प्रवासी मजदूर: देश की कमजोरी या देश की ताकत?
स्तम्भ: “जंजीर की मजबूती उसकी मजबूत कड़ियों से नहीं बल्कि उसकी सबसे कमजोर कड़ी से ही आंकी जायेगी।”
यह बात किसी देश की विकास यात्रा के बारे में लागू होती है। अपने देश की सबसे ज्यादा असुरक्षित और कमजोर कड़ी है “असंगठित क्षेत्र में जिंदगी” को किसी तरह अपने आतंरिक, व्यक्तिगत और सामाजिक ताकत से चला रहे मजदूर, कारीगर, छोटे सीमांत किसान और छिट-फूट अनियमित व्यापार से जिंदगी चला रहे स्व-रोजगारिये लोग।”
इनकी संख्या अनुमानतः 45 करोड़ तो पड़ती ही है। वे सामाजिक, सांस्कृतिक दृष्टि से समृद्ध और आर्थिक दृष्टि से विपन्न है। यही हमारे देश की वह कमजोर कड़ी है। इसे मजबूत किये बगैर केवल जीडीपी ग्रोथ रेट के आंकड़ों से भारत आर्थिक माहाशक्ति नहीं हो सकता। इस क्रम मे यह भी ध्यान देने की जरूरत है कि विकास के बारे मे कई बार आंकड़ों का खेल भुलावा और छलावा का राजनैतिक खेल बन जाता है। पढ़े लिखे जानकार लोगों के बुद्धिविलास की विषयवस्तु बन जाती है। इस कमजोर कड़ी की स्थितियों को जानना, समझना जरूरी है। तभी जमीनी जरूरते समझ मे आयेंगी।
“इनकी जीवनशैली में मोबाइल, बैंक अकाउंट का उपयोग कुछ अलग तरह से होता है। गाँव-घर से संपर्क का मुख्य माध्यम बन जाता है, साथ ही मन तकलीफों से भटकाने या मन लगाने के उपकरण के नाते मनोरंजन की विधा मे काम आता है।”
समाचार पत्रों, वेबपोर्टल को डाउनलोड करने के काम नही आता। असंगठित लोगों के पास गाँव-घर, पैसे भेजने के भी अपने अनौपचारिक इंतजाम होते है। सोशल डिस्टेंसिंग, घरों मे रहने का आग्रह आदि शब्द इस धरातल पर अनबूझ रह जाते है। उनको अपने घर का बजट, कमाई मे खर्च की बजाय बचत का गणित तो बैंकों और सरकारी पैसे पर निर्भर कॉर्पोरेटिये से बेहतर समझ मे आता है। “वे आत्मनिर्भर स्वभाव संस्कार से हैं, नीति निर्देश से नहीं।”
“उन्हें, सहयोग, संबल की जरुरत है। इस आबादी को केंद्र बिन्दु बनाकर सोचेंगे तो विकास की वर्णमाला का “क”, “ख”, “ग” होगा कि इस वर्ग के हर बच्चे को रोज आधा किलो दूध, आधा किलो फल और आधा किलो सब्जी इसे आधार बनाकर विकास की योजना, बजट, धन-साधन आवंटन, देसी तरीके से हो न कि घुमा-फिराकर द्राबिड़ी प्राणायाम से। अभी कोरोना संकट में सबके बड़ी जरुरत है कि इस तबके के हाथ पैसा सीधे पहुंचे।”
कोरोना के बाद की स्थितियों में भारत के आर्थिक विकास के अनोखे क्रम में कृषि, गोपालन वाणिज्य को महत्त्व देना होगा और उसमें गोवंश को प्रतिष्ठा का स्थान देना होगा। उसकी चर्चा फिर कभी।