उप्र सरकार की अपील पर आगे विचार की जरूरत: न्यायालय
लखनऊ। उच्चतम न्यायालय ने लखनऊ में सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों के पोस्टर लगाने को ‘एक महत्वपूर्ण मुद्दा’ बताते हुये बृहस्पतिवार को उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ उप्र सरकार की अपील तीन न्यायाधीशों के पास विचार के लिये भेज दी। शीर्ष अदालत ने अपने आदेश में कहा, ‘‘अपील पर ‘आगे विस्तार से विचार की आवश्यकता है।’’
न्यायमूर्ति उदय यू ललित और न्यायमूर्ति अनिरूद्ध बोस की अवकाश कालीन पीठ ने इस तथ्य का संज्ञान लिया कि इस मामले में निजता के अधिकार और दंगाई से क्षतिपूर्ति की भरपाई के बारे में शीर्ष अदालत के पहले के निर्देशों के मुद्दे शामिल हैं। पीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘‘इस मामले के स्वरूप और इसमें शामिल मुद्दे के महत्व को देखते हुये, हमारी राय में इसे जल्द से जल्द और संभव हो तो 16 मार्च से शुरू हो रहे सप्ताह के दौरान ही कम से कम तीन न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष पेश किया जाये।’’
पीठ ने शीर्ष अदालत की रजिस्ट्री को निर्देश दिया कि इस मामले के रिकार्ड को तत्काल प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे के समक्ष पेश किया जाये ताकि इस मामले में समाहित विवाद को देखते हुये इस पर आने वाले सप्ताह में सुनवाई करने और विचार के लिये प्रधान न्यायाधीश उचित संख्या वाली पीठ गठित कर सकें। शीर्ष अदालत ने इस मामले में पक्षकार बनने के इच्छुक उन लोगों को राज्य सरकार की अपील में पक्षकार बनाने की छूट प्रदान की है जिनके नाम, तस्वीरें और पते इन पोस्टरों में दर्शाये गये हैं।
पीठ ने कहा कि इस मामले में यदि ऐसे लोग, जिनके नाम, तस्वीर और पते पोस्टर में हैं, पक्षकार बनने के लिये आवेदन दायर करते हैं तो उनके आवेदनों को भी मुख्य मामले के साथ ही सूचीबद्ध किया जाये। शीर्ष अदालत ने उप्र सरकार की ओर से सालिसीटर जनरल तुषार मेहता और इन पोस्टरों में दर्शाये गये कथित प्रदर्शनकारियों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ताओं अभिषेक मनु सिंघवी, कॉलिन गोन्साल्विज और सी यू सिंह की दलीलों का भी संज्ञान लिया।
इस मामले में सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने राज्य सरकार से कहा कि ऐसा कोई कानून नहीं है जो सड़क किनारे लगाये गये पोस्टरों में उन व्यक्तियों का विवरण प्रदर्शित करने की कार्रवाई का समर्थन करता हो जो नागरिकता संशोधन कानून के विरोध के दौरान हिंसा करने के आरोपी हैं। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने नौ मार्च को अपने आदेश में प्रशासन को इन पोस्टरों को हटाने का ही नहीं बल्कि उसे 16 मार्च से पहले अपनी अनुपालन रिपोर्ट दाखिल करने का भी निर्देश दिया था।