उत्तराखंड

संकल्पों के द्वीप से प्रज्जवलित होता मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का जन्मदिवस :

देहरादून ( राम कुमार सिंह) : प्रदेश के यशस्वी मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी आज अपना 49 वा जन्मदिवस मना रहे हैं वहीं पूरे प्रदेश में भाजपा उनके जन्मदिवस को संकल्प दिवस के रूप में मना रही है। उत्तराखंड के सीएम का जन्मदिवस प्रदेशवासियों के लिए एक विशेष उत्सव जैसा बन चुका है क्योंकि जब से धामी मुख्यमंत्री बने हैं और अपना जन्म दिवस मनाया है , उसे उन्होंने राज्य के विकास, कल्याण और सुशासन के संकल्पों से जोड़कर मनाया है। एक अर्थपूर्ण अस्तित्व का मतलब भी यही होता है कि वो अपने अस्तित्व से सह अस्तित्व की भावना की राह पर ले जाने का काम करे और मुख्यमंत्री धामी से जुड़े हर विशेष दिन इसी भाव को प्रबल करते हैं। उनका जन्मदिन भी इसी का प्रतीक है। कहते हैं कि जब डीएनए में कर्तव्य निष्ठा हो , जेहन में कुछ सार्थक नया करने का जज़्बा हो और राह समन्वय की चुनी जाए तो परिणामों का भव्य दिव्य होना एक स्वप्न नही रह जाता। उत्तराखंड के विकास के सपनों को धरातल पर लाने के इन्हीं जज्बों के साथ सीएम धामी अपना जन्मदिवस मना रहे हैं। उनका कार्यकाल ये बताता है कि वो एक अथक योद्धा हैं जो परिणाम मिलने तक रुकते नहीं, थकते नही। ठीक वैसे ही जैसे देश के प्रधानमंत्री मोदी जो साहस और उत्कृष्ट श्रम से संचालित होते हैं। 17 सितंबर को देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भी जन्मदिवस है। उसके ठीक एक दिन पहले मुख्यमंत्री धामी का जन्मदिवस। यह बताता है कि दोनों नेताओं के बीच इतनी अच्छी ट्यूनिंग होने की कुछ तो वजह है। वजह जो भी है वो प्रदेश की सर्वोत्तम भलाई के लिए है।

पुष्कर सिंह धामी का जन्म 16 सितंबर 1975 को देवभूमि उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जनपद के कनालीछीना में ग्राम टून्डी में हुआ था। उनकी शिक्षा सरकारी स्कूल में हुई । गांव टुंडी में ही पुष्‍कर सिंह धामी की पांचवी कक्षा तक पढ़ाई हुई। प्रकृति की निर्मल गोद में बसे इस जनपद में उनका बचपन बीता , नदियों , पहाड़ों , घाटियों , दर्रों , मंदिरों ने उन्हें आकर्षित किया और उन्हें सृजनशील संस्कार दिए। उनके पिता स्व. शेर सिंह धामी एक पूर्व सैनिक थे। पुष्‍कर सिंह धामी के पिता भारतीय सेना में सूबेदार के पद से रिटायर हुए थे। यही वजह है कि पुष्कर सिंह धामी ने भी साहस और शौर्य का साथ कभी नही छोड़ा । उनके पिता ने उन्हें जीवन में किसी भी क्षण पलायनवादी न होने और हार न मानने की सीख दी। वहीं उनकी माता श्रीमती बिशना देवी ने अपने पुत्र पुष्कर सिंह धामी में नैतिक , आध्यात्मिक मूल्यों के प्रति समर्पण की भावना धारण कराई । बचपन और शिक्षा दीक्षा का सफर: पुष्कर सिंह धामी बचपन से ही उदार , विन्रम , सहज , सहिष्णु स्वभाव वाले रहे । उन्हें अपने साथियों की बात सुनने और उन्हें सार्थक सुझाव देने की आदत बचपन से रही और इन बातों ने उनके रचनात्मक व्यक्तित्व का निर्माण किया। धामी का बचपन से ही सेना के प्रति लगाव रहा है।वो स्काउट्स, एनसीसी में जुड़े रहे। धामी साथ ही सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में भी महत्वपूर्ण पहचान रखते हैं। लखनऊ विश्वविद्यालय में छात्रों को एक जुट करके संधर्षशाील रहते हुए उन्होंने छात्रों के हितों की लड़ाई भी लड़ी है।

