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धामी सरकार ने बनाई थी समिति, वर्ष 2022 में आई थी रिपोर्ट

दस्तक ब्यूरो, देहरादून

भू-कानून की मांग तेज हुई तो वर्ष 2022 में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने पूर्व मुख्य सचिव सुभाष कुमार की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था, जिसने पांच सितंबर 2022 को अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी। समिति ने सशक्त भू-काननू को लेकर 23 संस्तुतियां दी थीं। सरकार ने समिति की रिपोर्ट और संस्तुतियों के अध्ययन के लिए उच्च स्तरीय प्रवर समिति का गठन भी किया हुआ है। धामी सरकार ने कृषि और उद्यानिकी के लिए भूमि खरीद की अनुमति देने से पहले खरीदार और विक्रेता का सत्यापन करने के निर्देश भी दिए हुए हैं।

क्या है धामी सरकार के भू-कानून का मामला
प्रदेश में लगातार चल रही मांग के बीच मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने एलान किया है कि उनकी सरकार वृहद भू-कानून लाने जा रही है। अगले साल बजट सत्र में कानून का प्रस्ताव लाया जाएगा। उन्होंने कहा कि 250 वर्ग मीटर आवासीय और 12.50 एकड़ अन्य भूमि के नियम तोड़ने वालों की भूमि जांच के बाद सरकार में निहित की जाएगी।

उत्तराखंड में बाहरी व्यक्ति कितनी जमीन खरीद सकता है।
उत्तराखंड उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश और भूमि व्यवस्था अधिनियम के तहत राज्य से बाहर का व्यक्ति बिना अनुमति के उत्तराखंड में 250 वर्गमीटर जमीन खरीद सकता है। लेकिन राज्य का स्थायी निवासी के लिए जमीन खरीदने की कोई सीमा नहीं है।

क्या उत्तराखंड वासियों पर भी यह कानून लागू है?
वर्तमान में लागू भू-कानून उत्तराखंड वासियों पर लागू नहीं है। यह कानून केवल बाहरी राज्यों के लोगों पर लागू है। उत्तराखंड के स्थायी निवासी कितनी भी जमीन खरीद सकते हैं।

बाहरी व्यक्ति राज्य में परिवार के सदस्यों के नाम से अलग-अलग जमीन खरीद सकता है?
वर्तमान में लागू भू-कानून के तहत एक व्यक्ति को 250 वर्गमीटर जमीन ही खरीद सकता है। लेकिन व्यक्ति के अपने नाम से 250 वर्गमीटर जमीन खरीदने के बाद पत्नी के नाम से भी जमीन खरीदी है तो ऐसे लोगों को मुश्किल आ सकती है। तय सीमा से ज्यादा खरीदी गई जमीन को सरकार में निहित करने की कार्रवाई करेगी।

सख्त भू-कानून से उद्योगों को भी जमीन की दिक्कत आएगी?
राज्य के विकास और रोजगार के लिए उद्योगों लगाने के लिए निवेशकों को जमीन की कोई दिक्कत नहीं आएगी। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने स्पष्ट किया कि निवेशक करने वाले लोगों को जमीन के लिए चिंतित होने की जरूरत नहीं है।

सख्त भू-कानून से जमीनों खरीद फरोख्त और दुरुपयोग रुकेगा?
यदि किसी व्यक्ति ने उद्योग लगाने के नाम पर जमीन ली। उस जमीन का उपयोग दूसरे प्रयोजन के लिए किया है। ऐसे लोगों के खिलाफ कार्रवाई कर जमीन को सरकार में निहित की जाएगी।

भू-कानून के तहत जमीन खरीद के प्रावधान राज्य के किस क्षेत्र में लागू होते हैं?
आवास के लिए 250 वर्गमीटर जमीन का प्रावधान है, निकाय क्षेत्रों को छोड़कर पूरे प्रदेश में लागू हैं।

