कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे का विवादित बयान, पीएम मोदी की आलोचना में रूस को घसीटा
दस्तक टाइम्स ब्यूरो। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने एक विवादित बयान दिया है, जिससे भारत का सबसे भरोसेमंद दोस्त रूस भड़क सकता है। दरअसल, खड़गे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना कर रहे थे, इस दौरान उन्होंने पीएम मोदी के साथ रूस के राष्ट्रपति पुतिन को भी घसीट लिया। वे यह भूल गए कि उनके इस बयान से भारत के सबसे बड़े मददगार देश रूस के साथ संबंध भी बिगड़ सकते हैं।
मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि पीएम नरेंद्र मोदी तानाशाहीपूर्ण शासन चला रहे हैं, अगर वह इस बार जीत गए तो अगली बार से भारत में चुनाव ही नहीं होंगे। यहां पुतिन स्टाइल में चुनाव होंगे। सारी की सारी सीटें भाजपा ही जीत जाएगी। कांग्रेस अध्यक्ष द्वारा पीएम मोदी की रूसी राष्ट्रपति पुतिन से तुलना करने का मकसद यही है कि पुतिन की तरह भारत में भी पीएम मोदी ही शासन चलाते रहेंगे।
जाहिर तौर पर कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे के इस बयान से राजनीतिक विश्लेषक भी हैरान हैं। किसी को भी खड़गे जैसे अनुभवी नेता से इस तरह के अपरिपक्व बयान की उम्मीद नहीं थी। क्योंकि किसी भी पार्टी को अपने राजनीतिक विरोधी की आलोचना के लिए विदेशी संबंधों को संकट में डालने की अनुमति नहीं दी जा सकती। इससे भले ही अमेरिका, ब्रिटेन जैसे पश्चिमी देश खुश हों, मगर सबसे भरोसेमंद सहयोगी रूस की नाराजगी भारत के राष्ट्रहित में नहीं होगी। कांग्रेस को यह नहीं भूलना चाहिए कि जिस रूस की आज वो आलोचना कर रहे हैं, उसके साथ संबंधों की शुरुआत जवाहर लाल नेहरू ने ही की थी। इंदिरा से लेकर राजीव गांधी की सरकार में भी रूस ही भारत की सबसे ज्यादा मदद करता आया। आज भी भारत-रूस के संबंध हर कसौटी पर खरे उतरते नजर आए हैं।
रूसी राष्ट्रपति पुतिन के कार्यकाल पर एक नजर
बता दें कि पुतिन सबसे पहले 1999 में रूस के पीएम बने। एक साल बाद कार्यवाहक राष्ट्रपति बने और फिर 2000 से 2008 तक राष्ट्रपति रहे। रूस में राष्ट्रपति का कार्यकाल 4-4 वर्ष का होने व एक व्यक्ति को दो कार्यकाल तक पद पर रहने का प्रावधान है, इसलिए पुतिन 2008 के बाद 2012 तक पीएम रहे। फिर 2012 के बाद से अब तक राष्ट्रपति के पद पर हैं। हालांकि, पश्चिमी देश इसे लेकर पुतिन पर तानाशाही का आरोप लगाते रहे हैं, लेकिन एक वर्ग इसे पश्चिमी देशों की पुतिन को अस्थिर करने व छवि खराब करने की साजिश करार देता रहा है। रूस का तर्क है कि अमेरिका नहीं चाहता है कि कोई भी देश उसे चुनौती देने की स्थिति में हो।