रायपुर: विगत 7 वर्षों में मोदी सरकार की प्राथमिकताएं समाज कल्याण की योजनाएं न होकर चंद पूंजीपतियों के मुनाफे पर केंद्रित है। अमीरों से लिया जाने वाला वेल्थ टैक्स खत्म कर डीजल पर 10 गुना सेंट्रल एक्साइज बढ़ाना मंहगाई का सबसे बड़ा कारण है। शिक्षा, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण, गैस सब्सिडी, खाद सब्सिडी जैसे समाज कल्याण के कार्यक्रमों में बजटीय आवंटन लगातार घटाए जा रहे हैं। यही कारण है कि पूंजीवादी नीतियों के चलते मोदी राज में असमानता बढ़ी है, गरीबी निरंतर बढ़ रही है, बेरोजगारी और भुखमरी इंडेक्स में हम लगातार पिछड़ रहे।
छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता सुरेंद्र वर्मा ने कहा है कि आम उपभोक्ता की परचेसिंग पावर बढ़ाने, अर्थव्यवस्था में लिक्विडिटी बढ़ाने के बजाय कारपोरेट के मुनाफे पर केंद्रित योजनाएं मोदी सरकार की प्राथमिकता है। गलत आर्थिक नीतियों के चलते व्यापार संतुलन लगातार बिगड़ रहा है। आयात बढ़ रही है, निर्यात में कमी हो रही है। श्रम आधारित सूक्ष्म, लघु और मझोले उद्योग नष्ट होते जा रहे हैं। हर सेक्टर नकारात्मक गोते लगा रहा है। बेरोजगारी बढ़ रही है, उत्पादकता घट रही है। महंगाई दर 9 परसेंट से पार है, बुजुर्गों और महिलाओं के आय का प्रमुख स्रोत बचत पर ब्याज है। परंतु मोदी सरकार ने जमा पर ब्याज की दर सेविंग में 3 परसेंट से कम और एफडीआर में 6 प्रतिशत से कम कर दिया है। गैस सब्सिडी अघोषित रुप से खत्म कर सिलेंडर के दामों में बेतहाशा वृद्धि से आम जनता पर दोहरी मार पड़ रही है।
हमारे देश की अर्थव्यवस्था की तासीर मिश्र अर्थव्यवस्था है, सरकारी उपक्रमों को मजबूत करने की आवश्यकता है निजी उद्योग भी रहे परंतु नवरत्न कंपनियां, सरकारी विभाग, सरकारी कंपनियां हमारी समृद्धि का प्रतीक है। सदैव लाभप्रद रहने वाले सरकारी उपक्रमों के भी एकतरफा निजीकरण से सरकारी नौकरियों में युवाओं के रोजगार के अधिकार छीने जा रहे हैं। एलआईसी, एयर इंडिया, बीपीसीएल, एमटीएनएल, शिपिंग, आईडीबीआई, पवनहंस, नीलांचल, एयरपोर्ट, बंदरगाह, नवरत्न कंपनियों को बेचने का निर्णय मोदी सरकार की आर्थिक बेबसी और लाचारी को प्रमाणित करता है। बिना किसी रोडमैप और आर्थिक फ्रेमवर्क के केवल पूंजीवाद की दिशा में देश को तेजी से धकेला जा रहा है। कारपोरेट टैक्स 25 परसेंट और भागीदारी फर्म पर 30 परसेंट यह विरोधाभास हमारे संविधान के निहित सिद्धांतों के खिलाफ है। टैक्स का आभार बड़े पूंजीपतियों पर अधिक होना चाहिए बजाय छोटी और मध्यम के।
प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता सुरेंद्र वर्मा ने कहा है कि 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुना करने का वादा था परंतु हुआ उल्टा कृषि की लागत दोगुनी हो गई। तथाकथित कृषि सुधारों का लाभ किसानों को नहीं बल्कि बाजार के अनुकूल कारपोरेट को फायदा पहुंचाना है। लगभग 67 जनता खेती से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से निर्भर है लेकिन जीडीपी में कृषि की हिस्सेदारी लगातार घट रही है (लगभग 13 प्रतिशत)। महंगे खाद-बीज और महंगे डीजल के चलते कृषि लागत विगत 3 वर्षों में दोगुनी हो चुकी है। आज देश के लगभग 70 प्रतिशत किसान अपनी लागत निकाल पाने की स्थिति में नहीं है।स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिश (लागत पर 50 प्रतिशत लाभ), बड़ी सिंचाई परियोजना, और खाद-बीज, कृषि सब्सिडी बढ़ाने की आवश्यकता है। मोदी सरकार के द्वारा आंकड़े हमेशा अपने राजनैतिक लाभ के हिसाब से चुने जा रहे हैं। विदेशों में भेजा जाने वाला धन बढ़ा है, बाहरी निवेश आने के बजाय उल्टे भारतीय कंपनियां बाहर जा रही हैं।
ईज आफ डूइंग बिजनेस में भारत का क्रम लगातार नीचे जा रहा है। बेरोजगारी, भुखमरी, भ्रष्टाचार और असमानता तेजी से बढ़ रहा है। देश के 85 प्रतिशत जनता किया है दिनों दिन कट रहे हैं वही प्रधानमंत्री पूंजीपति मित्रों की संपत्ति कई गुना बढ़ रही है। आयकर की बेसिक एक्सम्पशन लिमिट 2014 से आज तक वही ढाई लाख ही है इसे बढ़ाकर पांच लाख किया जाए। 80-ब् के तहत छूट की सीमा डेढ़ लाख से बढ़ाकर तीन लाख किया जाना चाहिए। स्वास्थ्य बीमा पर छूट 25 हजार से बढ़ाकर 50 हजार हो। बीमा और स्वास्थ्य बीमा प्रीमियम पर जीएसटी में छूट मिले। हाउस लोन पर ब्याज की छूट दो लाख से बढ़ाकर 4 लाख किया जाए। बचत खाते पर मिले ब्याज पर 80-टीटीए है के तहत छूट की लिमिट सभी के लिए 50 हजार हो। झूठ, भ्रम, जुमले, वादाखिलाफी और गलत बयानी छोड़कर आम बजट में वास्तविक राहत दे मोदी सरकार।