उत्तराखंड में निवेशकों को चिंता करने की जरूरत नहीं : धामी

उत्तराखंड में उद्योग लगाने की योजना बना रहे निवेशकों में सख्त भू-कानून के लागू होने पर जमीन को लेकर संशय है, लेकिन मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि निवेश पर कोई असर नहीं पड़ेगा। जमीन के लिए निवेशकों को चिंतित होने की जरूरत नहीं है। दिसंबर 2023 में हुए वैश्विक निवेशक सम्मेलन में प्रदेश सरकार ने 3.56 लाख करोड़ के निवेश प्रस्ताव पर एमओयू किए थे। इसमें 72 हजार करोड़ के निवेश प्रस्तावों की ग्राउंडिंग हो चुकी है। प्रदेश सरकार ने निवेश के लिए छह हजार एकड़ का लैंड बैंक भी तैयार किया है। इसके बावजूद नए निवेश के लिए जमीन कम पड़ रही है। प्रदेश सरकार का कहना है कि जिन लोगों ने उद्योग या अन्य व्यावसायिक के नाम पर जमीन खरीदी। लेकिन इसका इस्तेमाल नहीं किया या जिस उद्देश्य के लिए जमीन दी गई थी, उससे इतर इस्तेमाल किया है, तो ऐसे लोगों पर सख्त कार्रवाई कर खरीदी गई जमीन सरकार में निहित की जाएगी। इससे प्रदेश सरकार के पास नए निवेश के लिए लैंड बैंक तैयार होगा। प्रदेश में कई बड़े निवेश प्रस्तावों को धरातल पर उतारने का काम चल रहा है। इसके लिए निवेशकों को जमीन की जरूरत है।

त्रिवेंद्र सरकार ने बदल दिया था खंडूड़ी सरकार में लागू कानून

त्रिवेंद्र सरकार ने औद्योगिकीकरण को बढ़ावा देने के लिए 2017 में उत्तराखंड (उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश और भूमि व्यवस्था अधिनियम व्यवस्था 1950) में बदलाव किया था, अब धामी सरकार उसकी समीक्षा करेगी। समीक्षा के बाद इसके प्रावधान हटाए जाएंगे। त्रिवेंद्र सरकार ने 2017-18 में यह तर्क दिया था कि तराई क्षेत्रों में औद्योगिक प्रतिष्ठान, पर्यटन गतिविधियों, चिकित्सा तथा चिकित्सा शिक्षा के विकास के लिए निर्धारित सीमा से अधिक भूमि की मांग की जा रही है। कई प्रस्ताव इसी कारण लंबित हैं। इसके लिए उत्तराखंड (उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश और भूमि व्यवस्था अधिनियम व्यवस्था 1950) में परिवर्तन किया गया था। उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन और भूमि व्यवस्था अधिनियम 1950 (अनुकलन एवं उपरांतरण आदेश 2001) (संशोधन) अध्यादेश 2018 को मंजूरी दी थी। अधिनियम की धारा 154 (4) (3) (क) में बदलाव किया गया, जिससे कृषि और औद्यानिकी की भूमि को उद्योग स्थापित करने के लिए खरीदा जा सकता है।

त्रिवेंद्र सरकार ने उद्योगों के लिए पहाड़ी क्षेत्रों में भूमि के लिए 12.5 एकड़ की सीलिंग हटा दी थी। किसान अपनी भूमि का उपयोग उद्योग लगाने के प्रयोजन से बिना राजस्व की अनुमति लिए कर सकता है। लैंड यूज बदलने के लिए अधिनियम की धारा 143 के तहत पटवारी से लेकर एसडीएम तक चक्कर काटने की औपचारिकताएं अध्यादेश प्रभावी होते ही खत्म हो गई थीं। राजस्व विभाग की अधिकारों में कटौती कर पर्वतीय क्षेत्रों के धारा 143 को 143 (क) में परिवर्तित किया गया था। नौ पर्वतीय जिलों में उद्योगों के लिए 12.5 एकड़ से अधिक खरीद की व्यवस्था पहले से थी लेकिन त्रिवेंद्र सरकार में उसमें मामूली संशोधन करते हुए कृषि एवं फल प्रसंस्करण, औद्योगिक हैंप एवं प्रसंस्करण, चाय बगान प्रसंस्करण तथा वैकल्पिक ऊर्जा परियोजना के लिए किसी व्यक्ति, संस्था, समिति, न्यास, फर्म, कंपनी तथा स्वयं सहायता समूह को भूमि लीज या पट्टे पर दिए जाने के लिए संशोधन किया गया था। जब से त्रिवेंद्र सरकार ने यह नियम बदले थे, तब से ही इस पर विवाद होता आया है। धामी सरकार ने इसका संज्ञान लिया। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का कहना है कि इस बदलाव के सकारात्मक परिणाम नहीं आए हैं। लिहाजा, इसकी समीक्षा की जाएगी और इसके प्रावधान समाप्त होंगे।

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