पुष्कर सिंह धामी ने अपनी उच्च शिक्षा लखनऊ विश्वविद्यालय से पूरी की । उन्होंने ग्रैजुएशन किया और फिर मानव संसाधन प्रबंधन और औद्योगिक संबंध में स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल की थी। इसके अलावा विधिक ज्ञान में रुझान के चलते उन्होंने एलएलबी और डीपीए यानी डिप्लोमा इन पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन की भी डिग्री हासिल की। लखनऊ विश्वविद्यालय में अध्ययन के दौरान उनके मन में राष्ट्रप्रेम का भाव विशेष रूप से जागृत हुआ और राष्ट्रवादी भावना के तहत उन्होंने समाज सेवा को अंजाम देने के लिए छात्र राजनीति में कदम रखा। वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ( आरएसएस) के संघ शिक्षा प्रवर्ग से प्रशिक्षित स्वयंसेवक रहे। 32 वर्ष की आयु में वे लखनऊ विश्वविद्यालय में विश्वविद्यालय स्तर से प्रांतीय स्तर ( अवध प्रान्त) तक आरएसएस के दायित्ववान कार्यकर्ता रहे। 10 वर्ष तक उन्होंने छात्र जीवन के दौरान अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की गतिविधियों में गहराई से संलग्न रहे। साल 1990 से 1999 तक जिले से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक एबीवीपी में विभिन्न पदों पर भी उन्होंने काम किया।

शुरुआती राजनीतिक नेतृत्व का प्रमाण: उत्तराखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री और महाराष्ट्र के वर्तमान राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के करीबी माने जाने वाले धामी ने भाजपा की युवा इकाई से राजनीति की शुरुआत की थी। अक्टूबर 2001 से मार्च 2002 के बीच भगत सिंह कोश्यारी को सीएम बनाया गया था। उस दौरान वह मुख्यमंत्री के विशेष कार्याधिकारी ( ओएसडी) बनाए गए थे। इसके 19 साल तीन माह बाद धामी खुद मुख्यमंत्री बन गए। इसलिए वह संघर्ष से आगे बढऩे वाले नेता कहे जाते हैं। उनके राजनीतिक सफर की शुरुआत भारतीय जनता युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष बनने के साथ हुई और वर्ष 2002 से 2008 तक लगातार दो बार वे इसके प्रदेश अध्यक्ष रहे। युवा मोर्चा का नेतृत्व संभालने के बाद उन्होंने प्रदेश भर में घूम-घूमकर यात्राएं की थीं और बेरोजगार युवाओं को एक साथ जोड़कर बड़ी रैलियां कर युवा नेता के रूप में अपनी अलग पहचान बनाई थी। इस दौरान उनकी बड़ी सफलता तत्कालीन सरकार से राज्य के उद्योगों में युवाओं के लिए 70 प्रतिशत आरक्षण की घोषणा करवाना था। उन्हाेंने 11 जनवरी 2005 को प्रदेश के 90 युवाओं के साथ विधानसभा का घेराव करने के लिए ऐतिहासिक रैली आयोजित की थी। धामी को युवा शक्ति का नेतृत्व करने के लिए एक प्रेरणा माना जाता है। 2010 से 2012 के बीच वे उत्तराखंड सरकार के शहरी अनुश्रवण समिति के उपाध्यक्ष रहे ।इस रूप में वे राज्यमंत्री ( दर्जाप्राप्त ) रहे। एक विधि निर्माता के रूप में उनकी भूमिका वर्ष 2012 में शुरू हुई जब वह उधमसिंह नगर के खटीमा निर्वाचन क्षेत्र से पहली बार विधायक चुने गए । 2012 से 2017 तक विधायक के रूप में उन्होंने कुशल भूमिका निभाई। 2017 से 2022 तक पुनः वो खटीमा निर्वाचन क्षेत्र से विधायक चुने गए। इसके साथ ही वर्ष 2016 से अब तक उन्हें भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष का भी महत्वपूर्ण दायित्व दिया गया।

