बेंगलुरु : कर्नाटक की कांग्रेस सरकार को राजभवन से जोर का झटका लगा। राज्य में 10 लाख रुपये से अधिक वार्षिक आय वाले मंदिरों पर आयकर लगाने से संबंधित विधेयक पर हस्ताक्षर करने से इन्कार करते हुए राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने इसे राज्य सरकार को वापस लौटा दिया। उन्होंने विधेयक और ज्यादा स्पष्टीकरण के साथ फिर से देने का निर्देश दिया है। साथ ही पूछा है कि क्या राज्य सरकार के पास अन्य धार्मिक संस्थानों को इसमें शामिल करने के लिए कोई प्रविधान है। राजभवन की ओर से कहा गया है कि कर्नाटक धार्मिक संस्थान और धर्मार्थ बंदोबस्ती अधिनियम 1997, और वर्ष 2011-2012 में इसमें जो संशोधन किया गया था, उस विधेयक पर हाई कोर्ट की धारवाड़ पीठ ने रोक लगा दी थी।
हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई, जिस पर उसने हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी थी। उसके बाद से मामला शीर्ष कोर्ट में चल रहा है। ऐसे में ये स्पष्टता जरूरी है कि क्या मामले के लंबित रहने के दौरान उसमें संशोधन किया जा सकता है या नहीं?
बता दें कि इस विधेयक में प्रविधान है कि कर्नाटक में एक करोड़ रुपये से अधिक की कमाई करने वाले मंदिरों से 10 प्रतिशत टैक्स वसूला जाएगा। वहीं, जिन मंदिरों की कमाई 10 लाख से एक करोड़ रुपये के बीच है, उन्हें पांच प्रतिशत टैक्स देना होगा। कर्नाटक सरकार के इस फैसले का प्रदेश भाजपा ने विरोध किया था और सिद्दरमैया सरकार पर हिंदू विरोधी होने का आरोप लगाया था। पार्टी का तर्क था कि आखिर हिंदुओं के धार्मिक स्थलों से ही टैक्स की वसूली क्यों, अन्य धार्मिक स्थलों से क्यों नहीं?