थम सकती है मांग में आई तेजी, लोग जरूरत के हिसाब से ही खरीद रहे कंज्यूमर गुड्स
नई दिल्ली : कोरोना महामारी (corona pandemic) के बाद देश में आई मांग की तेजी थम सकती है। विशेषज्ञों के मुताबिक घरेलू संकेत कम, लेकिन विदेशी संकेत इस ओर पुरजोर इशारा कर रहे हैं कि अर्थव्यवस्था (Economy) में मांग में कुछ कमी देखने को मिल सकती है। इसके पीछे दुनियाभर के साथ-साथ भारत (India) में भी बढ़ती महंगाई (Rising inflation) और आर्थिक सुस्ती (economic slowdown) को वजह माना जा रहा है।
कोरोना महामारी के बाद जब हालात सुधरने लगे तो उसी मुकाबले लोगों ने अपनी खरीदारी में बढ़त की है। यह न केवल रोजमर्रा के सामानों की खरीदारी बल्कि वाहनों की बिक्री में भी साफ देखने को मिला था। लेकिन अब लंबी अवधि के नजरिए से देखा जाए तो इस खरीदारी में थोड़ी सुस्ती देखने को मिल सकती है, जिसका असर देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ सकता है।
फेडरेशन ऑफ ऑटोमोबाईल डीलर्स एसोसिएशन के मुताबिक त्योहारी सीजन की बंपर बिक्री के तुरंत बाद आने वाले महीने में बिक्री में सुस्ती देखने को मिल सकती है। रिजर्व बैंक की तरफ से पिछले कुछ महीनों में जिस हिसाब से कर्ज पर ब्याज दरें बढ़ाई गई हैं, उसके मुकाबले आने वाले दिनों में न केवल रियल एस्टेट बल्कि ऑटो सेक्टर भी प्रभावित रह सकता है। वहीं रिजर्व बैंक के ताजा कंज्यूमर कॉन्फिडेंस सर्वे में भी कंज्यूमर कॉन्फिडेंस इंडेक्स जुलाई के मुकाबले सितंबर 2022 में निगेटिव जोन में बना हुआ है। साथ ही आर्थिक परिस्थितियां, रोजगार, दामों के स्तर और आमदनी सभी पैमानों में सुधार के बावजूद भी निगेटिव जोन में ही बने हुए हैं।
केयर रेटिंग की मुख्य अर्थशास्त्री रजनी सिन्हा ने बताया कि छोटी अवधि में तो मांग में ज्यादा कमी नहीं देखने को मिलेगी लेकिन मध्यम से लंबी अवधि की बात की जाए तो हालात बहुत अच्छे नहीं कहे जा सकते हैं। देश में ऑटो बिक्री, जीएसटी के आंकड़े तो अच्छे हैं, लेकिन कंज्यूमर गुड्स जैसे क्षेत्रों में बिक्री जरूरत के मुताबिक ही हो रही है। यानी लोग केवल आवश्यक खरीद ही कर रहे हैं। फियो के महानिदेशक अजय सहाय ने माना कि महंगाई की वजह से लोगों ने अपनी खरीद को सीमित किया है, वहीं ऊंची ब्याज दरों की वजह से कारोबारी जरूरत के मुताबिक ही सामान मंगा रहे हैं।
निर्यात संगठन फियो के महानिदेशक और सीईओ अजय सहाय ने कहा कि देश से निर्यात में कमजोरी के संकेत आने शुरू हो गए हैं। हालांकि, उन्होंने कहा कि यह समस्या बढ़ती महंगाई और दुनिया के कई देशों में ऊंची ब्याज दरों की वजह से आई है। वहीं रजनी सिन्हा के मुताबिक विदेश में सुस्ती की वजह से भारतीय उत्पादों की मांग घटेगी तो इससे चमडा, जेम्स एंड ज्वैलरी और कपड़ा समेत तमाम निर्यात आधारित क्षेत्रों में मुश्किलें देखने को मिल सकती हैं।
रेडीमेड गारमेंट निर्यातक राहुल मेहता के मुताबिक विदेशों से गारमेंट के निर्यात के ऑर्डर्स में कमी पिछले 2-3 महीनों से देखने को मिल रही है। सितंबर महीने में इसमें काफी कमी देखी गई जो आगे भी जारी रहने के आसार हैं। उन्होंने यह भी कहा कि क्रिसमस और नए साल के लिए अमेरिका और यूरोप से आने वाले ऑर्डर्स में भी कमी देखी जा रही है।
केयर रेटिंग की मुख्य अर्थशास्त्री रजनी सिन्हा ने कहा कि विनिर्माण के कई क्षेत्रों में विदेश से मांग कम होगी तो इसके असर से इन क्षेत्रों में नौकरियां भी घट सकती हैं। सिन्हा का कहना है कि जब लोगों की आमदनी कमजोर होगी तो इसका असर पूरी अर्थव्यवस्था पर पड़ना तय है। वहीं जॉब कंसल्टेंसी ग्लोबल हंट के मैनेजिंग डायरेक्टर सुनील गोयल के मुताबिक ऐसे क्षेत्रों की नौकरियां प्रभावित हो सकती हैं, जिनका विदेशों में बड़ा एक्सपोर्जर है। साथ ही यह एक्सपोर्जर उन क्षेत्रों हैं जो संकट के दौर से गुजर रहे हैं और कोरोना महामारी के बाद जहां बड़े पैमाने पर भर्तियां देखी गई थी।
अब उन तमाम क्षेत्रों में बढ़ती ब्याज दरों को देखते हुए क्षमता विस्तार उस पैमाने पर नहीं होगा, जिससे जाहिर है वहां भी नौकरियों की नई संभावनाओं पर ब्रेक लग सकती है। देश में घरेलू नौकरियों के मोर्चे पर हालात फिलहाल अच्छे ही हैं।
ऐसे होगा इन क्षेत्रों पर असर
– कपड़ा, चमड़ा, जेम्स एंड ज्वैलरी और आईटी।
– यह क्षेत्र निर्यात से सीधे जुड़े हुए हैं।
– विदेशी से मांग घटने पर बिक्री और रोजगार पर होगा असर।
– आमदनी घटने टीवी, फ्रिज जैसे टिकाऊ उपभोक्ता उत्पाद की बिक्री भी प्रभावित होगी।
– कुल मिलाकर इसका असर देश की पूरी अर्थव्यवस्था हो होगा।