अग्निवीरों, नियमित सिपाहियों के लिए अलग वेतनमान को सही साबित करें – दिल्ली हाईकोर्ट
नई दिल्ली । दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को भारतीय सेना में अग्निवीरों और नियमित सिपाहियों (सैनिकों) के लिए अलग-अलग वेतनमान के केंद्र के फैसले पर सवाल उठाया और कहा कि जब कार्यक्षेत्र समान है, तब वेतनमान में अंतर क्यों है और तर्क देकर इसे सही सबित करें। केंद्र का प्रतिनिधित्व करते हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने कहा कि अग्निवीर नियमित कैडर से अलग कैडर है।
मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की खंडपीठ ने कहा, “सवाल काम और जिम्मेदारी का है। यदि जॉब प्रोफाइल समान है, तो आप अलग-अलग वेतन को कैसे उचित ठहरा सकते हैं? बहुत कुछ जॉब प्रोफाइल पर निर्भर करेगा। इस पर निर्देश प्राप्त करें और इसे एक हलफनामे पर रखें।”
ऐश्वर्या भाटी ने कहा कि अग्निवीरों के नियम, शर्ते और जिम्मेदारियां सैनिकों से अलग होती हैं।
उन्होंने कहा, “अग्निवीर को एक अलग कैडर बनाया गया है। इसे एक नियमित सेवा के रूप में नहीं गिना जाएगा। चार साल तक अग्निवीर के रूप में सेवा करने के बाद यदि कोई स्वेच्छा से काम करता है और फिट पाया जाता है तो नियमित कैडर में भेज दिया जाएगा।”
केंद्र ने कहा कि यह योजना जल्दबाजी में नहीं बनाई गई है, बल्कि युवाओं के मनोबल को बढ़ाने और अग्निवीरों की स्किल मैपिंग के लिए काफी अध्ययन के साथ तैयार की गई है।
एएसजी ने कहा कि फैसला लेने में पिछले दो वर्षो के दौरान इस मसले पर बहुत कुछ किया गया है, जैसे कई आंतरिक और बाहरी परामर्श, कई बैठकें और परामर्श भी हितधारकों के साथ आयोजित किए गए हैं।
भाटी ने यह भी तर्क दिया कि चूंकि भारतीय सशस्त्र बल दुनिया में सबसे अधिक पेशेवर सशस्त्र बल हैं, इसलिए जब वे इस तरह के बड़े नीतिगत फैसले ले रहे हों तो उन्हें बहुत अधिक छूट दी जानी चाहिए।
खंडपीठ मामले की सुनवाई जारी रखेगी।
हाईकोर्ट ने 12 दिसंबर को कहा था कि अग्निपथ योजना पर निर्णय देने के लिए वायुसेना विशेषज्ञ निकाय नहीं है।
भारतीय सेना, नौसेना में प्रवेश के लिए नई तैयार की गई योजना को चुनौती देने वाली याचिकाओं के एक बैच की सुनवाई कर रही खंडपीठ ने कहा था, “सरकार कह रही है कि हम एक युवा सेना चाहते हैं और इसलिए विशेषज्ञों ने योजना बनाई है। हम (न्यायाधीश) विशेषज्ञ नहीं हैं। क्या हमें यह तय करना है कि कौन सा अच्छा है? चार साल या सात साल? यह हमारे अधिकार क्षेत्र में नहीं है।”
इस योजना का देशभर में लोगों ने विरोध किया था। इसकी भर्ती प्रक्रिया और उम्मीदवारों की नियुक्ति को चुनौती देने वाली दायर दर्जनों याचिकाओं के अलावा याचिकाओं के तीन बैच दायर किए गए हैं।
चार साल के लिए युवाओं को भारतीय सेना में भर्ती करने के लिए बनाई गई इस योजना की अवधि के बाद चयनित उम्मीदवारों में से केवल 25 प्रतिशत को ही सेना में रखा जाएगा।
याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि चार साल बाद बाकी 75 प्रतिशत उम्मीदवार बेरोजगार हो जाएंगे और उनके लिए कोई योजना भी नहीं है।