1975 के आपातकाल में जौनसार से जेल जाने वाले अकेले व्यक्ति थे पंडित शिवराम
देहरादून: मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने आज जौनसार बाबर के प्रथम कवि पं. शिवराम जी द्वारा रचित काव्य संग्रह ‘रमणी जौनसार’ एवं पं० जी के व्यक्तित्व पर केन्द्रित ग्रंथ ‘जौनसार बाबर के जननायक पं० शिवराम’ का विमोचन कार्यक्रम में सहभाग किया। आईआरडीटी सभागार सर्वे चौक देहरादून में उन्होंने इस कार्यक्रम में प्रतिभाग किया। इस कार्यक्रम के अध्यक्ष पद्मश्री लीला धर जगूड़ी जी थे जो स्वयं उत्तराखंड की एक साहित्यिक विभूति हैं । इस कार्यक्रम के आयोजक जननायक पंडित शिवराम के सुपुत्र मूरतराम शर्मा थे जिन्होंने मुख्यमंत्री धामी को आमंत्रित किया था।
पंडित शिवराम की प्रसिद्ध रचना है “वीर केसरी”। बता दें कि 1 नवंबर 1920 को “चकराता” के पास “क्यावा गांव”में जन्मे वीर केसरी चंद्र
उत्तराखंड के वो वीर सपूत थे जो नेता जी सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज में अपनी योग्यता के दम पर भर्ती हुए थे। 3 मई 1945 को वीर केसरी जी को फांसी की सजा दी गई। इनके बलिदान दिवस पर 3 मई को चौलिथात में मेला लगता है। इसी महान विभूति पर पंडित शिवराम ने पुस्तक लिखी है।
इमरजेंसी में जेल गए थे जौनसार के जनकवि पंडित शिवराम :
आज से करीब 47 वर्ष पूर्व देश में लागू इमरजेंसी के दौरान जौनसार-बावर के क्रांतिकारी विचारक, साहित्यकार एवं जनकवि पंडित शिवराम शर्मा मीसा कानून के तहत जिला कारागार देहरादून में बंद रहे। वह जौनसार-बावर के अकेले ऐसे व्यक्ति थे जो आपातकाल में बंदीगृह में कैद रहे। उन्होंने जेल में रहकर कई कविताएं लिखी। उनकी रचनाएं सामाजिक जागरूकता की अलख जगाने के साथ युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणादायक है।
पंडित शिवराम का जीवन परिचय :
जौनसार-बावर के जाने-माने समाजसेवी व जनकवि पंडित शिवराम का जन्म 13 अगस्त 1927 को सीमांत देवघार खत के अणू गांव में एक कुलीन ब्राह्मण परिवार में हुआ। क्षेत्र के बड़े जमीदारों में देवघार खत के स्याणा परिवार में जन्में पंडित शिवराम के मन में बचपन से कुछ अलग करने की चाह थी। वर्ष 1940 में उन्हें शिक्षा के लिए देहरादून भेजा गया। उस वक्त क्षेत्र के गिने-चुने लोग ही पढ़ाई के लिए देहरादून जा पाते थे। जौनसार में संयुक्त परिवार के हिमायती रहे जनकवि पंडित शिवराम जीवन पर्यत लोगों की सेवा में लगे रहे। क्षेत्र में लोक अदालत के माध्यम से उन्होंने कई विवादों का निपटारा स्थानीय स्तर पर दोनों पक्षों के बीच आपसी सुलह कराने में अहम भूमिका निभाई। क्रांतिकारी विचारक, प्रखर वक्ता व समाजसेवी के रूप में बड़ी पहचान रखने वाले जनकवि पंडित शिवराम ने वर्ष 1975 को देश में लागू इमरजेंसी का कड़ा विरोध किया था।
वर्ष 2008 में जननेता पंडित शिवराम ने दुनिया को अलविदा कह दिया। उनकी पांच संतानों में तीसरे नंबर के पुत्र मूरतराम शर्मा वर्तमान में उत्तराखंड जनजाति आयोग के चेयरमैन है। इसके अलावा 15 नाती-पोते समेत करीब 40 सदस्यों का भरा-पूरा संयुक्त परिवार है। जन नेता स्व. पंडित शिवराम के पुत्र मूरतराम शर्मा ने कहा इमरजेंसी के दौरान उनके पिता को चार माह तक देहरादून के बंदीगृह में रखा गया था। वह जौनसार के अकेले ऐसे व्यक्ति थे जो इमरजेंसी में जेल गए।