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नेपाल में राजनीतिक उथल-पुथल के बाद चीन की सक्रियता

पवन कुमार अरविंद : नेपाल पर अपनी पकड़ ढीली होती देख वहां की घरेलू राजनीति में इन दिनों चीन की सक्रियता कुछ ज्यादा ही बढ़ गई है। चीन की यह सक्रियता स्पष्ट रूप से दिख भी रही है। 20 दिसम्बर को प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने चीन की अपेक्षाओं से परे जाकर आनन-फानन में नेपाली संसद के निचले सदन प्रतिनिधि सभा को भंग करने की राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी से सिफारिश कर दी। ओली की सिफारिश के दो घंटे के अंदर राष्ट्रपति ने नेपाली संसद को भंग करने की अधिसूचना जारी कर दी। अधिसूचना में कहा गया है, “राष्ट्रपति ने देश के संविधान के अनुच्छेद 76 और अनुच्छेद 85 के सेक्शन 1 एवं 7 के अनुसार संघीय संसद भंग किया है।” इसी के साथ राष्ट्रपति ने नए जनादेश के लिए 30 अप्रैल और 10 मई को दो चरणों में चुनाव कराए जाने की घोषणा की।

अधिसूचना के दो दिन बाद यानी 22 दिसम्बर को काठमांडू में चीन की राजदूत हाओ यांकी ने नेपाल की राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी से मुलाकात की। करीब घंटाभर चली इस मुलाकात में क्या बातचीत हुई, दोनों पक्षों की तरफ से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई। हालांकि काठमांडू पोस्ट में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक दोनों के बीच मौजूदा राजनीतिक घटनाक्रम पर चर्चा हुई। राष्ट्रपति से मुलाकात के दो दिन बाद यानी 24 दिसम्बर को हाओ यांकी ने नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष एवं पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ से मुलाकात की थी। वैसे, किसी भी देश में पदस्थ राजदूत आमतौर पर उस देश की आंतरिक राजनीति से दूर रहते हैं, लेकिन चीनी राजदूत यांकी अपनी तैनाती के बाद से ही नेपाल के नेताओं के साथ मेल-मुलाकात करती रही हैं। शायद वो अपने आका चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के सौंपे कार्य को ही पूरा कर रही हैं।

वहीं, चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के अंतरराष्ट्रीय मामलों के उप-मंत्री गुओ येज़ोऊ एक उच्चस्तरीय टीम के साथ 27 दिसम्बर को काठमांडू पहुंचे और नेपाल की राष्ट्रपति भंडारी और कार्यवाहक प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली से अलग-अलग मुलाकात की। येजोऊ ने 28 दिसम्बर को प्रचंड, माधव कुमार नेपाल एवं झालानाथ खनल (सभी पूर्व प्रधानमंत्री) से मुलाकात की। उसके बाद उन्होंने जनता समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष एवं पूर्व प्रधानमंत्री बाबूराम भट्टराई से भी मुलाकात की। गुओ येजोऊ ने 29 दिसम्बर को पूर्व प्रधानमंत्री एवं नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा से उनके आवास पर मुलाकात की। येजोऊ ने देउबा को चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के 100 साल पूरे होने पर अगले साल आयोजित होने वाले समारोह में आमंत्रित भी किया है। हालांकि देउबा को बुलाने की कोई योजना नहीं थी, लेकिन मुलाकात के दौरान येजोऊ ने उनको आमंत्रित करने का अचानक फैसला लिया। काठमांडू पोस्ट की एक रिपोर्ट के मुताबिक चीन की चार सदस्यीय यह टीम नेपाल में विभिन्न दलों के नेताओं का मन टटोल रही है। इसके साथ ही नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी के दोनों धड़ों को अपने गिले-शिकवे भुलाकर फिर से एक होने के लिए प्रयासरत है।

दरअसल नेपाल में बरसों के राजनीतिक उथल-पुथल और संघर्षों के बाद 20 सितम्बर, 2015 को नया संविधान अंगीकृत किया गया। नए संविधान के अनुसार नेपाल में नवम्बर-दिसम्बर, 2017 में प्रथम संसदीय चुनाव हुए। यह चुनाव केपी शर्मा ओली की पार्टी सीपीएन-यूएमएल और पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ की पार्टी सीपीएन-एमसी ने गठबंधन कर लड़ा था। नेपाली संसद के निचले सदन 275 सदस्यीय प्रतिनिधि सभा में सीपीएन-यूएमएल को 121 और सीपीएन-एमसी को 53 सीटें प्राप्त हुईं। नेपाली कांग्रेस को 63, राष्ट्रीय जनता पार्टी (नेपाल) को 17 और अन्य को 21 सीटें मिली थीं। चुनाव परिणाम के बाद सीपीएन-यूएमएल और सीपीएन-एमसी के मिलन से नई पार्टी नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी अस्तित्व में आई। दोनों दलों के विलय में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के अंतरराष्ट्रीय मामलों के उप-मंत्री गुओ येज़ोऊ ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी।

