म्यांमार में 34 साल बाद सजा-ए-मौत की सजा फिर से शुरू
नई दिल्ली: मृत्यु दंड जिसे कैपिटल पनिशमेंट या सजाए मौत कहते है , उसे दुनिया भर से खत्म करने के लिए आंदोलन हो रहे हैं और वो इस आधार पर कि यह मानवाधिकार का गंभीर उल्लंघन करता है , मानव गरिमा को क्षत विक्षत करता है। करीब 140 से अधिक देशों ने अपने यहां मृत्यु दंड खत्म कर दिया है लेकिन सैन्य शासन की राह पर चल रहे म्यांमार ने इस मानक को तोड़ दिया है।
म्यांमार में 34 साल बाद फांसी की सज़ा सुनाई गई है। पिछली आंग सान सू ची की सरकार में सांसद फ्यो जेया थाव और लोकतंत्र का समर्थन करने वाले कार्यकर्ता क्याव मिन यू उर्फ जिमी पर टेररिस्ट अटैक और मास किलिंग को अंजाम देने का आरोप है। इन अपराधों के लिए इन दोनों को सजा-ए-मौत सुनाई गई है।
मानवाधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल ने कहा- म्यांमार में फांसी की सजा को फिर शुरू करना दुनिया के लिए चौंकाने वाली खबर है। इस फैसले को वापस लिया जाए। इंटरनेशनल कम्युनिटी को भी इस मामले में दखल देना चाहिए। वहीं म्यांमार सरकार के इस आदेश की संयुक्त राष्ट्र संघ (UN) महासचिव के प्रवक्ता स्टीफन ने निंदा की है। स्टीफन ने कहा- ये आदेश जीने की आजादी और मानवाधिकार के खिलाफ है।
गौरतलब है कि एमनेस्टी इंटरनेशनल का दावा है कि म्यांमार में आखिरी बार 1998 में किसी को मौत की सजा दी गई थी। फांसी की सजा 1988 के बाद भी सुनाई गईं लेकिन बाद में उन्हें सामूहिक माफी दे दी गई। आपको बता दें कि पिछली साल फरवरी 2021 में सैना ने आंग सान सू ची की सरकार का तख्तापलट करके सैनिक शासन की स्थापना कर दी थी।