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अपनी छवि सुधारने को डब्ल्यूएचओ को चाइना देगा 30 मिलियन डॉलर

विवेक ओझा

नई दिल्ली : 23 अप्रैल, 2020  को चीन ने विश्व स्वास्थ्य संगठन को 30 मिलीयन डॉलर सहायता देने की घोषणा करी है ताकि कोरोनावायरस की महामारी से वैश्विक लड़ाई में विश्व स्वास्थ्य संगठन अपने को असहाय महसूस न कर सके चीन ने यह मदद की घोषणा ऐसी घड़ी में की है जबकि अमेरिका ने विश्व स्वास्थ्य संगठन को वित्तीय सहयोग न देने की घोषणा की थी इस प्रकार चीन वैश्विक स्वास्थ्य वित्त पोषण के जरिए अपनी अन्तर्राष्ट्रीय छवि में सुधार करने की फिराक में भी लगता दिख रहा है। गौरतलब है कि संयुक्त राज्य अमेरिका विश्व स्वास्थ्य संगठन का सबसे बड़ा पोषक रहा है और उसने हाल में कोविड 19 संकट से निपटने में पिछले हफ्ते ही विश्व स्वास्थ्य संगठन को कुप्रबंधन का दोषी बताया था। चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गेंग शुआंग ने स्पष्ट किया है कि चीन इसके पहले भी 20 मिलियन डॉलर के योगदान की प्रतिबद्धता कर चुका है। अब वह 30 मिलियन डॉलर अतिरिक्त योगदान करने के लिए प्रतिबद्ध है । चीन ने साफ तौर पर कहा है कि वह विकासशील देशों के स्वास्थ्य प्रणालियों को मजबूती देने के उद्देश्य से ऐसे निर्णय कर रहा है। चीन ने यह भी कहा कि चीन का संयुक्त राष्ट्र संघ की इस एजेंसी के मिशन के लिए किया गया यह योगदान चीनी सरकार और उसके लोगों की विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रति विश्वास और समर्पण को प्रदर्शित करता है।

“गौरतलब है कि अमेरिका ने विश्व स्वास्थ्य संगठन पर आरोप लगाते हुए कहा है कि वह वाशिंगटन से भारी सहायता राशि प्राप्त करने के बावजूद भी बहुत अधिक चीन केंद्रित रुझान प्रदर्शित करने वाला रहा है। डोनाल्ड ट्रंप ने विश्व स्वास्थ्य संगठन पर आरोप लगाते हुए कहा कि इस संगठन ने चीन में कोरोना वायरस के शुरुआत और उसके गंभीरता से जुड़े आयामों पर पर्दा डालने का काम किया है। ट्रंप का कहना था कि अमेरिका के करदाता हर साल विश्व व्यापार संगठन को 400 मिलियन से 500 मिलियन के मध्य राशि सहयोग के रूप में देते हैं और इसके विपरीत चीन ने वार्षिक स्तर पर केवल 30 मिलियन अथवा इससे भी कम का योगदान किया है।

“डोनाल्ड ट्रंप का कहना है कि डब्लूएचओ ने चीन में फैले कोविड-19 (कोरोनावायरस) की गंभीरता को छिपाया। अगर संगठन ने बुनियादी स्तर पर काम किया होता तो यह महामारी पूरी दुनिया में नहीं फैलती और मरने वालों की संख्या भी काफी कम होती। ट्रंप ने विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रति आक्रामक होते हुए कहा था कि चीन के वुहान शहर में जब कोरोना वायरस के मामले सामने आए तो डब्लूएचओ उसका आकलन करने में असफल रहा। क्या डब्लूएचओ ने मेडिकल एक्सपर्ट के जरिए चीन के जमीनी हालात का आकलन किया? इस महामारी को वुहान में ही सीमित किया जा सकता था और काफी कम जानें जातीं।’’

उन्होंने कहा कि हजारों जानें बच जातीं और विश्व की अर्थव्यवस्था को भी नुकसान नहीं पहुंचता। संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने ट्रम्प के इस फैसले को सही नहीं माना था। उन्होंने कहा था कि विश्व स्वास्थ्य संगठन या अन्य मानवीय संगठन की फंडिंग कम करने का यह उचित समय नहीं है। डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक टेड्रोस अदनोम ने कहा था कि कोविड-19 के मामले में राजनीतिक रंग देने से केवल मौत के आंकड़े ही बढ़ेंगे।

कोरोनावायरस महामारी को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 22 अप्रैल को कहा है कि यह इतनी जल्दी दुनिया का पीछा छोड़ने वाला नहीं है। दुनिया को कोरोनावायरस से छुटकारा पाने में लंबा वक्त लगेगा। डब्ल्यूएचओ ने कहा कि दुनिया कोरोनावायरस से निपटने के अपने शुरुआती दौर में है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक टेड्रोस अदनोम ने कहा कि जिन देशों को लग रहा है कि उन्होंने कोरोना वायरस पर काबू पा लिया है वहां मामले दोबारा बढ़ रहे हैं। अफ्रीका, अमेरिका में कोरोना वायरस मामलों के बढ़ने में लगातार तेजी देखी जा रही है जो खतरे की घंटी है। जेनेवा में हुए प्रेस कॉन्फ्रेंस में विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक ने कहा कि पश्चिमी यूरोप में अधिकतर महामारी स्थिर है या घट रही है। हालांकि अफ्रीका, सेंट्रल और साउथ अमेरिका और पूर्वी यूरोप में संख्या कम है लेकिन वहां लगातार कोरोना वायरस के मामले बढ़ रहे हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक टेड्रोस ने कुछ अमेरिकी सांसदों की ओर से उनके इस्तीफे की मांग को नजरअंदाज करते हुए 22 अप्रैल को जेनेवा में कहा कि उन्हें उम्मीद है कि अमेरिका उनकी एजेंसी के वित्त पोषण पर रोक लगाने के फैसले पर पुनर्विचार करेगा। प्रतिनिधि सभा में रिपब्लिकन सांसदों के एक समूह ने पिछले हफ्ते सुझाव दिया था कि ट्रंप को टेड्रोस के इस्तीफा देने तक एजेंसी को धनराशि नहीं देनी चाहिए। टेड्रोस ने कहा, ‘मैं दिन और रात काम करता रहूंगा क्योंकि असल में यह सेवा का काम है और मुझ पर लोगों की जानों को बचाने की जिम्मेदारी है।’

(लेखक अंतरराष्ट्रीय व राष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ हैं)

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