नई दिल्ली: कोरोना के नए वेरिएंट ओमिक्रोन के संभावित खतरे को देखते हुए अरविंद केजरीवाल सरकार ने दिल्ली आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (डीडीएमए) को एक प्रस्ताव दिया है। इसके तहत दिल्ली मेट्रो सेवाओं, बसों, सिनेमा हॉल, मॉल, धार्मिक स्थलों, रेस्तरां, स्मारकों, सार्वजनिक पार्कों, सरकारी कार्यालयों और सार्वजनिक स्थानों पर बिना टीकाकरण वाले लोगों के प्रवेश पर 15 दिसंबर से प्रतिबंध लगाया जा सकता है।
इसी प्रस्ताव में उन लोगों के सार्वजनिक स्थानों पर प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने का सुझाव दिया गया है, जिन्होंने कोविड-19 वैक्सीन की एक खुराक भी नहीं लगवाई है। वहीं टीकाकरण कराने वालों को नकद पुरस्कार या छूट जैसे प्रोत्साहन देने का सुझाव दिया गया है। यह सुझाव कई यूरोपीय देशों द्वारा अपनाए गए रास्ते का अनुसरण करता है। जहां एक वैक्सीन पासपोर्ट प्रणाली बनाई गई है। इसमें बिना टीकाकरण वाले लोगों के लिए सार्वजनिक स्थानों तक पहुंच को सीमित किया गया है। वे टीकाकरण के लिए लोगों को कई तरह के प्रोत्साहन भी देते हैं।
हालांकि प्रतिबंध के प्रस्ताव पर फिलहाल चर्चा नहीं हुई और इसे डीडीएमए की अगली बैठक में लाए जाने की संभावना है। दिल्ली सरकार के एक अधिकारी ने बुधवार को स्पष्ट किया कि सार्वजनिक स्थानों पर बिना टीकाकरण वाले लोगों की पहुंच को सीमित करने के प्रस्ताव पर फिलहाल कोई निर्णय नहीं लिया गया है। हालांकि कई अधिकारियों ने इस प्रस्ताव को अपना समर्थन दिया है।
एक अधिकारी ने कहा कि चूंकि अधिकांश आबादी को बिना किसी प्रतिकूल प्रभाव के टीके लगाए गए हैं, इसलिए ऐसा कोई कारण नहीं है कि जिसकी वजह से लोगों को टीका लगाने से डरना चाहिए। यह एक महामारी है, और जब तक सब सुरक्षित नहीं हैं तब तक कोई भी सुरक्षित नहीं है। इसका मतलब है कि हर किसी को अपनी और अपने संपर्क में आने वाले लोगों की सुरक्षा के लिए वैक्सीन लगानी चाहिए।’
एक अन्य अधिकारी ने दावा किया कि इस तरह के प्रतिबंधों को लागू करना मुश्किल नहीं होगा क्योंकि टीकाकरण के बाद के प्रमाणपत्रों का इस्तेमाल किया जा सकता है। अधिकारी ने कहा कि यदि प्रस्ताव को स्वीकृति मिलती है और इसे लागू किया जाता है, तो लोगों को केवल टीकाकरण प्रमाण पत्र ले जाना होगा और मांगे जाने पर इसे प्रस्तुत करना होगा।
बता दें कि अक्टूबर में, केरल में अधिकारियों ने बिना टीकाकरण वाले लोगों को शैक्षणिक संस्थानों और हॉस्टलों में प्रवेश करने से रोक दिया था। कई लोगों ने इस आदेश को केरल हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया था कि उन्होंने प्रतिकूल प्रभावों के डर से वैक्सीन नहीं लगाई है और उनका टीका न लगाने का अधिकार, जीवन के अधिकार और निजता के अधिकार के तहत संरक्षित है। अदालत ने केरल सरकार के आदेश को बरकरार रखते हुए कहा था कि कोरोना वायरस महामारी जैसी परिस्थितियों में जनहित को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।