दलाई लामा के लद्दाख जाने से चिढ़े चीन की और बढ़ेगी बौखलाहट
धर्मशाला : लद्दाख दौरे के बाद धर्मशाला पहुंचे दलाई लामा की अगली योजना अब अरुणाचल प्रदेश की यात्रा करने की है। दलाईलामा की इस यात्रा से चिढ़ने वाले ड्रैगन की बौखलाहट एक बार फिर बढ़ सकती है। क्योंकि वह अरुणाचल को अपना हिस्सा बताता रहा है। दलाई लामा ने मैक्लोडगंज स्थित मुख्य बौद्ध मंदिर में उनकी लंबी आयु के लिए आयोजित प्रार्थना सभा में अपनी अरुणाचल यात्रा की योजना के बारे में खुलासा किया।
दलाई लामा ने कहा, ”मेरा जन्म हिमालयी क्षेत्र में हुआ है।’इसलिए, हिमालयी क्षेत्रों में बसे लोगों के साथ मेरा गहरा नाता रहा है। हाल ही की मेरी लद्दाख, जास्कार और साथ लगते अन्य क्षेत्रों की यात्रा इसकी गवाह है। वहीं, आने वाले दिनों में मेरी अरुणाचल जाने की भी योजना है। इससे पहले दलाई लामा वर्ष अप्रैल 2017 में अरुणाचल प्रदेश गए थे। दलाईलामा की उस यात्रा पर भी चीन ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी। उस समय शांति दूत की यात्रा को लेकर चीन ने सीधे भारत को धमकी देनी शुरू कर दी थी। तब चीन के विदेश मंत्रालय ने कहा था कि भारत को दलाई लामा की यात्रा को तुरंत रोकना चाहिए। कहा था कि दलाई लामा की यात्राओं से बॉर्डर इलाकों में तनाव बढ़ेगा। वहीं, चीन ने इस मामले में बीजिंग में भारतीय राजदूत को बुलाकर भी विरोध दर्ज करवाया था।
चीन 14वें दलाई लामा तेंजिन ग्यात्सो को चीन विरोधी और अलगाववादी बताता आया है। दरअसल, 1959 में तिब्बत में स्वायत्तता की मांग को लेकर हुए विद्रोह के बाद दलाई लामा वहां से विस्थापित हो गए थे। तब उन्होंने तवांग के रास्ते भारत में प्रवेश किया। बाद में भारत ने हिमाचल प्रदेश में उन्हें शरण दी। वहीं, जिस तरह दलाई लामा अक्सर तिब्बत की आजादी का सवाल उठाते रहे हैं, उससे चीन ने उन्हें और भारत में उनकी गतिविधियों को हमेशा शक की नजर से देखा है।
दरअसल, तिब्बत में स्वायत्तता की मांग को कुचलने के लिये चीन तवांग पर नियंत्रण को बेहद अहम मानता है। दरअसल, तवांग में बड़े पैमाने पर तिब्बती आबादी मौजूद है। तवांग बौद्ध धर्म का महत्वपूर्ण केंद्र होने के साथ-साथ छठे दलाई लामा की जन्मस्थली भी है। तवांग सामरिक लिहाज से भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इस पर आधिपत्य के माध्यम से भूटान को दोनों तरफ से घेरा जा सकता है। ऐसा होने से सिलिगुड़ी कॉरीडोर तक चीन की पहुंच आसान हो जाएगी। यह दोनों ही स्थितियां जहां चीन को फायदा देंगी, वहीं भारत की क्षेत्रीय सुरक्षा के लिये बेहद घातक सिद्ध होंगी।