हुए इस मिशन में कई बदलाव किए गए हैं। चंद्रयान-3 की सुरक्षित लैंडिंग पर इसरो के पूर्व वैज्ञानिक वाईएस राजन ने कहा कि लगभग 80 प्रतिशत बदलाव किए गए हैं। उन्होंने चंद्रयान-3 में कई चीजें शामिल की हैं। पहले यह उतरते समय सिर्फ ऊंचाई देखता था, जिसे अल्टीमीटर कहा जाता है। इसके अलावा अब उन्होंने एक वेलोसिटी मीटर भी जोड़ा गया है, जिसे डॉप्लर कहा जाता है। इससे ऊंचाई और वेग का भी पता चल जाएगा, ताकि यह खुद को नियंत्रित कर सके।

चार साल पहले सात सितंबर, 2019 को चंद्रयान-2 मिशन चांद पर उतरने की प्रक्रिया के दौरान तब असफल हो गया था, जब उसका लैंडर ‘विक्रम’ ब्रेक संबंधी प्रणाली में गड़बड़ी होने के कारण चंद्रमा की सतह से टकरा गया था। उस वक्त के इसरो प्रमुख के सिवन ने 15 मिनट का आतंक बताया था। इस बार चंद्रमा पर सॉफ्ट-लैंडिंग की महत्वपूर्ण प्रक्रिया को इसरो ने ’17 मिनट का खौफ’ करार दिया है।

इसरो अधिकारियों के मुताबिक, लैंडिंग की पूरी प्रक्रिया स्वायत्त होगी, जिसके तहत लैंडर को अपने इंजन को सही समय और उचित ऊंचाई पर चालू करना होगा और उसे सही मात्रा में ईंधन का उपयोग करना होगा। इस दौरान नीचे उतरने से पहले यह पता लगाना होगा कि किसी प्रकार की बाधा या पहाड़ी क्षेत्र या गड्ढा नहीं हो। सभी मापदंडों की जांच करने और लैंडिंग का निर्णय लेने के बाद इसरो बेंगलुरु के निकट बयालालू में अपने भारतीय गहन अंतरिक्ष नेटवर्क (आईडीएसएन) से निर्धारित समय पर लैंडिंग से कुछ घंटे पहले सभी आवश्यक कमांड एलएम पर अपलोड करेगा।

इसरो के अधिकारियों के अनुसार, लैंडिंग के लिए लगभग 30 किलोमीटर की ऊंचाई पर विक्रम पावर ब्रेकिंग चरण में प्रवेश करेगा और अपने चार थ्रस्टर इंजन को रेट्रो फायर करके गति को धीरे-धीरे कम करके चंद्रमा की सतह तक पहुंचना शुरू करेगा। अधिकरियों के अनुसार इससे यह सुनिश्चित होता है कि लैंडर दुर्घटनाग्रस्त न हो, क्योंकि इसमें चंद्रमा का गुरुत्वाकर्षण भी काम करता है। उन्होंने कहा कि यह देखते हुए कि लगभग 6.8 किलोमीटर की ऊंचाई पर पहुंचने पर, केवल दो इंजन का उपयोग किया जाएगा और अन्य दो को बंद कर दिया जाएगा, जिसका उद्देश्य लैंडर को ‘रिवर्स थ्रस्ट’ देना होता है, लगभग 150-100 मीटर की ऊंचाई पर पहुंचने पर लैंडर अपने सेंसर और कैमरों का उपयोग करके सतह को स्कैन करेगा ताकि यह जांचा जा सके कि कोई बाधा तो नहीं है और फिर वह सॉफ्ट-लैंडिंग करने के लिए नीचे उतरना शुरू करेगा।

इसरो अध्यक्ष एस. सोमनाथ ने हाल ही में कहा था कि लैंडिंग का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा लैंडर के वेग को 30 किलोमीटर की ऊंचाई से अंतिम लैंडिंग तक कम करने की प्रक्रिया और अंतरिक्ष यान को क्षैतिज से लंबवत करने की क्षमता होगी। सोमनाथ ने समझाया था, लैंडिंग प्रक्रिया की शुरुआत में गति लगभग 1.68 किलोमीटर प्रति सेकंड होगा, लेकिन इस गति पर विक्रम चंद्रमा की सतह पर क्षैतिज होगा। चंद्रयान-3 यहां लगभग 90 डिग्री झुका हुआ है और इसे लंबवत होना होगा। यह पूरी प्रक्रिया गणितीय रूप से एक बहुत ही दिलचस्प गणना होती है। हमने बहुत सारे सिमुलेशन किए हैं। यहीं पर हमें पिछली बार (चंद्रयान -2) दिक्कत हुई थी।

नहीं, अब तक इस मिशन के दौरान सब कुछ हमारी योजना के अनुसार हुआ है। कोई आकस्मिकता नहीं आई है। बल्कि हमें कुछ आश्चर्यजनक परिणाम भी मिले। हमने शुरू में योजना बनाई थी कि हमारा प्रणोदन मॉड्यूल लगभग तीन से छह महीने तक कक्षा में सक्रिय रहेगा लेकिन अतिरिक्त ईंधन होने की वजह से प्रणोदन मॉड्यूल अब कई वर्षों तक कक्षा में जीवंत रह सकता है।

उन्होंने कहा, चंद्रयान-2 अंतिम चरण तक ठीक-ठाक चला, लेकिन हम सॉफ्ट लैंडिंग नहीं कर पाए, क्योंकि हम अधिक वेग से उतरे थे। चंद्रयान-2 के दौरान हमारी एक गलती यह थी कि हमने लैंडिंग स्थल को 500 मीटर x 500 मीटर के सीमित क्षेत्र में रखा था। हमने और भी कई गलतियां की थीं, जिनका सामना यान को करना पड़ रहा था। उस समय हमने इसे नहीं सुधारा था। इससे उतरते समय लैंडर मॉड्यूल नियंत्रण से बाहर हो गया। इस बार हम बेहतर तरीके से तैयार हैं। हमने अपनी पिछली गलतियों से सीखा और उन गलतियों को सुधार लिया है। किसी अन्य त्रुटि के लिए भी जगह नहीं छोड़ी है।

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