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महान क्रांतिकारी जतिन दास की पुण्यतिथि विशेष

नई दिल्ली ( दस्तक ब्यूरो) : आज महान क्रांतिकारी जतिन दास की पुण्यतिथि है। उनका पूरा नाम यतींद्र नाथ दास था। उनका जन्म 1904 में कोलकाता में हुआ था। वे स्कूल की पढ़ाई में बहुत होनहार छात्र थे। वे बंगाल के मशहूर क्रांतिकारी संगठन अनुशीलन समिति के सदस्य रह और साल 1921 में केवल 17 साल की उम्र में उन्होंने गांधी जी के असहयोग आंदोलन में भी भाग लिया। 1925 में जब जतिन दास कोलकाता के बांगाभाषी कॉलेज से बीए कर रहे थे, तब उनकी राजनैतिक गतिविधियों के कारण उन्हें गिरफ्तार कर मेमनसिंह (आज के बांग्लादेश का शहर) की जेल में डाल दिया गया था। वहां भी उन्होंने राजनैतिक कैदियों के प्रति अंग्रेजों के रवैये के खिलाफ 20 दिन तक भूख हड़ताल की थी जिसमें वे सफल भी रहे थे। तब जेल के सुप्रिंटेंडेट ने उनसे माफी मांगी थी।

जतिन दास ने सचिंद्रनाथ सान्याल से बम बनाना सीखा था और वे पूरे देश में इस कारण लोकप्रिय भी हो गए थे। इसी वजह से राम प्रसाद बिस्मिल, भगतसिंह और उनके साथियों ने उन्हें अपने दल हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन में शामिल होने के लिए बुला लिया था। 8 अप्रैल 1929 भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने सेंट्रल असेंबली में जो बम फेंके थे वे जतिन दास ने ही तैयार किए थे। इसके बाद 14 जून 1929 को जतिन दास को गिरफ्तार कर लिया है। उनके अलावा कई और क्रांतिकारी भी बारी बारी से गिरफ्तार किए गए और उन्हें भी भगत सिंह के साथ लाहौर सेंट्रल जेल में बंद कर दिया गया और उन पर सरकार के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह करने के आरोप में लाहौर षड़यंत्र का मुकदमा चलाया गया।

63 दिन की भूख हड़ताल :

लाहौर जेल में क्रांतिकारियों को राजनैतिक कैदियों के दर्जा होने के बाद भी उनके साथ आदतन अपराधियों से भी बदतर अमानवीय बर्ताव किया जा रहा था। उन्हें सड़ा गला खाना दिया गया, उनके कपड़े धोने नहीं दिए जाते थे और पढ़ने के लिए किताबें और अखबार नहीं दिए जाते थे, ना ही उन्हें लिखने के लिए कागज कलम दी जाती थी।

क्रांतिकारियों ने इस दुर्व्यवहार के खिलाफ भूख हड़ताल कर दी जिसमें जतिन दास ने सबसे लंबी हड़ताल के बाद भी अपना उपवास नहीं थोड़ा। यहां तक कि क्रांतिकारियों को भूख हड़ताल तोड़ने के लिए कई हथकंडे भी अपनाए गए, उन्हें कई बार पीने के लिए पानी भी नहीं दिया गया। इसी का नतीजा यह हुआ कि 63 दिन की लगातार हड़ताल के बाद जतिनदास की मौत की हो गई।

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