
देहरादून : जबरन धर्मांतरण पर सजा का प्रावधान बढ़ाने से जुड़े उत्तराखंड धर्म स्वतंत्रता (संशोधन) विधेयक 2025 (Uttarakhand Freedom of Religion (Amendment) Bill 2025) को लोकभवन से मंजूरी नहीं मिल पाई है। राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (सेनि) ने इस विधेयक को पुनर्विचार के संदेश के साथ सरकार को लौटा दिया है।
सूत्रों के अनुसार लोकभवन ने विधेयक के ड्राफ्ट में तकनीकी गलतियों के कारण यह कदम उठाया है। विधायी विभाग को मंगलवार को ही विधेयक प्राप्त हुआ। धामी सरकार के इस महत्वाकांक्षी विधेयक को लागू करने के लिए अब केवल दो ही रास्ते हैं। एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार अब या तो सरकार अध्यादेश लाकर इसे लागू करे या अगले विधानसभा सत्र में इसे दोबारा पारित कराना पड़ेगा।
राज्य सरकार ने वर्ष 2018 में उत्तराखंड धर्म स्वतंत्रता (संशोधन) विधेयक लागू किया था। इसके बाद धामी सरकार ने वर्ष 2022 में इस कानून में कुछ संशोधन करते हुए उत्तराखंड धर्म स्वतंत्रता (संशोधन) विधेयक 2022 लागू किया। इसमें सजाओं को कुछ और बढ़ाया गया। धर्मांतरण के मामले सामने आने पर 13 अगस्त 2025 को सरकार ने सजा को और सख्त करते हुए कैबिनेट में प्रस्ताव पारित कर धर्म स्वतंत्रता (संशोधन) विधेयक 2025 के प्रस्ताव को मंजूरी दी। इस विधेयक को 20 अगस्त को गैरसैंण में आयोजित विधानसभा सत्र में मंजूरी मिल गई थी। सरकार ने इसे मंजूरी के लिए लोकभवन भेजा था।
नए विधेयक में छल-बल से धर्मांतरण के मामलों में सजा को बढ़़ाया गया है। इसमें कोई भी व्यक्ति शिकायत कर सकेगा। पहले यह खून के रिश्तों तक सीमित था। सामान्य धर्म परिवर्तन में तीन से 10 साल की जेल सजा हो सकती है। पहले यह दो से सात वर्ष थी। डीएम को गैंगस्टर एक्ट की तरह संपत्ति कुर्क करने का अधिकार दिया गया। विवाह का झांसा देकर, हमला कर, षड़यंत्र, नाबालिगों की तस्करी, दुष्कर्म कर धर्मांतरण कराने वालों को न्यूनतम 20 साल और अधिकतम आजीवन कारावास का प्रावधान किया गया है। ऐसे मामलों में 10 लाख तक का जुर्माना अलग से देने का प्रावधान है।