धामी और राष्ट्रवाद की भावना : राष्ट्रवाद राष्ट्र के प्रति प्रेम और राष्ट्र को हर नजरिए से मजबूत होते हुए देखने की भावना है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को राष्ट्रवाद की भावना अपने घर में ही मिल गई थी। एक सैन्य अधिकारी को बेटे को राष्ट्रवाद की भावना को कहीं से निर्यात करने की जरूरत नहीं होती। मुख्यमंत्री धामी बचपन से लेकर युवावस्था तक उत्तराखंड के महान स्वतंत्रता सेनानियों के शौर्य और उनके आचरण से प्रभावित रहे। उन्होंने अपने कई साक्षात्कारों में कहा भी है कि बिशनी देवी शाह, गोविंद बल्लभ पंत, हरगोविंद पंत, कुमाऊं केसरी बद्रीदत्त पांडे, पेशावर कांड के नायक वीर चंद्र गढ़वाली के त्याग और समर्पण से हर उत्तराखंडी ने बहुत कुछ सीखा है और उन सीखने वालों में मुख्यमंत्री धामी भी एक हैं। यही कारण है कि जब भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आजादी का अमृत काल , अमृत महोत्सव की शुरुआत की और देश के गुमनाम स्वतंत्रता सेनानियों की भूमिका को मान्यता देनी शुरू की तो उत्तराखंड भारत के उन पहले राज्यों में से था जो मुख्यमंत्री धामी के नेतृत्व में देवभूमि के स्वतंत्रता सेनानियों की अमर गाथा को लेकर सामने आया। धामी जी ने स्वयं उत्तराखंड की ऐसी विभूतियों पर पुस्तकों का विमोचन किया और प्रदेश के युवाओं से अपील की वो राष्ट्र, राष्ट्रीयता, राष्ट्रवाद को समझने के लिए उत्तराखंड के स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में पढ़े। राष्ट्रवादी चिंतन का इससे बड़ा उदाहरण नहीं हो सकता कि मुख्यमंत्री अपने राष्ट्रीय नायकों को मान्यता दिलाने के लिए हर मंच पर खड़े रहे। अपने सोशल मीडिया अकाउंट्स पर उत्तराखंड की प्रत्येक विभूति का विनम्र स्मरण मुख्यमंत्री धामी करते हैं।

सीएम धामी ने ‘हिंदी दिवस समारोह-2024’ के अवसर पर ‘उत्तराखंड की लोक कथाएं’ पुस्तक का विमोचन किया। प्रदेश की कला, संस्कृति, भाषा, इतिहास के संबंध में उत्कृष्ट लेखन को मुख्यमंत्री धामी लगातार बढ़ावा दे रहे हैं क्योंकि उनका मानना है कि प्रदेश के युवाओं को आज डिजिटल युग में अपनी जड़ों से जोड़ना बेहद जरूरी है और सोशल मीडिया के दौर में इसे संभव बनाया जा सकता है। राष्ट्रवादी चिंतन और विचारों को मुख्यमंत्री धामी सदैव प्रोत्साहन देते हैं।

जब प्रधानमंत्री मोदी ने हर घर तिरंगा अभियान चलाया था, उस वक्त देहरादून की सड़कों पर हजारों बच्‍चों के साथ हाथ में तिरंगा लिए मुख्यमंत्री धामी दिखे। इस दौरान उनके हाथ में तिरंगा ध्‍वज था और करीब पांच हजार लोग इस दौरान उनके साथ मौजूद थे। इस दौरान भारत माता की जय के नारों से दून घाटी गूंज उठी थी। मुख्यमंत्री धामी ने उस वक्त कहा था कि यह किसी राजनीतिक दल का कार्यक्रम नहीं, बल्कि प्रत्येक देशभक्त नागरिक का उत्सव है। यह अभियान ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ की संकल्पना को और अधिक मजबूती प्रदान करने वाला है। राष्ट्रवादी मुख्यमंत्री धामी ने 13 से 15 अगस्त तक चलने वाले हर घर तिरंगा अभियान को उत्तराखंड के 20 लाख घरों में एक आंदोलन का रूप दे देने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी। इसके साथ ही देहरादून के जिलाधिकारी ने सीडीओ को जिले में भी साढ़े तीन लाख राष्ट्रीय ध्वज लगाने के निर्देश दिए थे। इसके लिए सभी वार्डों, गांवों और नगर पंचायत में अधिकारियों और कर्मचारियों की ड्यूटी लगा दी गई थी। इस तरह हर घर तिरंगा अभियान को उत्तराखंड में एक जनांदोलन बनाने में धामी जी की अभूतपूर्व भूमिका रही ।

