यूपी विधान परिषद में पहली बार 6 जुलाई को ‘शून्य’ पर पहुंच जाएगी कांग्रेस
अयोध्या : देश में खुद को मुख्य विपक्ष और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के विकल्प के रूप में स्थापित करने की कोशिशों में जुटी कांग्रेस यूपी में अस्तित्व के संकट से जूझ रही है. देश की सबसे पुरानी पार्टी आबादी के लिहाज से देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश की विधानसभा में दो सीटों पर है. अब यूपी विधानसभा में कांग्रेस का प्रतिनिधित्व शून्य सीटों पर पहुंचने की कगार पर है.
यूपी विधानसभा चुनाव में दो सीटों पर सिमटी कांग्रेस का प्रतिनिधित्व अब सूबे के उच्च सदन यानी विधान परिषद में शून्य पर पहुंचने वाला है. यूपी विधान परिषद में ऐसा पहली बार होगा जब कांग्रेस का कोई प्रतिनिधि सदन में नहीं होगा. विधान परिषद में कांग्रेस के एकमात्र सदस्य दीपक सिंह का कार्यकाल 6 जुलाई को समाप्त हो रहा है.
विधान परिषद सदस्य के रूप में दीपक सिंह का कार्यकाल समाप्त होने के बाद यूपी का उच्च सदन कांग्रेस मुक्त हो जाएगा. यानी इसके बाद यूपी विधान परिषद में कांग्रेस का कोई भी सदस्य विधान परिषद में नहीं होगा. यूपी के उच्च सदन में कांग्रेस कोई अचानक ही शून्य पर नहीं पहुंच रही, इसके पीछे वजह है पार्टी का यूपी में लगातार कमजोर होते जाना.
1989 तक पूरी तरह रहा कांग्रेस का वर्चस्व
यूपी में कांग्रेस का साल 1989 तक पूरी तरह वर्चस्व था. हालांकि 1977 और 1989 में विधान परिषद के नेता का पद भारतीय जनता पार्टी यानी बीजेपी के पास था. कांग्रेस के अर्श से फर्श तक पहुंचने का सफर की बात करें तो पिछले 33 साल में कांग्रेस पार्टी ऐसे सिकुड़ती चली गई कि 6 जुलाई को उसका प्रतिनिधित्व शून्य पर पहुंच जाएगा. ऐसा पहली बार होगा जब यूपी की विधान परिषद में कांग्रेस का कोई प्रतिनिधि नहीं होगा.
विधानसभा में भी अस्तित्व बचाने की चुनौती
यूपी विधान परिषद में प्रतिनिधित्व खत्म हो ही रहा है, कांग्रेस के सामने चुनौती विधानसभा में भी अस्तित्व बचाने की चुनौती होगी. यूपी विधानसभा चुनाव में इस बार कांग्रेस महज दो सीटों पर ही सिमट गई. कांग्रेस के सिर्फ दो ही उम्मीदवार विधानसभा पहुंच पाए.
महराजगंज के फरेंदा से वीरेंद्र चौधरी और रामपुर खास से आराधना मिश्रा मोना ही हाथ के साथ से यूपी विधानसभा पहुंच पाईं. राष्ट्रीय लोक दल और निषाद पार्टी जैसी क्षेत्रीय पार्टियों का प्रदर्शन भी कांग्रेस से बेहतर रहा था. कांग्रेस के सामने अब अगले विधानसभा चुनाव तक अपने विधायकों को सहेजकर रखने की चुनौती भी होगी.