उत्तराखंड

लोकप्रियता में हरीश रावत से आगे निकले सीएम धामी!

देहरादून (गौरव ममगाईं)। देश में उत्तराखंड का विशेष आध्यात्मिक महत्त्व तो है ही, लेकिन राजनीतिक दृष्टि से भी इस राज्य के खास मायने रहे हैं। यहां प्रदेश का मुख्यमंत्री कोई भी रहा हो, मगर बड़े-बड़े राजनीतिक दिग्गज लोकप्रियता को लेकर अक्सर सवालों में घिरे नजर आते रहे हैं। किसी पर गढ़वाल मंडल तक सीमित रहने के आरोप लगे तो किसी को सिर्फ कुमाऊं में लोकप्रिय बताया गया। मौजूदा समय से पहले तक नजर दौड़ायें तो सिर्फ हरीश रावत ही ऐसे पूर्व मुख्यमंत्री रहे, जो अपने गृह क्षेत्र कुमाऊं के साथ ही पूरे गढ़वाल में भी खासे लोकप्रिय रहे हैं। मगर, खास बात ये है कि आज युवा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी लोकप्रियता के मामले में पूर्व सीएम हरीश रावत से आगे निकल गये हैं।

जी हां, सीएम धामी की कुमाऊं मंडल में तो धमक है ही, अब गढ़वाल के पहाड़ी जिलों में भी पुष्कर सिंह धामी का नाम लोगों की जुबां पर बसने लगा है। हाल ही में, सीएम धामी के उत्तरकाशी व टिहरी में हुए रोड-शो व जनसभा में उमड़ा जनसैलाब तो कुछ यही बयां कर रहा है। राजनीतिक विश्लेषक भी मान रहे हैं कि ऐसा जनसमर्थन सालों बाद देखने को मिल रहा है।

राज्य गठन के बाद से उत्तराखंड की राजनीति पर नजर डालें तो वर्ष 2002 में पहली नव-निर्वाचित कांग्रेस सरकार में तत्कालीन सीएम एनडी तिवारी पूरे प्रदेश में लोकप्रिय रहे, इसका मुख्य कारण यह भी था कि तिवारी राज्य गठन से पहले यूपी सरकार में भी मुख्यमंत्री रह चुके थे। उनका राजनीतिक व्यक्तित्व यूपी के समय से ही काफी बड़ा रहा था। इसके बाद 2007 में भाजपा सरकार में भुवनचंद्र खंडूड़ी सीएम बने, उनके पंचायतों में महिला आरक्षण को 50 प्रतिशत करने, राज्य लोकायुक्त कानून से जुड़े फैसले ऐतिहासिक रहे, लेकिन खंडूड़ी साफ-सुथरी छवि वाले नेता तो बने, लेकिन गढ़वाल के अलावा कुमाऊं में ज्यादा लोकप्रिय नहीं रहे। इसी सरकार में करीब डेढ़ साल के लिए रमेश पोखरियाल निशंक को भी सीएम बनने का अवसर मिला था। कहने को तो निशंक भी उत्तराखंड व देश की राजनीति में बड़ा नाम हैं, लेकिन राज्य में उनकी भी लोकप्रियता गढ़वाल तक सीमित रही। इसके बाद फिर बीसी खंडूड़ी सीएम बने। 2012 में कांग्रेस की सरकार में विजय बहुगुणा मुख्यमंत्री बने तो उन पर तो कांग्रेस नेताओं ने ही आरोप लगा दिये कि उनका राज्य में कोई जनाधार ही नहीं है। उन्हें पैराशूट सीएम बताया गया था। डेढ़ साल बाद हाईकमान ने हरीश रावत को सीएम बनाया।

हरीश रावत को जनता की नव्ज पकड़ने व राजनीतिक दांव-पेंच में माहिर माना जाता है। वह कुमाऊं से भी चुनाव लड़ते रहे हैं और गढ़वाल में भी हरिद्वार लोकसभा सीट पर मजबूत पकड़ रखते हैं। कुमाऊं का होने के बावजूद पूरे गढ़वाल में भी उनकी खासी लोकप्रियता देखने को मिलती रही है। इसे भाजपा भी नकार नहीं सकती। इसके बाद 2017 में भाजपा सरकार में त्रिवेंद्र सिंह रावत व तीरथ सिंह रावत क्रमवार सीएम बने, लेकिन वे गढ़वाल के कुछ जिलों तक सीमित रहे। 2021 में युवा विधायक पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला। शुरु में कई राजनीतिक प्रतिद्वंदियों ने सीएम धामी का उपहास बनाने का प्रयास किया, लेकिन पुष्कर सिंह धामी अपने मार्ग से विचलित नहीं हुए। उन्होंने आर्थिक, सुशासन, सामाजिक न्याय के क्षेत्र में कई कीर्तिमान स्थापति किये, जिनके कारण प्रदेश ने न सिर्फ देश में, बल्कि विश्व में भी अपने सामर्थ्य का लोहा मनवाया। सीएम का सरल एवं सौम्य स्वभाव के साथ ही ईमानदार व कठोर प्रशासक की छवि लोगों के दिल को छू रही है।

हाल ही में सीएम धामी ने गढ़वाल में टिहरी, उत्तरकाशी, देहरादून और कुमाऊं में बागेश्वर, चंपावत, ऊधमसिंहनगर में रोड-शो व जनसभाएं की, जिसमें हजारों की संख्या में जनसैलाब उमड़ा। उत्तरकाशी व टिहरी में हुए रोड-शो व जनसभाओं में उमड़ी भीड़ आकर्षण का केंद्र रहे। वहीं, गढ़वाल में सीएम धामी ने दीदी-भुली कार्यक्रम के जरिये उत्तराखंडियत को भी जिंदा रखने का प्रयास किया।

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