नई दिल्ली : दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि ‘ससुर को बेटी-दामाद के वैवाहिक जीवन को खराब करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है, खासकर तब जब दंपति को इस रिश्ते से एक बच्चा भी हो।’ हाईकोर्ट ने पूर्व लेफ्टिनेंट कर्नल की उस याचिका को खारिज करते हुए की है, जिसमें उन्होंने दामाद की किसी अन्य महिला के साथ शादी को वैध ठहराने की मांग की थी ताकि बाद में इसे आधार बनाकर बेटी की शादी को अवैध ठहरा सके। याचिकाकर्ता की मर्जी के बगैर ही उनकी बेटी ने शादी की थी। जस्टिस संजीव सचदेवा और रजनीश भटनागर की पीठ ने पूर्व सैन्य अधिकारी की अपील को खारिज करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि किसी व्यक्ति को किसी तीसरे पक्ष के विवाह के लिए घोषणा करने की मांग या दखल देने का कोई अधिकार नहीं है।
बेंच ने कहा है कि याचिका दाखिल करने के समय और बेटी के बयान से पता चलता है कि अपीलकर्ता की असली शिकायत यह है कि उनकी बेटी ने उनकी मर्जी के खिलाफ शादी की है। बेंच ने कहा है कि फैमिली कोर्ट ने इस बात पर गौर किया है कि अपीलकर्ता की बेटी ने प्रतिवादी संख्या-1 यानी पति के खिलाफ कोई शिकायत नहीं की है या शिकायत करने के लिए आगे नहीं आ रही है, ऐसे में अपीलकर्ता के पास तीसरे पक्ष के विवाह के लिए घोषणा की मांग करने का कोई अधिकार नहीं है। हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के फैसले को बहाल रखते हुए कहा है कि अपीलकर्ता यानी पिता को अपनी बेटी-दामाद के वैवाहिक जीवन को तहस-नहस करने की अनुमति नहीं दे सकते, खासकर तब जब उनका एक बेटा भी है। यह टिप्पणी करते हुए हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के फैसले के खिलाफ पिता की अपील को खारिज कर दिया।
पूर्व लेफ्टिनेंट कर्नल ने फैमिली कोर्ट में परिवार न्यायालय अधिनियम की धारा-7 (1) (बी) के तहत याचिका दाखिल कर अपनी बेटी के पति का अन्य महिला के साथ विवाह वैध ठहराने की मांग की। उन्होंने याचिका में कहा कि 28 अगस्त, 2016 को उनकी बेटी ने उनकी मर्जी के बगैर शादी कर ली, जबकि उसे इस बात की जानकारी नहीं थी कि जिस व्यक्ति से वह शादी कर रही है, वह पहले से शादीशुदा है। उन्होंने अपने दामाद की अन्य महिला से शादी को वैध ठहराने की मांग की ताकि बेटी की शादी को अवैध ठहरा सके।