नई दिल्ली : कांग्रेस बेहद आक्रामक है। बात पार्टी और पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी की छवि बिगाड़ने की हो या भाजपा के राष्ट्रवाद पर सवाल उठाने की। पार्टी सड़क, पुलिस और अदालत तक भाजपा को चुनौती दे रही है। ऐसे में यह सवाल लाजिमी है कि आखिर कांग्रेस अचानक इतनी आक्रामक क्यों है। पार्टी के अंदर एक तबका इन तेवरों को कांग्रेस के अंदर बदलावों से जोड़ रहा है। इसकी असल वजह खुद को भाजपा के खिलाफ मुख्य विपक्षी दल के तौर पर स्थापित करना है। भाजपा के राष्ट्रवाद पर सवाल उठाकर पार्टी यह संदेश देना चाहती है कि भाजपा को किसी को राष्ट्रविरोधी कहने का हक नहीं है।
राजनीति के जानकार मानते हैं कि इन तेवरों के जरिए कांग्रेस यह संदेश देना चाहती है कि वह और उसके नेता भाजपा से नहीं डरते हैं। देश में सिर्फ वह अकेली पार्टी है, जो भाजपा से मुकाबला कर सकती है। क्योंकि, पिछले कुछ माह में तृणमूल कांग्रेस और टीआरएस ने विपक्षी खेमे कांग्रेस के दबदबे को चुनौती दी है। रोहतक की महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय में राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर राजेंद्र शर्मा कहते हैं कि भाजपा के राष्ट्रवाद पर सवाल उठाकर कांग्रेस यह बताने की कोशिश कर रही है कि राष्ट्रविरोधी दूसरे दल नहीं, बल्कि खुद भाजपा है।
कांग्रेस की लड़ाई सिर्फ भाजपा से नहीं है। पार्टी को दूसरे विपक्षी दलों के साथ भी अपनी जगह बरकरार रखने के लिए लड़ना पड़ रहा है। उदयपुर में हुए नवसंकल्प शिविर में पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने साफ कहा था कि भाजपा का मुकाबला क्षेत्रीय दल नहीं कर सकते। उनकी कोई विचारधारा नहीं है। इस रणनीति के तहत भी पार्टी इतनी आक्रामक है।
राहुल गांधी की फर्जी वीडियो साझा करने के मामले में पूर्व केंद्रीय मंत्री सहित भाजपा के कई सांसदों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करानी हो या राजस्थान में विधायकों की खरीद फरोख्त में दो साल बाद एसीबी का केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत को नोटिस भेजना। यह सब रणनीति का हिस्सा है। कांग्रेस के यह तेवर कार्यकर्ताओं में नया जोश भरने की रणनीति का भी हिस्सा है।
गुजरात और हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव बहुत दूर नहीं है। गुजरात में पार्टी के सामने भाजपा को सत्ता से बेदख्ल करना तो दूर खुद अपना पिछला प्रदर्शन दोहराने की चुनौती है। देखना है कि यह तेवर कितना फायदा पहुंचाते हैं। पार्टी यह साबित करने की कोशिश कर रही है पूरे देश में अकेले कांग्रेस सीधे तौर पर भाजपा से लड़ रही है। प्रोफेसर राजेंद्र शर्मा इसे पार्टी की मजबूरी भी मानते हैं। वह कहते हैं कि पिछले आठ साल में भाजपा से मुकाबले के लिए पार्टी ने कई रणनीति बनाई, पर वह कारगर नहीं रही और हार का मुंह देखना पड़ा।