दस्तक-विशेष

नोबेल पुरस्कार विजेता और डायमंड ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स कहे जाने वाले डॉक्टर सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर की पुण्यतिथि

देहरादून ( विवेक ओझा) : महान भारतीय खगोलशास्त्री और रॉयल सोसाइटी ऑफ लंदन के सुप्रसिद्ध फेलो सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर का नाम विज्ञान के क्षेत्र में कौन नही जानता। आज उनकी पुण्यतिथि है और उनके कुछ ख़ास भूमिका/ योगदानों का स्मरण करना जरूरी है।डॉक्‍टर सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर उन भारतीयों में से हैं जिन्‍हें नोबेल पुरस्‍कार से सम्‍मानित किया गया था। 19 अक्टूबर 1910 को लाहौर में जन्‍मे चंद्रशेखर भारतीय-अमेरिकी खगोलशास्त्री थे। वह सीता बालकृष्णन और चंद्रशेखर सुब्रह्मण्यम अय्यर की 10 संतानों में से एक थे। 1918 में वो चेन्नई आ गए।

उन्होंने अपना पहला साइंटिफिक पेपर कॉम्पटन स्कैटरिंग एंड न्यू स्टेटिस्टिक्स प्रकाशित कराया। अपने रिसर्च पेपर की गुणवत्ता के आधार पर ही उन्हें कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में आर एच फाउलर का रिसर्च स्टूडेंट बनने का अवसर मिला जो उनके अनुसंधान के क्षेत्र में एक टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ। उन्होंने 1933 में कैंब्रिज से ही पीएचडी की डिग्री भी हासिल की। इससे पूर्व उन्होंने एक साल के लिए कोपेनहेगन के इंस्टीट्यूट में भी अध्ययन किया था।

फिजिक्‍स पर की गई रिसर्च के लिए उन्हें विलियम ए फाउलर के साथ संयुक्त रूप से वर्ष 1983 भौतिकी का नोबेल पुरस्कार दिया गया था। वर्ष 1934 में महज 24 वर्ष की आयु में ही उन्होंने तारों के गिरने और लुप्त होने की गुत्‍थी सुलझा ली थी। 11 जनवरी 1935 को लंदन की रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसाइटी में उन्‍होंने इसको लेकर अपना रिसर्च पेपर भी सब्मिट कर दिया था। इस रिसर्च के मुताबिक सफेद बौने तारे जिसको व्हाइट ड्वार्फ स्‍टार कहा जाता है वो एक निश्चित द्रव्यमान यानी डेफिनेट मास हासिल करने के बाद अपने भार में वृद्धि नहीं कर सकते है।

यही वजह है कि वो अंत में ब्‍लैक होल में तब्‍दील हो जाते हैं। उनकी रिसर्च में कहा गया था कि जिन तारों का डेफिनेट मास ( निश्चित द्रव्यमान) आज सूर्य से 1.4 गुना अधिक होगा, वे तारे आखिर में सिकुड़ कर बहुत भारी हो जाएंगे। इस तरह से वो अपने अंत तक पहुंच जाते हैं। 

डॉक्टर सुब्रमण्यन चंद्रशेखर को 1958 में अमेरिकी नागरिकता मिली थी। वो शिकागो विश्वविद्यालय में भी रिसर्च एसोसिएट रहे। मोर्टन डी हॉल डिस्टिंग्विश्ड प्रोफेसर ( 1952) रहे। 1966 में उन्होंने यूएस नेशनल मेडल ऑफ साइंस प्राप्त किया था। उन्हें रॉयल सोसाइटी ऑफ लंदन का भी रॉयल मेडल मिला था। उन्होंने मैथमेटिकल थियरी ऑफ ब्लैक होल्स ( 1974- 83) पर काम किया था। 1983 में उन्हें फिजिक्स में नोबेल पुरस्कार विजेता घोषित किया था। 21 अगस्त , 1995 को उनका निधन हो गया था।

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