धारा 370 पर धामी के विचारों से झलकता है राष्ट्रवाद: मुख्यमंत्री धामी कहते हैं कि ये नया कश्मीर है , कश्मीर ने अलगाववादियों के मंसूबे को ध्वस्त कर दिया है और वहां विकास की बयार बह रही है। मोदी सरकार ने 6 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर से धारा-370 हटाई जिसके बाद से ही कश्मीर की सूरत बदलनी शुरू हुई पिछले 5 वर्षों में कश्मीर में विकास के नए आयाम देखने को मिले । केंद्र सरकार के इस निर्णय को धामी ने मील का पत्थर माना। मुख्यमंत्री धामी ने कहा था कि कश्मीर पत्थरबाजी के लिए नहीं, मजबूत पत्थर और इरादों से इन्फ्रास्ट्रक्चर खड़े करने के लिए है। उन्होंने कहा था कि कश्मीरी युवा अब पत्थर नहीं ढूंढता, बल्कि पढ़-लिखकर नौकरी खोज रहा है। मुख्यमंत्री धामी ने सुप्रीम कोर्ट के धारा 370 पर दिए फैसले को जम्मू कश्मीर के जनता की जीत और साथ ही धारा 370 को हटाने के मोदी सरकार के फैसले को श्यामा प्रसाद मुखर्जी के सपनो की जीत बताया था। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा था कि जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटने से पूरे देश मे एक सुखद संदेश गया और उन दलों को भी करारा जवाब मिला जो असर यह कहते सुने जाते थे कि इससे कोई फर्क नही पड़ा। उन्होंने कहा कि इसी का नतीजा है कि धारा 370 हटने से जो वातावरण बना है उससे राहुल गांधी की भारत जोड़ों यात्रा शांतिपूर्ण ढंग से सम्पन्न हो सकी थी। मुख्यमंत्री धामी का कहना था कि जिनकी सरकारों में संगीनों के साए में तिरंगा फहराया जाता था वहां आज सकुशलता से यात्रा से सार्वजनिक राजनीतिक कार्यक्रम आयोजित और संपन्न हो रहे हैं।

