दस्तक-विशेषस्तम्भस्वास्थ्य

तनावजन्य भूख से बढ़ते मोटापे का यौगिक उपचार

डॉ. योगी रवि

नई दिल्ली: लोगों की आम धारणा है कि जो लोग हसमुख और प्रसन्न होते हैं वे मोटे होते हैं। परन्तु वैज्ञानिक शोधों ने स्पष्ट किया है कि अधिकान्शतः मोटापे का सम्बन्ध तनाव से ही है। तनाव की स्थिति में 44 प्रतिशत लोगों में भूख आवश्यकता से अधिक बढ जाती है परिणामतः मोटापा ऐसे लोगों की नियति बन जाती है।

तनाव तथा दबाव को न झेल पाने के कारण अधिक खाने लगते हैं। छरहरा, स्लिम होना, आज स्टेट्स सिंबल या क्रेज बन गया है परन्तु यही क्रेज रूग्णता का प्रतीक बन रहा है। एनोरेक्सिया नर्वोसा तथा बुलिमिया नर्वोसा दो खतरनाक दैहिक- मनः स्नाविक बीमारियाँ घर कर रही है। संपन्न परिवार की नवयुवतियाँ, महिलाएं एवं किशोरियाँ एनोरेक्सिया से ज्यादा प्रभावित हो रही है आधुनिक काल मे योग श्रेष्ठ चिकित्सा विकल्प बन कर उभरा है। योग में तनावजन्य भूख तथा उससे उत्पन्न रोगों के चिकित्सा की अनेको संभावनाएं विद्यमान हैं।

तनावजन्य भूख का कारण दैहिक – मनः स्नाविक (somatic psychoneurotic) है ! तनावजन्य भूख ऊर्जा के असंतुलन से आती है। जब तनाव और दबाव अनियंत्रण स्थिति में व्यक्ति समर्पण कर देता है और संतुलन पाने के लिए कुछ खाने की तरफ बढ़ता है, उसके खाने की स्थिति अनियंत्रित व अव्यवस्थित होने के कारण स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर पड़ता है और यही स्थिति अगर लगातार मनुष्य के पास बनी रहती है तो मनुष्य नए रोगों से भी ग्रसित होने लगता है।

तनावजन्य भूख से प्रभावित मनुष्य का प्रमुख लक्षण उसके व्यवहार में दिखता असंतुलन है। खाने की तेज गति तथा भोजन करते समय मन से कही और होना, उत्तेजित व्यवहार, अधिक क्रोध अथवा स्वयं मे खोये रहना आदि लक्षण दिखते हैं। तनावजन्य भूख से पीड़ित व्यक्ति का व्यवहार सामान्य से अलग होता है। वह व्यक्ति या तो अपने मानसिक द्वंद व विक्षोभों को पूरी तरह व्यक्त करता हुआ बर्हिमुखी होता है या द्वन्द वा कुंठा को अंदर ही दबाये हुए अर्न्तमुखी जीता है। तनावजन्य भूख से उत्पन्न प्रमुख रोग मोटापा है।

अनियंत्रित व अधिक खाते रहने से शरीर में अतिरिक्त कैलोरी एकत्रित होती रहती है, जो मोटापे को जन्म देती है। मोटापे के अलावा दैहिक – मनः स्नाविक रोग भूखजन्य तनाव से उत्पन्न होते हैं। एनोरेक्सिया नर्वोसा नामक रोग को दूसरे अर्थ में “ना खाने का पागल पन” भी कहते है। ठूस ठूस कर अनियंत्रित खाने की प्रक्रिया को बिन्जेस (Binges) कहते हैं।

तनाव से उत्पन्न भूख के उपचार के लिए प्रारम्भिक अभ्यासों में सूक्ष्म यौगिक व्यायाम महात्वपूर्ण है। धीरे धीरे आगे बढ़ते हुए सूर्य नमस्कार, जानुशिरासन, सर्वांगासन या शीर्षासन, त्रिकोणासन,सुप्त वीरासन, वज्रासन, धनुरासन व चक्रासन तक अभ्यास करें। ये अभ्यास तंत्रिकातन्त्र तथा हार्मोंस प्रणाली को पुनः व्यवस्थित रूप से सक्रिय बनाते हैं।

भस्त्रिका प्रभावी प्राणिक प्रयोग है। शरीर में रक्त संचार को तथा आक्सीजन को व्यवस्थित गति देने के लिए भस्त्रिका प्राणायाम महात्वपूर्ण है। तनाव तथा भूख कम करने तथा संकल्पशक्ति की वृद्धि के लिए नाड़ी शोधन प्राणायाम का प्रयोग सहायक है। साकारात्मक ऊर्जा के विकास के लिए उद्गीत प्राणायाम का अभ्यास प्रभावी प्रयोग है।

ज्ञानमुद्रा व प्राणमुद्रा का 40 मिनट तक प्रयोग भूख को नियंत्रित करने में सहायक है। उड्डियान बन्ध पाचन शक्ति को गति देने के साथ भूख को पहचानने के लिए महात्वपूर्ण है। सूत्रनेति के अभ्यास से प्राणिक ऊर्जा प्रवाह का मार्ग प्रशस्त होता है। सप्ताह में 3 दिन कुंजल क्रिया का अभ्यास पेट का शोधन कर जठराग्नि को बेहतर प्रदीप्त रखने में सहायक है। कपालभाँति से मानसिक शोधन में महात्वपूर्ण मदद मिलती है, तनाव कम होकर साकारात्मकता को दिशा मिलती है।

योग चिकित्सा का नियमित प्रयोग तनावजन्य तथा उससे उत्पन्न रोगों पर किया जाए, तो मोटापा तथा बढते मानसिक रोगों की श्रंखला को तोड़ा जा सकता है। आसन, प्राणायाम, मुद्रा, बन्ध तथा शोधन की क्रियाएँ महात्वपूर्ण रुप से तनाव व दबाव को कम कर साकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न करने में सहायक सिद्ध हुई हैं तथा तनाव जन्य भूख का पाचन से लेकर खाने की मात्रा नियंत्रण तक योग चिकित्सा बेहद प्रभावी रही है।

कुशल योग प्रशिक्षक के मार्गदर्शन में योग चिकित्सा को नियमितता मिले, तो समाज से तनाव व दबाव जन्य भूख से फैलते मोटापे व मानसिक रोगों को समाप्त किया जा सकता है तथा स्वस्थ समाज की संकलपना को गति दी जा सकती है।

(लेखक योग विशेषज्ञ व प्राकृतिक चिकित्सक हैं।)

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