सुप्रीम कोर्ट में ग्रीष्मावकाश निलंबित करने की मांग जोर पकड़ी
नयी दिल्ली : कोरोना वायरस ‘कोविड-19’ के तेजी से बढ़ते संक्रमण के कारण बाधित कामकाज की भरपाई के लिए उच्चतम न्यायालय में इस बार की गर्मी की छुट्टी रद्द करने की मांग जोर पकड़ने लगी है। कुछ अधिवक्ताओं ने पहले भी इस बारे में अपनी निजी राय रखी थी और कुछेक ने तो न्यायालय से लिखित आग्रह भी किया था, लेकिन इस बार यह आग्रह खुद सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) ने किया है।
एसोसिएशन की कार्यकारिणी ने आज एक प्रस्ताव पारित करके मुख्य न्यायाधीश शरद अरविंद बोबडे तथा अन्य न्यायाधीशों से आग्रह किया है कि वे राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के कारण सुनवाई में हुई कटौती को गर्मी की छुट्टियों में समायोजित करें। प्रस्ताव में कहा गया है कि उच्चतम न्यायालय के वकील अपने मुवक्किलों के लिए इस वर्ष अपनी गर्मी की छुट्टियां रद्द करने को तैयार बैठे हैं और न्यायालय से जनहित में ग्रीष्मावकाश को निलंबित करने का निर्णय लेने का आग्रह किया जाता है। एससीबीए ने वीडियो कांफ्रेंसिंग की गुणवत्ता पर सवाल खड़े किये हैं और इसमें व्यापक सुधार की आवश्यकता भी जताई है।
इससे पहले गत शुक्रवार को वरिष्ठ अधिवक्ता दिनेश कुमार गोस्वामी ने मुख्य न्यायाधीश एस.ए. बोबडे को एक पत्र लिखा था जिसमें कहा गया था कि पूरे भारत में लगातार बढ़ रहे कोरोना वायरस संक्रमण के मद्देनजर देशव्यापी पूर्णबंदी को 30 अप्रैल, 2020 तक बढ़ाने की सख्त आवश्यकता है। भारत में विशेष रूप से 30 मार्च, 2020 के बाद से, संक्रमण के मामलों में जिस दर से वृद्धि हो रही है, ऐसे में शीर्ष अदालत में अभी सामान्य रूप से काम शुरू करना न तो उचित होगा और न ही विवेकपूर्ण।
याचिकाकर्ता ने कहा है कि इस कोरोना के बढ़ते संक्रमण के कारण सभी कोर्ट बंद रहने अथवा आंशिक रूप से कार्य करने के कारण अदालतों में कामकाज का बोझ बढ़ जाएगा। इसके बावजूद कोर्ट में भी पूर्णबंदी बढ़ाया जाना चाहिए। श्री गोस्वामी ने शीर्ष अदालत से अनुरोध किया है कि वह देश भर की अदालतों के साथ-साथ शैक्षणिक संस्थानों की गर्मियों की छुट्टी रद्द कर दें।