धामी जी की राष्ट्रवादी सोच इस बात में दिखती है कि उत्तराखंड में जबरन धर्मांतरण कराने वालों के खिलाफ सख्त सजा वाले कानून बनाए गए। इसके लिए 2018 के कानून को और सख्त कर दिया गया है। उत्तराखंड के नए कानून के तहत, जबरन धर्मांतरण कराने वाले दोषी को 10 साल की जेल और 50 हजार रुपये के जुर्माने की सजा होगी, साथ ही पीड़ित को भी मुआवजा देना होगा। मुख्यमंत्री धामी का मानना है कि धर्म को बाध्यता के जाल में रखने वाला जालसाज और मुजरिम है । कोई स्वेच्छा से धर्म परिवर्तन कर ले ये उसकी रुचि का विषय है, लेकिन जबरन धर्म परिवर्तन कराना एक अपराध है और हिंदू धर्म के खिलाफ ऐसा कोई षड्यंत्र न चलने देने की कसम पुष्कर धामी काफी पहले ही खा चुके हैं। लव जिहाद हो या अवैध मदरसों का निर्माण और संचालन, गलत भावनाओं और गलत अवसंरचना पर धामी के बुलडोजर ने राष्ट्र विरोधी, समाज विरोधी, परिवार, विवाह संस्था विरोधी ताकतों के मंसूबों पर तुषारापात किया है। लेकिन इस मामले में धामी कभी पूर्वाग्रही नही रही, धर्म विशेष विरोधी नहीं रहे, यही उनकी खासियत भी है जो उन्हें हर धर्म और समुदाय के लोगों के बीच लोकप्रिय बनाती है। मुख्यमंत्री धामी ने मदरसों के आधुनिकीकरण और आधुनिक प्रगतिशील मूल्यों के अध्ययन पर भी जोर दिया है जो उनके पंथनिरपेक्ष सोच का सबसे बड़ा उदाहरण है।पौड़ी में अवैध मजार निर्माण मामला हो या पूरे प्रदेश में लैंड जिहाद का मामला हो, धामी सरकार ने साफ कर दिया कि अगर निर्माण कार्य गैरकानूनी है , भूमि का अतिक्रमण किया गया है तो साधारण जमीन हो या फिर कोई भी धार्मिक परिसर बुलडोजर की कार्यवाही से नही बच पाएगा। ऐसा करना इसलिए भी जरूरी था कि अवैध धार्मिक परिसर चाहे किसी धर्म का हो सत्ता के लोगों से साठ गाठ कर उसपे आंच नहीं आने दी जाती थी लेकिन मुख्यमंत्री धामी ने मजबूत राजनीतिक इच्छा शक्ति और परिणामों की परवाह न करते हुए संविधान और कानून का दामन थामा जिससे बढ़ कर कुछ नही है और धामी ये बात जानते थे कि अतिक्रमण जब अवैधानिक है तो उन्हें कार्यवाही से किसी भी स्तर पर हिचकना नही है। धामी को पूर्व की सरकारों की तरह किसी धर्म विशेष का तुष्टिकरण भी नहीं करना था। दरअसल मोदी सरकार ने जिस तरह का फ्री हैंड धामी सरकार को दिया उसके चलते लैंड जिहाद और लव जिहाद दोनों को धामी ने जमीदोंज कर दिया और ये सारे काम इतने वैधानिक तरीके से किए गए कि चाह कर भी धामी सरकार के खिलाफ कोई बड़ा विरोध नही हो पाया और यही कारण है कि मोदी के राज्य राजनीति के विजन में पुष्कर सिंह धामी को विशेष स्थान प्राप्त है ।

भारत मोदी मॉडल का कायल जबकि पीएम मोदी धामी गवर्नेंस मॉडल के कायल:

हाल ही में अपने उत्तराखंड चुनावी दौरे पर भारतीय प्रधानमंत्री ने धामी गवर्नेंस मॉडल की तारीफ की है। देश का प्रधानमंत्री स्वयं जब कहे कि उत्तराखंड में विकास की हवा बह रही है तो बात कुछ ख़ास हो जाती है। हिमालय की चोटियों से आज देवभूमि में नई ऊर्जा की बयार बह रही है और इस बात के कायल हो गए हैं हमारे प्रधानमंत्री। उन्होंने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की जमकर तारीफ की है। पीएम मोदी से तारीफ निकलवाना आसान काम नही है। जब कोई राज्य वास्तव में बेहतरीन काम करता है तभी मोदी उसका जिक्र करते हैं। पीएम मोदी को धामी में जो ख़ास बातें नजर आती हैं वो हैं..

अपनी तरह ईमानदार सोच रखने वाला लीडर जो उत्तराखंड की वास्तविक प्रगति के बारे में सोचता है। धामी की गतिशीलता पीएम मोदी को पसंद है। पीएम मोदी मानते हैं कि मुख्यमंत्री धामी ने अपनी राजनीतिक सूझ बूझ से उत्तराखंड बीजेपी को एक नई ऊर्जा दी है। धामी ने जिस तरह से सभी वरिष्ठ और कनिष्ठ नेताओं को संतुलित किया है वो काबिले तारीफ है। इसके बिना उत्तराखंड विकास की राह पर नही बढ़ सकता था क्योंकि उत्तराखंड लीडरशिप को एक सामूहिक पहचान देने का काम धामी ने कर दिया। राजनीतिक मतभेदों से मुक्त उत्तराखंड बीजेपी धामी के नेतृत्व में एक समर्थ सशक्त उत्तराखंड बनाने की राह पर चल रही है। यही बात मोदी को धामी की तारीफ के लिए आगे लाती है।

