नई दिल्ली। उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की सीट बदलने को प्रदेश में संभावित सियासी बदलावों का संकेत माना जा रहा है। कांग्रेस की तीसरी सूची में उन्हें रामनगर की बजाय लालकुंआ सीट से लड़ाने का फैसला किया गया है। रामनगर से हालांकि उनकी उम्मीदवारी के विरोध को देखते हुए यह फैसला लिया गया था, लेकिन इस प्रकार का विरोध कोई नई बात नहीं है। इसलिए इसे भावी सियासी संकेत भी माना जा रहा है।
इतना हीं नहीं हरीश रावत चुनाव प्रचार समिति के अध्यक्ष भी हैं। इसलिए इसे हरीश रावत के लिए बड़े झटके के तौर पर देखा जा रहा है। विधानसभा चुनाव में हरीश रावत खुद को मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर पेश करते रहे हैं। प्रचार समिति के अध्यक्ष के तौर पर पूरे प्रदेश में प्रचार कर रहे हैं। प्रदेश कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि यह हरीश रावत के लिए बड़ा झटका है। इससे साफ हो गया है कि चुनाव के बाद भी उनकी राह आसान नहीं है। पार्टी ने हरीश रावत की नाराजगी को कम करने के लिए उनकी बेटी अनुपमा रावत को हरिद्वार ग्रामीण से टिकट दे दिया। हरीश रावत ने एक फेसबुक पोस्ट लिखकर कहा था कि उनके बेटे-बेटियां भी उनकी ढिलाई की वजह से इस काम में लग गए हैं। उन्हें उनकी चिंता होती है, क्योंकि उनके प्रति भी दायित्व है।
प्रदेश कांग्रेस नेता इसे उत्तराखंड की सियासत के बदलते समीकरण के तौर पर देख रहे हैं। उनके मुताबिक, हरीश रावत के विरोध के बावजूद हरक सिंह को पार्टी में शामिल किया गया। हरक सिंह को प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल और वरिष्ठ नेता प्रीतम सिंह का समर्थन हासिल था। दरअसल, रामनगर सीट से प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष रणजीत रावत दावेदारी कर रहे थे।
हरीश रावत को रामनगर से टिकट देने के बाद पार्टी उन्हें सल्ट सीट से लड़ाना चाहती थी, पर वह जिद्द पर अड़ गए। पार्टी के एक नेता ने कहा कि रणजीत निर्दलीय चुनाव लड़ने के लिए तैयार थे। ऐसी स्थिति में सीट पार्टी के हाथ से फिसल सकती थी। इसलिए, पार्टी ने हरीश रावत की सीट बदलनी बेहतर समझी, लेकिन रणजीत रावत को भी रामनगर से टिकट नहीं दिया।