अन्तर्राष्ट्रीय

ब्लू इकोनॉमी के विकास के नाम पर चीन मालदीव से बढ़ा रहा नजदीकियां

नई दिल्ली (विवेक ओझा): चीन और मालदीव के बीच एक बार फिर से नजदीकियां बढ़ती दिख रही हैं। 2018 से लेकर मालदीव के नए राष्ट्रपति मुईजू की ताजपोशी तक ऐसी बात नही थी और मालदीव इंडिया फर्स्ट पॉलिसी पर चलता था लेकिन मालदीव में सत्ता परिवर्तन के बाद चीन के साथ नजदीकी बढ़ने लगी। नए राष्ट्रपति मुइजू ने भारत के साथ संबंधों को विवादों के घेरे में डालते हुए हाल ही में चीन के राष्ट्रपति जिनपिंग के साथ मिलकर 20 समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं। मुइजु ने अपनी पहली विदेश यात्रा भी चीन की ही कर यह जता दिया कि वो भूतपूर्व राष्ट्रपति इब्राहिम सालेह की नीतियों पर नहीं चलेंगे और भारत को मालदीव में मजबूत पकड़ नहीं रखने देगें। मुइजु ने जिन 20 समझौतों पर हस्ताक्षर किया है उसमें से एक ब्लू इकोनॉमी पर है। बीजिंग की नजर मालदीव के जरिए हिंद महासागर क्षेत्र में अपनी पैठ जमाने और यहां मौजूद संसाधनों का दोहन करने की है और इसके लिए ब्लू इकोनॉमी के क्षेत्र में सहयोग के नाम पर मालदीव के क्षेत्रीय जल में चीन एक्सेस लेने की कोशिश में लगा है। चीन मालदीव को सपने दिखा रहा है कि हिंद महासागर में मत्स्य संसाधनों और अन्य समुद्री संसाधनों का दोहन कर दोनों देश लाभ ले सकते हैं। ऐसा ही एक सपना 2017 में मालदीव के तत्कालीन राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन को चीन ने दिखाया था और तब मालदीव पाकिस्तान के बाद दूसरा दक्षिण एशियाई देश बन गया था जिसने चीन के साथ मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किया था। एक बार फिर आर्थिक स्तर पर ब्लू इकोनॉमी के क्षेत्र में साझेदारी के मालदीव को आकर्षित करने में चीन सफल हुआ है।

गौरतलब है कि चीन-मालदीव द्विपक्षीय व्यापार 2022 में कुल मिलाकर 451.29 मिलियन अमेरिकी डॉलर था, जिसमें मालदीव से 60,000 अमेरिकी डॉलर के निर्यात के मुकाबले चीन का निर्यात 451.29 मिलियन अमेरिकी डॉलर था। वहीं 2022 में भारत और मालदीव के बीच वार्षिक द्विपक्षीय व्यापार 501.82 मिलियन डॉलर था। इसके अलावा वर्ष 2023 में मालदीव गए सर्वाधिक विदेशी पर्यटक भारतीय थे जिनकी संख्या 2,09,198 थी। मालदीव की अर्थव्यवस्था को हर तरह से मजबूती देने के बावजूद भारत को मालदीव से बदले में जो मिला वह बेहद निंदनीय है। चीन ने गत दिसंबर के दूसरे सप्ताह में दूसरी चाइना-इंडियन ओशन रीजन फोरम मीटिंग का आयोजन किया था, जिसमें उसने हिंद महासागर में अपनी ब्लू-इकोनॉमी स्ट्रेटजी का खाका खींचा था। इस बैठक में मालदीव भी शामिल था। वहीं दूसरी तरफ भारत भी अपने ब्लू इकोनॉमी विजन पर आगे बढ़ रहा है लेकिन इसके लिए वह अपने सागर विजन से कोई समझौता नहीं करता। हिंद महासागर के संसाधनों के धारणीय दोहन को ही बढ़ावा देने की बात भारत करता है जबकि चीन की इंडियन ओसियन को लेकर नीति मैक्सिमम रिसोर्स के दोहन की है भले ही उसका समुद्री जैवविवधिता पर कितना ही नकारात्मक असर पड़े।

मालदीव को यह समझना चाहिए कि दुनिया आज भारत के ब्लू इकोनॉमी संसाधनों को पहचानती है और जमैका में मुख्यालय वाले इंटरनेशनल सीबेड अथॉरिटी ने आधिकारिक तौर पर भारत को “अग्रणी निवेशक” के रूप में नामित किया है। भारत के ब्लू इकोनॉमी के सकारात्मक ढंग से विकसित करने की सोच को चीन की कब्ज़ा मानसिकता वाली सोच कभी नही पा सकती। भारत समुद्री और समुद्री क्षेत्रों में सतत विकास का समर्थन करने के लिए दीर्घकालिक रणनीति के एक हिस्से के रूप में “ब्लू ग्रोथ” का प्रबल समर्थक है। भारत अपनी व्यापक ब्लू इकोनॉमी पॉलिसी फ्रेमवर्क लाने की प्रक्रिया में है, जिसका उद्देश्य तटीय अर्थव्यवस्था, पर्यटन, समुद्री मत्स्य पालन, प्रौद्योगिकी, कौशल विकास, नौवहन, गहरे समुद्र में खनन और क्षमता निर्माण को समग्र रूप में कवर करना है। भारत के ब्लू इकोनॉमी विजन का उद्देश्य हिंद महासागर क्षेत्र की समुद्री आर्थिक गतिविधियों के भीतर स्मार्ट, टिकाऊ और समावेशी विकास और अवसरों को बढ़ावा देना और समुद्री संसाधनों, अनुसंधान और विकास के सतत दोहन के लिए उपयुक्त कार्यक्रम शुरू करना है।

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