दस्तक-विशेष

जुदा होंगी कांग्रेस और आप की राहें!

जितेन्द्र शुक्ला ‘देवव्रत’

लोकसभा चुनावों से पहले केन्द्र में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सत्तारुढ़ भाजपा (एनडीए) सरकार को पदच्युत करने के लिए बना इण्डिया गठबंधन सत्ता तो हासिल नहीं कर पाया लेकिन उसने भाजपा को अकेले अपने दम पर ‘मैजिक मार्क’ यानि बहुमत के आंकड़े को छूने से रोक लिया। इण्डिया गठबंधन के घटक दलों के लिए केवल यही एक उपलब्धि है। लेकिन वह नरेन्द्र मोदी को लगातार तीसरी बार सरकार बनाने से नहीं रोक पाया। एनडीए के घटक दलों तेलगू देशम पार्टी एवं जनता दल यूनाइटेड के बेहतर प्रदर्शन ने एक बार फिर नरेन्द्र मोदी को देश की कमान सौंपने में बहुत मदद की। अब इस अध्याय के समाप्त होने के बाद सवाल यह उठ रहा है कि सत्ता से दूर रहने के बाद क्या इण्डिया गठबंधन पहले की तरह एकजुट रह पायेगा। लोकसभा चुनाव के परिणाम के बाद कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच जो तल्खी दिखी, उससे नहीं लगता कि ‘सबकुछ ठीकठाक’ चल रहा है। मशहूर शायरा अंजुम रहबर का वह शेर इस मौके पर याद आता है कि, ‘मिलना था इत्तेफाक बिछड़ना नसीब था, वो उतनी दूर हो गया जितना करीब था।’ हालांकि नीट पेपर लीक मामले में इण्डिया गठबंधन के घटक दलों को एक बार फिर एकजुट कर दिया है। विपक्षी दलों को लग रहा है कि इस मुद्दे को लेकर केन्द्र की मोदी सरकार को आसानी से घेरा जा सकता है।

दरअसल, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने दिल्ली, हरियाणा और गुजरात में मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ा था मगर अब दोनों के नेता अलग-अलग रास्ते पर जाने की वकालत कर रहे हैं। कांग्रेस नेताओं का मानना है कि आप के साथ गठबंधन फेल हुआ है, इसलिए राज्यों के स्तर पर इस गठबंधन को लेकर विचार करना होगा। वास्तव में इस गठबंधन को सबसे बड़ा झटका दिल्ली में लगा, जहां यह कयास लगाये जा रहे थे कि भाजपा दिल्ली की सात में से सिर्फ दो ही सीटें जीत पायेगी लेकिन भाजपा ने एक बार फिर सभी सात सीटों पर कब्जा जमा लिया। दिल्ली में मिली हार के पीछे यह तर्क दिया गया कि दिल्ली की आप सरकार के खिलाफ लोगों के कथित गुस्से का खामियाजा कांग्रेस को भुगतना पड़ा। तो वहीं यह भी तर्क दिया गया कि आप कार्यकर्ताओं और नेताओं ने कांग्रेस प्रत्याशी के पक्ष में खुलकर प्रचार-प्रसार नहीं किया। दिल्ली में आप चार तो कांग्रेस तीन सीटों पर भाजपा से सीधा मुकाबला कर रही थी। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच दिल्ली, गुजरात और हरियाणा में सीटों का बंटवारा हुआ था। इसके तहत दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने नई दिल्ली, पूर्वी दिल्ली, दक्षिण दिल्ली और पश्चिम दिल्ली में प्रत्याशी उतारे थे जबकि कांग्रेस को तीन सीटें-उत्तर दिल्ली, उत्तर-पश्चिम दिल्ली और चांदनी चौक की सीटें मिली थीं। हरियाणा की 10 में से नौ सीटों पर कांग्रेस लड़ी थी जबकि कुरुक्षेत्र की सीट आम आदमी पार्टी के खाते में गई थी और गुजरात की 26 में से भरूच और भावनगर की दो सीटें आदमी पार्टी को दी गई थीं। आम आदमी पार्टी इनमें से कोई भी सीट नहीं जीत सकी।

उधर, पंजाब में दोनों पार्टियों ने अलग चुनाव लड़ा था। पंजाब में कांग्रेस को आप से अलग होकर लड़ने का फायदा मिला और कैप्टन अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू के बीच हुए विवाद से जो खाई बनी थी, उसे वह पाटने में सफल रही। यही वजह है कि अब दिल्ली विधानसभा चुनाव में दोनों पार्टियां एक दूसरे के खिलाफ खड़ी नजर आ सकती हैं। लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद आप की ओर से इसके संकेत भी दे दिए गए हैं। आप के वरिष्ठ नेता गोपाल राय ने कहा था कि कांग्रेस और आप का गठबंधन लोकसभा चुनाव के लिए था और दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए कोई गठबंधन किसी पार्टी से नहीं होगा। इसके अलावा इन दिनों दिल्ली की शिक्षा मंत्री आतिशी दिल्ली में जल संकट को लेकर अनशन कर रही हैं मगर कांग्रेस उसे लेकर भी आप पर हमलावर है। इस बीच दिल्ली के मंत्री सौरभ भारद्वाज ने कांग्रेस से नरमी बरतने की अपील की है। उन्होंने कांग्रेस को नसीहत देते हुए कहा है कि पार्टी को इंडिया गठबंधन को ध्यान में रखना चाहिए। कांग्रेस इंडिया गठबंधन के दलों के खिलाफ ही मोर्चा खोल देगी तो किसी भी मुद्दे पर एक राय कैसे बनेगी। हम संसद के अंदर केंद्र सरकार से कैसे निपटेंगे? कांग्रेस को ‘लक्ष्मण रेखा’ खींचनी चाहिए, खासकर उन राज्यों में, जहां कांग्रेस उन पार्टियों के खिलाफ है जो इंडिया गठबंधन का हिस्सा हैं।’ दरअसल, दिल्ली में जारी जल संकट को लेकर कांग्रेस भी आम आदमी पार्टी के खिलाफ खुलकर बोल रही है। कांग्रेस ने पिछले दिनों मटकी फोड़ प्रदर्शन भी किया था।

दरअसल, आम आदमी पार्टी को यह उम्मीद थी कि पार्टी मुखिया और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल के शराब घोटाले में जेल जाने के बाद उसे इसका लाभ चुनावों में मिलेगा। इस बीच केजरीवाल को चुनाव प्रचार के लिए सर्वोच्च अदालत से जमानत भी मिल गयी। तब आप नेताओं ने पूरे दमखम से कहा था कि अब उसके प्रत्याशियों को विजयश्री मिलना सुनिश्चित है लेकिन ऐसा हुआ नहीं। केजरीवाल जेल से बाहर तो आये और उन्होंने पार्टी प्रत्याशियों के पक्ष में प्रचार भी किया लेकिन अपेक्षित सफलता हासिल नहीं हो सकी। इस बीच केजरीवाल को एक बार फिर सलाखों के पीछे जाना पड़ गया। अब वर्तमान परिदृश्य को देखते हुए कांग्रेस आलाकमान का यह मानना है कि आप के साथ गठबंधन करने से उसे कुछ खास हासिल होने वाला नहीं है। ऐसे में उसे खासकर दिल्ली और हरियाणा विधानसभा चुनाव में ‘एकला चलो’ की नीति अपनानी पड़ेगी।

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