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आधुनिक युग की मीरा’ कही जाने वाली महादेवी वर्मा की पुण्यतिथि:

नई दिल्ली ( दस्तक ब्यूरो) : आधुनिक युग की मीरा’ कही जाने वाली महादेवी वर्मा का जन्म उत्तर प्रदेश के फ़र्रुख़ाबाद में होली के दिन 1907 में हुआ था। महादेवी वर्मा हिंदी साहित्य के छायावाद के प्रमुख स्तंभों में से एक थीं। हिंदी साहित्य की महिषी लेखिका महादेवी वर्मा उन विरले साहित्यकारों में से एक हैं, जिन्होंने भाषा और शिल्प में नवाचार की बुनियाद रखी। उनके पिता गोविंद प्रसाद वर्मा ने उनका नाम रखा था महादेवी। पिता पेशे से शिक्षक थे और मां हेमरानी देवी एक गृहणी। अपने घर-परिवार में महादेवी इकलौती बेटी थी। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा इंदौर के मिशन स्कूल में हुई। इसके बाद उन्होंने इलाहाबाद में क्रास्थवेट कॉलेज में दाखिला ले लिया। उन्हें बचपन से ही लिखने-पढ़ने का खूब शौक था। वह महज 7 साल की थीं, जब उन्होंने कविताएं लिखना शुरु कर दिया। महादेवी ने बाल्यावस्था में ही मीरा, सूर और तुलसी जैसे भक्त कवियों की रचनाओं पढ़ना और गुनना शुरू कर दिया था। कालांतर में ये महान कवि ही उनकी प्रेरणा का स्रोत बने।

महादेवी जब छोटी ही थी कि साल 1916 में उनकी शादी डॉ स्वरूप नारायण वर्मा से कर दी गई। शादी के बाद भी उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी। हालांकि उनका दाम्पत्य जीवन सफल नहीं रहा पर उन्हें एक दिशा मिल चुकी थी। उनकी आरंभिक शिक्षा उज्जैन में हुई और एम. ए. उन्होंने संस्कृत में प्रयाग विश्वविद्यालय से किया। बचपन से ही चित्रकला, संगीतकला और काव्यकला की ओर उन्मुख महादेवी विद्यार्थी जीवन से ही काव्य प्रतिष्ठा पाने लगी थीं। वह बाद के वर्षों में लंबे समय तक प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्राचार्या रहीं। वह इलाहाबाद से प्रकाशित ‘चाँद’ मासिक पत्रिका की संपादिका थीं और प्रयाग में ‘साहित्यकार संसद’ नामक संस्था की स्थापना की थी।

वह साहित्य अकादेमी की सदस्यता प्राप्त करने वाली पहली लेखिका थीं। भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण और पद्म विभूषण पुरस्कारों से सम्मानित किया। उन्हें यामा के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। भारत सरकार ने उनके सम्मान में जयशंकर प्रसाद के साथ युगल डाक टिकट भी जारी किया।

उन्होंने कविताओं के साथ ही रेखाचित्र, संस्मरण, निबंध, डायरी आदि गद्य विधाओं में भी योगदान किया है। ‘नीहार’, ‘रश्मि’, ‘नीरजा’, ‘सांध्य गीत’, ‘यामा’, ‘दीपशिखा’, ‘साधिनी’, ‘प्रथम आयाम’, ‘सप्तपर्णा’, ‘अग्निरेखा’ उनके काव्य-संग्रह हैं। रेखाचित्रों का संकलन ‘अतीत के चलचित्र’ और ‘स्मृति की रेखाएँ’ में किया गया है। ‘शृंखला की कड़ियाँ’, ‘विवेचनात्मक गद्य’, ‘साहित्यकार की आस्था तथा अन्य निबंध’, ‘संकल्पिता’, ‘हिमालय’, ‘क्षणदा’ उनके निबंधों का संकलन है।

हिंदी साहित्य में अद्वितीय योगदान के लिए साल 1988 में मरणोपरांत भारत सरकार ने उन्हें देश के दूसरे सबसे बड़े सम्मान ‘पद्म विभूषण’ की उपाधि से अलंकृत किया. वह यामा के लिए भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा भी सम्मानित हुईं। महादेवी को साल 1979 में साहित्य अकादमी फेलोशिप से नवाजा गया था। साहित्य अकादमी की फेलो बनने वाली वह पहली महिला थीं। हिंदी साहित्य सम्मलेन की ओर से उन्हें ‘सेकसरिया पुरस्कार’ तथा ‘मंगला प्रसाद पारितोषिक’ सम्मान भी मिला। महादेवी 11 सितंबर, 1987 को प्रयाग में इहलोक छोड़कर चली गईं पर उनकी कविताएं व जीवन आदर्श आज भी प्रेरणा दे रहे हैं।

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