धामी जी में मोदी अपना रिजेंब्लेंस काम के स्तर पर पाते हैं। किसी भी प्रकार की आपदा में मोदी तत्काल कार्यवाही के लिए मानवतावादी दृष्टिकोण से आगे आ जाते हैं और पिछले दो साल में मुख्यमंत्री धामी ने इस मामले में जो कार्य उत्तराखंड में किए हैं ऐसा कई दशकों में किसी भारतीय मुख्यमंत्री ने नही किया है। सिलक्यारा टनल बचाव अभियान उसका एक उदाहरण है । ऐसे दर्जनों अभियान धामी कर चुके हैं। धामी ने जिस तरह से यूनिफॉर्म सिविल कोड को सबसे पहले लागू करने में तत्परता दिखाई वो उन्हें मोदी के करीब ले आती है। यूनिफॉर्म सिविल कोड मोदी और बीजेपी के प्राइम एजेंडे में शामिल था और इस मामले को पूरे देश में बहस का विषय बनाने की शुरुआत उत्तराखंड से हुई है।

मोदी का मानना है कि पूर्ववर्ती कांग्रेसी सरकारें उत्तराखंड के सीमांत गांवों को देश का अंतिम गांव कह कर संबोधित करती थी लेकिन आज यह मोदी धामी के योग से देश के प्रथम गांव के रूप में जाना जाता है। आज उत्तराखंड पर्वतमाला प्रोजेक्ट के जरिए अपनी बॉर्डर सिक्योरिटी और बॉर्डर विलेज के ग्रोथ को नई दिशा देने में लगा है। वाइब्रेंट्स बॉर्डर विलेज प्रोग्राम के जरिए भी मोदी उत्तराखंड जैसे पर्वतीय राज्यों का कायाकल्प करने में लगे हैं।आज धामी जिस तरह से डिजिटल टेक्नोलॉजी को प्रमोट कर रहे हैं और वैज्ञानिक सुविधाओं का प्रदेश में लोकतांत्रीकरण कर रहे हैं और उसके लिए वैज्ञानिकों इंजीनियरों से संपर्क करने में लगे रहते हैं वो उन्हें मोदी के करीब लाता है। मुख्यमंत्री धामी निश्चित रूप से एक विजन के साथ आगे बढ़ रहे हैं और ये उनके विजन की ही ताकत है कि देवभूमि उत्तराखंड के लिए उनके किसी भी आग्रह को पीएम मोदी नही ठुकराते। और रुद्रपुर में तो उन्होंने जनसभा को विजयसभा कहते हुए बीजेपी के पांचों उम्मीदवारों को भारी बहुमत से जिताने की अपील भी जनता से की और इस तरह डबल इंजन की सरकार पर उत्तराखंड के विकास की नींव रख दी गई है।उत्तराखंड के समावेशी विकास के लिए समर्पित धामी: उत्तराखंड की आर्थिक प्रगति के धामी सरकार ने इज ऑफ डूइंग बिजनेस को बढ़ावा दिया, औद्योगिक सुधार किए, राज्य में बड़े पैमाने पर निवेश को आकर्षित करने के लिए ग्लोबल इन्वेस्टर समिट का आयोजन किया है। आर्थिक विकास के लिए विदेशी कंसल्टेंसी फर्म को सुझाव देने के लिए सलाहकार के रूप में नियुक्त किया। ड्रोन पोर्ट और ड्रोन गलियारों को बनाने और इसकी पढ़ाई को सरकारी पॉलीटेकनीक कालेजों में शामिल करने का निर्णय लिया । साइबर सिक्यूरिटी सेंटर फॉर एक्सलेंस के जरिए उत्तराखंड के साइबर स्पेस और सूचना अवसंरचनाओं को सुरक्षित करने का प्रयास किया है।