इस नई पार्टी, नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी के दो अध्यक्ष बने। 66 वर्षीय प्रचंड को कार्यकारी अध्यक्ष और 68 वर्षीय ओली को अध्यक्ष बनाया गया। वर्ष 2018 के पार्टी संविधान के अनुसार प्रचंड और ओली दोनों की पार्टी में बराबर की हैसियत थी। पार्टी की बैठकों की अध्यक्षता रोस्टर के अनुसार क्रमशः प्रचंड और ओली करते थे। चुनाव में अधिक सीटें जीतने के कारण ओली को प्रधानमंत्री का पद मिला। ओली ने 15 फरवरी 2018 को प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। शपथ ग्रहण समारोह में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता गुओ येज़ोऊ समेत कई प्रमुख लोग मौजूद थे। ओली सरकार ने 11 मार्च, 2018 को सदन में विश्वास मत हासिल किया। उनको 208 सांसदों का समर्थन मिला। सरकार गठन के बाद अपने-अपने लोगों को महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त कराने को लेकर ओली और प्रचंड के बीच खींचतान शुरू हो गई। सत्ता संघर्ष ज्यादा बढ़ जाने पर दोनों पक्षों के बीच मध्यस्थता कर चीनी राजदूत होऊ यांकी स्थिति को संभालती रहीं। कई बार ऐसा भी हुआ जब ओली और प्रचंड के बीच बातचीत तक बंद हो गई तो होऊ यांकी ने दोनों नेताओं की बातचीत भी कराई थी। पिछले तीन-चार महीनों में भारत के साथ सीमा विवाद और सरकार में कुछ नियुक्तियों समेत अन्य मुद्दों को लेकर दोनों पक्षों में सत्ता संघर्ष इस कदर बढ़ा कि यह किसी के संभालने से भी नहीं संभला। ओली ने मंत्रिमंडल की आपात बैठक बुलाकर प्रतिनिधि सभा भंग करने की सिफारिश कर दी।

ओली के फैसले के बाद नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी फिर दो खेमों में बंट गई है। एक का नेतृत्व ओली कर रहे हैं और दूसरे का प्रचंड। ओली और प्रचंड दोनों; नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी पर अपना-अपना दावा पेश कर रहे हैं। दोनों खेमे पार्टी के नाम और चुनाव चिह्न सूर्य को लेकर भी अपना दावा कर रहे हैं। दोनों एक-दूसरे के खिलाफ कार्रवाई भी कर रहे हैं। दोनों धड़ों ने चुनाव आयोग के सामने पार्टी पर नियंत्रण रखने के लिए बहुमत होने का दावा किया है, लेकिन अभीतक किसी को नहीं पता है कि किस धड़े के नेतृत्व वाली नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी को मान्यता मिलेगी। इस बीच 24 दिसम्बर को निवर्तमान गृहमंत्री राम बहादुर थापा पाला बदलते हुए ओली खेमे में चले गए। राजशाही के खिलाफ संघर्ष में माओवादी नेता थापा, प्रचंड के अहम सहयोगी रहे हैं। थापा का कहना है कि फिर से चुनाव कराने का फैसला क्रांतिकारी कदम है। थापा के ओली खेमे में जाने से प्रचंड को बड़ा झटका लगा है। वहीं नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी के अंतरराष्ट्रीय मामलों के प्रभारी पूर्व प्रधानमंत्री माधव कुमार नेपाल प्रचंड के साथ बने हुए हैं। कार्यवाहक प्रधानमंत्री ओली का कहना है कि उनके पास प्रतिनिधि सभा भंग करने की सिफारिश करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था। प्रचंड और माधव कुमार नेपाल की विकृत गतिविधियों के कारण यह स्थिति बनी है। प्रचंड और माधव कुमार नेपाल कम्युनिस्ट आंदोलन को नष्ट करने पर तुले हैं।

बहरहाल, नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी का इस तरह बंटना चीनी कम्युनिस्ट पार्टी को रास नहीं आया। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी दोनों खेमों को एक करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रही है। चीनी नेताओं के काठमांडू दौरे पर नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी के अंतरराष्ट्रीय मामलों के उपाध्यक्ष एवं प्रचंड के समर्थक राम कार्की का कहना है कि हमलोगों के बीच भाईचारे का रिश्ता न केवल चीनी कम्युनिस्ट पार्टी से है बल्कि भारत और बांग्लादेश की कम्युनिस्ट पार्टियों से भी है। यह एक रूटीन दौरा है। चीनी नेताओं का यहां आना-जाना लगा रहता है। कार्की का कहना है कि ओली ने संसद भंग करने की सिफारिश कर गलत कदम उठाया है। ओली; कम्युनिस्ट एजेंडा चलाने के बजाय नव उदारवाद की राह पर बढ़ रहे हैं।

चीन के प्रति नरम रुख रखने वाले ओली ने 20 दिसम्बर को अचानक पैंतरा बदलकर सबको आश्चर्यचकित कर दिया। काठमांडू पोस्ट की एक रिपोर्ट के मुताबिक ओली के रुख में यह परिवर्तन ऐसे ही नहीं आया, बल्कि इसका प्रमुख कारण 21अक्टूबर से 27 नवम्बर के बीच भारत के तीन शीर्ष अधिकारियों का नेपाल का दौरा है। पहले, भारत की खुफिया एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) के प्रमुख सामंत कुमार गोयल, फिर सेना प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवणे और उसके बाद विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला ने नेपाल का दौरा किया। इस दौरे से ओली को एक संबल मिला और उन्होंने चीन के दबाव से अपने को मुक्त किया।

(यह लेखक के स्वतंत्र विचार है)

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