Delhi : सबको देखा, आ गई रेखा

दस्तक ब्यूरो
उस दिन जब शालीमार बाग में रेखा गुप्ता के घर के बाहर ‘सबको देखा, आ गई रेखा’ का नारा का नारा गूंज रहा था तो लाखों यूजर्स इंटरनेट पर उनके बारे में जानने के लिए बेचैन दिख रहे थे। बनिया परिवार का एक गुमनाम सा चेहरा रातों-रात सुर्खियों में था। जश्न का माहौल था क्योंकि बीजेपी का 26 साल का वनवास टूटा था। दिल्ली से देश की हूकूमत के बावजूद एक कांटा था, जो नासूर बन गया था। वह कांटा निकल गया। यह अकेला विधानसभा चुनाव था जो बीजेपी के लिए जीवन-मरण का प्रश्न बन गया था। चुनाव जीतने के बाद दिल्ली को चलाने के लिए बीजेपी को एक नेता चाहिए था। सब जानते थे कोई नया चेहरा होगा। युवा, उत्साही और कुछ कर गुजरने की चाहत रखने वाला कोई लोकप्रिय चेहरा। 8 फरवरी को भाजपा के विजयी होने के कुछ घंटों बाद ही यह सवाल उठा कि शीर्ष पद के लिए पार्टी की ओर से कौन चुना जाएगा।
पूर्व मुख्यमंत्रियों के बेटे, दिल्ली भाजपा के पूर्व अध्यक्ष और विधायक समेत कई अग्रणी दावेदार थे, जो आम आदमी पार्टी के खिलाफ खड़े थे और जमकर लड़े थे। पीएम मोदी अमेरिका के दौरे पर निकलने से पहले ही एक नाम तय कर चुके थे और वह नाम था- रेखा गुप्ता। रेखा समेत कोई आठ-दस भाजपाई जानते थे कि दिल्ली का अगला सीएम कौन होगा? लेकिन सबने अपने होठ सिल रखे थे। हालांकि रेखा गुप्ता का परिवार ये खुशी ज़ज़्ब नहीं कर पाया और मीडिया में चर्चाएं तेज हो गईं कि सबको देखा, इस बार रेखा। मूल जड़ें हरियाणा में होने के बावजूद रेखा दिल्ली को बखूबी जानती थीं क्योकि उनका परिवार दो पुश्तों से यहां बसा था। रेखा गुप्ता अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की कार्यकर्ता रही थीं। दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ की अध्यक्ष भी रह चुकी थीं। संघ-भाजपा की राजनीतिक-संस्कृति में पली-बढ़ी थीं। भगवा में यह सबसे अच्छा कांबीनेशन है शीर्ष पर पहुंचने का। उत्तराखंड के पुष्कर सिंह धामी, मध्य प्रदेश के मोहन यादव से लेकर राजस्थान के भजनलाल शर्मा तक इसके सबसे अच्छे उदाहरण हैं। संघ परिवार बीजेपी की नई पीढ़ी तैयार कर रहा है जिसका कारखाना एबीवीपी है।
रेखा का वैश्य समाज का होना फिर महिला होना जैसे सोने पर सुहागा हो गया। और रेखा गुप्ता ने उसी रामलीला मैदान में अपने मंत्रिपरिषद के साथियों के साथ शपथ ली जहां से आप ने राजनीति की रामलीला शुरू की थी। लेकिन आगे की राह इतनी आसान नहीं है। दिल्ली में उनके सामने चुनौतियों का समन्दर है। हताश-निराश विपक्ष है और दिल्ली की अपेक्षाएं बहुत ज्यादा हैं। केजरीवाला के पास बहाना था कि केन्द्र की सरकार उन्हें सहयोग नहीं कर रही है लेकिन रेखा के पास तो यह बहाना भी नहीं बचा। डबल इंजन की सरकार को ऐसे नागरिकों को संतुष्ट करना है जिनकी आदत मुफ्त की रेवड़ी बांट कर केजरीवाल ने बिगाड़ दी है। तो दिल्ली में रेखा गुप्ता का स्वागत है।