आजादी में कांग्रेस के आंदोलन का योगदान है, लेकिन और किसी का नहीं है ये नैरेटिव ठीक नहीं – अमित शाह
नई दिल्ली। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बुधवार को ‘क्रांतिकारियों’ पुस्तक का विमोचन किया। इस दौरान गृहमंत्री ने वीर सावरकर का भी जिक्र किया और आजादी की लड़ाई में उनका भी अतुलनीय योगदान बताया। शाह ने कहा कि अब तक एक ही तरह की स्टोरी या ये कहे नैरेटिव हमारे देश में थोपा गया है। उन्होंने कहा कि मैं ऐसा नहीं कहता कि देश की आजादी में अहिंसक आंदोलन का हिस्सा नहीं है, या वो इतिहास का हिस्सा नहीं हैं, कांग्रेस के नेतृत्व में जो आंदोलन चला उसका भी बड़ा योगदान है। मगर और किसी का नहीं है, ये नैरेटिव ठीक नहीं है।
अमित शाह ने अपने संबोधन में कहा कि जब देश की आजादी की बात करते हैं, तो बहुत से लोगों और संगठन ने इसके लिए काम किया है। उन सबका सामूहिक फल है आजादी मिलना। इतिहास को पढ़ना और उसके संदेश को सटीक तरीके से आने वाली पीढ़ी को देना ये सभी का दायित्व होता है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ने जो पंच प्राण दिए हैं, उसमें विरासत पर गर्व और गुलामी से मुक्ति ये दो महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। जिस पीढ़ी को अपनी विरासत पर गर्व नहीं होता वो कभी देश को महान नहीं बना सकता।
अमित शाह ने ये भी कहा कि गुलामी के समय बनी मान्यताएं और परंपराओं को जो लेकर चलते हैं, वो राजनीतिक तौर पर तो गुलामी से मुक्त हो सकते हैं, परंतु देश की सोच को गुलामी से मुक्त नहीं कर सकते। हमारे इतिहास के लेखन को गुलामी की सोच से मुक्ति दिलाने की जरूरत है। 1857 के विद्रोह को सब एक गदर के तौर पर जानते थे। पहली बार वीर सावरकर ने उसे 1857 की क्रांति कहा।
शाह ने कहा कि इतिहास कई मान्यताओं को जन्म देता है, परंतु इतिहास हार जीत के आधार पर नहीं लिखा जा सकता। इतिहास को वास्तविक और प्रयासों के मूल्यांकन के आधार पर लिखना चाहिए। तभी इतिहास परिपूर्ण होता है। शसस्त्र क्रांति को भी कई इतिहासकार उसे विलुप्त करने में लगे रहे कई ने कम महत्व दिया। मगर उन्हें नहीं मालूम जब भगत सिंह को फांसी हुई तो कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक किसी के घर में चूल्हा नहीं जला। भगत सिंह की शहादत ने सभी लोगों में क्रांति की ज्वाला जलाई।