धामी सरकार ने राज्य में साइबर अपराधों से निपटने के लिए साइबर कमांडोज की फोर्स तैयार कर रही है जिससे राज्य के क्रिटिकल इनफॉर्मेशन इन्फ्रास्ट्रक्चर को सुरक्षित किया जा सके। राज्य मे युवा आयोग बनाने, युवा नीति को अधिक तार्किक बनाने पर धामी सरकार ने काम किया है। देश का सबसे मजबूत नकल विरोधी कानून भी धामी सरकार ने बनाया है जिसका दूसरे राज्यों ने भी अनुसरण किया है। सामाजिक न्याय की दिशा में धामी सरकार ने महिलाओं, बच्चों और दुर्बल वर्गों के लिए कई कदम उठाए हैं। आंगनबाड़ी केंद्रो को मजबूत किया है। प्रदेश में कुपोषित बच्चों की पहचान कर उन्हें खाद्य सुरक्षा कवच दिया है। रोजगार मेलों के प्रदेश के युवाओं को रोजगार दिया है। उत्तराखंड लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं को नियमित अंतराल पर कराने की दिशा में काम किया है जिससे वेकेंसी पेंडिंग रहने की स्थिति से हमारे प्रदेश के अभ्यर्थियों को दो चार न होना पड़े। उत्तराखंड पुलिस की भर्ती प्रक्रिया को भी धामी सरकार ने बेहतर किया है। प्रधानमंत्री मोदी ने देश में तीन तलाक कानून को खत्म कर यूनिफॉर्म सिविल कोड के भविष्य की पटकथा लिख थी और यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड को सबसे पहले उत्तराखंड सरकार ने लागू किया। प्रदेश के लिव इन रिलेशनशिप से जुड़े नए कानूनों की तारीफ देश के न्यायाधीशों ने भी की है।

प्रधानमंत्री मोदी ने मदरसों के आधुनिकीकरण की जो राह दिखाई थी , उस पर उत्तराखंड सरकार ने कार्यवाही की है। उत्तराखंड के मदरसों ने वैज्ञानिक और इस्मालिक शिक्षा को मिलाकर शिक्षा प्रणाली का आधुनिकीकरण करने के राज्य वक्फ बोर्ड के कार्यक्रम के प्रति बहुत उत्साह दिखाया है। उत्तराखंड सरकार ने उत्तराखंड वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष को विशेष दायित्व दिए हैं। धामी सरकार चाहती है कि प्रदेश के सभी समुदायों को बेहतर शिक्षा मिले। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, सुपर कंप्यूटर, क्वांटम कंप्यूटर, नैनो टेक्नोलॉजी की शिक्षा की सुविधा हमें अपने युवाओं को देनी है। उत्तराखंड सरकार सीमा सुरक्षा के लिए भी प्रतिबद्ध है। नेपाल और चीन जैसे देशों के साथ इसकी सीमा लगती है। बॉर्डर पर यूके ने बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन, आईटीबीपी, इंडियन आर्मी के साथ सहयोग करते हुए सामरिक सड़कों के निर्माण की दिशा में कार्य किया है। इसके लिए धामी सरकार लगातार गृह मंत्रालय और रक्षा मंत्रालय के संपर्क में रही है । मोदी सरकार के भारतमाला और सागरमाला के तर्ज पर ही उत्तराखंड ने अपने पर्वतीय इलाकों को पर्वतमाला प्रोजेक्ट से सुरक्षित करने की राह चुनी है।

उत्तराखंड सरकार ने प्रदेश के सांस्कृतिक आध्यात्मिक अभ्युदय के लिए कई कदम उठाए हैं। केदारखंड की तर्ज पर मानसखंड कॉरिडोर पर भी काम चल रहा है। इसके लिए मानसखंड कॉरिडोर नाम से प्रोजेक्ट तैयार किया गया है जिसे मंदिर माला प्रोजेक्ट भी नाम दिया गया है। ये धामी सरकार का ड्रीम प्रोजेक्ट भी है जिसपर 100 करोड़ रुपए खर्च किया जा रहा हैं। इससे राज्य के धार्मिक पर्यटन का कायाकल्प हो जायेगा। उत्तराखंड विजन 2030 के तहत सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए उत्तराखंड अपना योगदान दे रहा है । ग्रीन बजट को बढ़ावा देते हुए धामी सरकार ने हिमालय के इकोसिस्टम को सुरक्षित करने का काम किया है। मानव पशु संघर्षों को दूर करने के लिए भी प्रदेश सरकार, उसका पर्यावरण मंत्रालय, वन विभाग नीतिगत स्तर पर कार्य कर रहा है और तात्कालिक नहीं बल्कि स्थाई समाधान की दिशा में काम कर रहे हैं।

राम कुमार सिंह, मुख्य संपादक, दस्तक टाइम्स

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