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आपका दिमाग भी कमजोर कर रहा है घातक प्रदूषण

नई दिल्ली : हवा में बढ़ते प्रदूषण से आपके दिमाग के काम करने की क्षमता पर भी असर पड़ता है। प्रदूषण का स्तर बढ़ने से लोगों की प्रोडक्टिविटी भी घटती है। ये तथ्य क्वींसलैंड यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में हुए एक अध्ययन में सामने आए हैं। रिसर्च में पाया गया है कि कुछ समय तक ही गंभीर वायु प्रदूषण वाले इलाके में रहने वाले लोगों के दिमाग की क्षमता पर असर पड़ता है।

क्वींसलैंड यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स की शोधकर्ता डा. एंड्रा ला नाउजे के मुताबिक डेटा का अध्ययन करने पर पता चलता है कि वायु प्रदूषण ने कामकाजी युवाओं की क्षमताओं को नुकसान पहुंचाया है। दिमाग हर छोटे-बड़े काम करने की प्रक्रिया को याद के तौर पर स्टोर करता है। प्रदूषण के चलते दिमाग की इस क्षमता पर असर पड़ता है। वहीं लोगों को कुछ नया सीखने में भी ज्यादा समय लगता है। हवा में मौजूद PM 2.5 कणों का आकार बहुत छोटा होता है। इतना छोटा कि ये सांसों के साथ फेफड़ों तक पहुंच जाते हैं। यहां से खून में मिल कर दिल तक पहुंच जाते हैं। जिससे दिल की बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।

रिसर्च में मिले रिजल्ट के मुताबिक वायु प्रदूषण का सबसे ज्यादा असर 50 से कम उम्र के लोगों पर दिखा। प्रदूषण के चलते इन लोगों की नौकरी के दौरान दिन-प्रतिदिन के प्रदर्शन पर भी असर पड़ने की संभावना है। रिसर्च में पाया गया कि प्रदूषण का सबसे ज्यादा असर लोगों की याददाश्त पर पड़ता है। इसका साफ मतलब है कि प्रदूषण के चलते दिमाग पर जो असर होता है उससे सबसे अधिक ऐसे व्यवसाय या कामों पर असर होने की संभावना है जिसमें भरोसे या याददाश्त की जरूरत होती है।

डा. आंद्रा ला नाउजे के मुताबिक ऑस्ट्रेलिया में आए दिन झाड़ियों में बड़े पैमाने पर आग लगने के मामले सामने आते हैं। इस आग के चलते ऑस्ट्रेलिया के कामकाजी युवाओं की याददाश्त पर असर देखा गया है। 2019-2020 में झाड़ियों में लगी आग के चलते ऑस्ट्रेलिया के लोगों को भयानक वायु प्रदूषण का सामना करना पड़ा। डॉ ला नौज़ के मुताबिक व्यक्तिगत और नीतिगत उपायों के प्रदूषण के प्रभावों को कम किया जा सकता है।

खतरनाक वायु प्रदूषण से जूझते हालात के बीच नासा की ओर से कुछ तस्वीरें जारी की गई हैं। नासा की ओर से जारी की गई तस्वीर को देख कर ऐसा लगता है कि पंजाब और हरियाणा की ओर से धुएं की एक नदी दिल्ली और एनसीआर की ओर बह रही है। नासा की ये सेटलाइट तस्वीर 11 नवम्बर को ली गई है।
नासा के मार्शल स्पेस फाइट सेंटर के वैज्ञानिक पवन गुप्ता के मुताबिक 11 नवम्बर को सेटलाइट से ली गई इस तस्वीर में दिख रही धुएं की नदी की चपेट में लगभग दो करोड़ लोग आ गए। इतनी बड़ी संख्या में लोगों को एक दिन में बेहद खतरनाक प्रदूषण का सामना करना पड़ रहा है। नासा की ओर से जारी की गई रिपोर्ट के मुताबिक इस साल मानसून के देरी से लौटने के चलते पिछले सालों की तुलना में इस साल हवा में प्रदूषण का स्तर देरी से बढ़ा। पंजाब, हरियाणा के अलावा बड़े पैमाने पर उत्तरी पाकिस्तान में बड़े पैमाने पर पराली जलाने के चलते हवा में प्रदूषण का तेजी से बढ़ा।

दिल्ली की हवा में नवम्बर में PM 2.5 का स्तर 400 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर तक पहुंच गया। विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशा-निर्देशों के मुताबिक हवा में PM 2.5 का 24 घंटे में औसत 15 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से ज्यादा नहीं होना चाहिए। हवा में प्रदूषण का स्तर अधिक होने से लोगों को सांस लेने में दिक्कत, कफ, सीने में भारीपन और प्रदूषण बहुत अधिक होने पर दिल की बीमारी हो सकती है।

अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन के मुताबिक हवा प्रदूषण अधिक होने से बुजुर्ग लोगों में दिल की बीमारी का खतरा बढ़ जाता है। अगर कोई व्यक्ति घातक वायु प्रदूषण के हालात में कम समय के लिए भी रहता है तो उसमें भले ही हार्ट अटैक का खतरा कम हो लकिन स्ट्रोक और दिल की अन्य बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। 2020 में एक रिसर्च में पाया गया कि हवा में सूक्ष्म कणों या पार्टिकुलेट मैटर अधिक होने से लोगों में पार्किंसन रोग का खतरा बढ़ जाता है। लंबे समय तक वायु प्रदूषण के चलते धमनियों में क्लॉटिंग, ब्लड प्रेशर, और शुगर जैसी बीमारियां हो सकती है। वॉशिंगटन विश्वविद्यालय के फिजीशियन और महामारी विशेषज्ञ Dr. Joel D. Kaufman ने 2016 में अपनी एक रिसर्च के जरिए साफ कर दिया कि महानगरों में रहने वाले लोगों की धमनियां हवा में मौजूद PM 2.5 और नाइट्रोजन ऑक्साइड के चलते सख्त हो जाती हैं।

पर्टिकुलेट मैटर या कण प्रदूषण वातावरण में मौजूद ठोस कणों और तरल बूंदों का मिश्रण है। हवा में मौजूद कण इतने छोटे होते हैं कि आप नग्न आंखों से भी नहीं देख सकते हैं। कुछ कण इतने छोटे होते हैं कि इन्हें केवल इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप का उपयोग करके पता लगाया जा सकता है। कण प्रदूषण में पीएम 2.5 और पीएम 10 शामिल हैं जो बहुत खतरनाक होते हैं। पर्टिकुलेट मैटर विभिन्न आकारों के होते हैं और यह मानव और प्राकृतिक दोनों स्रोतों के कारण से हो सकता है। स्रोत प्राइमरी और सेकेंडरी हो सकते हैं। प्राइमरी स्रोत में ऑटोमोबाइल उत्सर्जन, धूल और खाना पकाने का धुआं शामिल हैं। प्रदूषण का सेकेंडरी स्रोत सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड जैसे रसायनों की जटिल प्रतिक्रिया हो सकता है। ये कण हवा में मिश्रित हो जाते हैं और इसको प्रदूषित करते हैं। इनके अलावा, जंगल की आग, लकड़ी के जलने वाले स्टोव, उद्योग का धुआं, निर्माण कार्यों से उत्पन्न धूल वायु प्रदूषण आदि और स्रोत हैं। ये कण आपके फेफड़ों में चले जाते हैं जिससे खांसी और अस्थमा के दौरे पढ़ सकते हैं। उच्च रक्तचाप, दिल का दौरा, स्ट्रोक और भी कई गंभीर बीमारियों का खतरा बन जाता है।

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