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Will Power : आपदाओं से निपटने में धामी सरकार का जवाब नहीं

दस्तक ब्यूरो, देहरादून

उत्तराखंड में आपदाओं का आना कोई नयी बात नहीं है। इस साल जिस प्रकार से बारिश का दौर रहा उससे प्रदेश में काफी नुकसान हुआ है, लेकिन प्रदेश की धामी सरकार ने हाल में केदारनाथ में आई आपदा से निपटने में जिस तेजी से 15 हजार से अधिक लोगों को समय रहते सुरक्षित निकलवाया और रिकार्ड 15 दिन के भीतर पैदल मार्ग पर यात्रियों की आवाजाही शुरू कराई, इससे नया रिकार्ड बन गया है। केदारघाटी में पिछले माह के अंतिम दिन जिस प्रकार की आपदा आई, यह वर्ष 2013 की आपदा जैसी मानी जा रही थी। एक दर्जन से अधिक स्थानों पर इससे पैदल मार्ग बुरी तरह से क्षतिग्रस्त होने के साथ ही 23 से अधिक लोग लापता भी हुए। हालांकि अब तक केवल 7 लोगों के ही शव मिले। आपदा के बाद जिस प्रकार से धामी सरकार की ओर से रेस्क्यू अभियान शुरू किया और 15 हजार से अधिक लोगों को सुरक्षित निकाला यह अपने आप में रिकार्ड है। इसके साथ ही मुख्यमंत्री ने जिस प्रकार की सक्रियता दिखाई थी उसी का परिणाम था कि यहां पर 15 दिन के भीतर ही पैदल मार्ग को चलने लायक बना दिया और 26 दिन में मार्ग का सुचारु कर घोड़े खच्चर भी धाम में जाने लगे हैं। इस आपदा के दौरान धामी सरकार का रुख काबिलेतारीफ रहा। वर्ष 2013 की आपदा के दौरान तत्कालीन सीएम ने केदारघाटी के बजाय पूरे चार दिन तक दिल्ली का दौरा किया, वहीं दूसरी ओर सीएम पुष्कर सिंह धामी हर बार जहां भी आपदा आती है वहां पर तत्काल पहुंचते हैं। केदारघाटी की इस बार आई आपदा के दौरान भी सीएम पुष्कर सिंह धामी ने स्वयं दो बार केदारघाटी का निरीक्षण किया।

इसके अलावा मुख्यमंत्री ने स्वयं रेस्क्यू अभियान की सतत निगरानी की। मुख्यमंत्री ने प्रभावित लोगों को राहत पहुंचाने तथा लोगों का रेस्क्यू करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। मुख्यमंत्री ने स्वयं दो बार आपदाग्रस्त क्षेत्रों का दौरा किया। राहत और बचाव कार्यों में लगी टीमों को जिन भी संसाधनों की जरूरत थी। मुख्यमंत्री के निर्देश पर उन्हें तुरंत उपलब्ध कराया गया। मुख्यमंत्री रेस्क्यू अभियान की पल-पल की जानकारी लेते रहे। राहत और बचाव कार्यों के लिए जितने भी संसाधनों तथा मैन पॉवर की आवश्यकता थी, मुख्यमंत्री के निर्देश पर उन्हें तत्काल उपलब्ध कराया गया। मुख्यमंत्री के निर्देशन में इतनी बड़ी आपदा तथा व्यापक स्तर पर हुए नुकसान के बावजूद एक सप्ताह से भी कम समय में रेस्क्यू अभियान पूरा हो पाया, यह दर्शाता है कि इसीलिए आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में उत्तराखंड को एक आदर्श राज्य के तौर पर पूरे देश में देखा जाता है। केदारघाटी में अतिवृष्टि के चलते हुए नुकसान, रेस्क्यू एवं बचाव कार्यों, यात्रा को दोबारा शुरू करने को लेकर युद्धस्तर पर तैयारियां की गईं। इसके अलावा इस दौरान पैदल यात्रा न होने पर सीएम पुष्कर सिंह धामी सरकार की ओर से हेली से यात्रा करने वालों को टिकट में 25 प्रति की छूट का भी ऐलान किया गया।

इस राहत बचाव अभियान में 15 हजार से अधिक यात्रियों को सुरक्षित निकालने के लिए सरकार की ओर से 1,166 कर्मवीरों को तैनात किया गया था। इन कर्मवीरों की दिन-रात की मेहनत से सभी को सुरक्षित निकाला गया। इसके साथ ही दिन रात एक करके सरकार के प्रयासों से समय रहते रास्ता भी बना दिया गया है। बताते चलें कि केदारघाटी में फंसे तीर्थयात्रियों की कुशलता के लिए एक तरफ उनके स्वजन और रिश्तेदार दुआ कर रहे थे तो दूसरी तरफ सेना, एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, डीडीआरएफ व पुलिस के जवान दिन-रात और भूख-प्यास का अंतर भुलाकर पूरे मनोयोग से उनको सकुशल निकालने में जुटे थे। इन कर्मचारियों की मेहनत रंग लाई और 15 हजार से अधिक तीर्थयात्रियों को सकुशल निकाल लिया गया। युद्धस्तर पर चले इस अभियान में 1,166 जवान और अधिकारियों ने योगदान दिया। बचाव अभियान में मौसम समेत तमाम चुनौतियां पेश आईं, लेकिन न तो बचाव दल के कदम रुके, न तीर्थ यात्रियों का हौसला ही डिगा। जब अभियान पूरा हुआ तो सभी के चेहरे पर विजय का भाव स्पष्ट देखा जा सकता था। प्राण रक्षा के इस महायज्ञ में जिला प्रशासन भी आहुति डालने में पीछे नहीं रहा। केन्द्र सरकार की ओर से भेजे गए चिनूक और एमआइ-17 हेलीकाप्टर ने भी रेस्क्यू में अहम भूमिका निभाई। साथ में छह छोटे हेलीकाप्टर भी जुटे रहे।

31 जुलाई की रात रुद्रप्रयाग में गौरीकुंड, भीमबली और लिनचोली के मध्य अतिवृष्टि के कारण केदारनाथ पैदल मार्ग कई स्थानों पर ध्वस्त हो गया था। मंदाकिनी नदी और आसपास के नालों में उफान से सोनप्रयाग तक हाईवे भी कई स्थानों पर टूट गया। उफान के साथ काफी मात्रा में मलबा सोनप्रयाग स्थित पार्किंग तक आ पहुंचा। अफरा-तफरी में लोग जान बचाने के लिए सुरक्षित स्थानों की तरफ भागे। केदारनाथ पैदल मार्ग पर भी काफी संख्या में यात्रियों ने ऊंचाई वाले क्षेत्रों में जंगलों की तरफ रुख किया। उस दिन पैदल मार्ग के पड़ावों और धाम में 15 हजार से अधिक तीर्थयात्री मौजूद थे। आपदा की सूचना मिलते ही जिला प्रशासन हरकत में आ गया और सभी तीर्थ यात्रियों को सुरक्षित स्थानों पर रोक दिया गया। जिला आपदा प्रबंधन समेत प्रशासन, पुलिस, एनडीआरएफ, डीडीआरएफ की टीम ने रात में ही रेस्क्यू शुरू कर दिया। मंदाकिनी नदी के उफान को देखते हुए गौरीकुंड व सोनप्रयाग में नदी किनारे बने सभी भवन और पार्किंग खाली करवा दी गई। सभी को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचा दिया गया। इस बीच भूस्खलन गौरीकुंड, लिनचोली, भीमबली, जंगलचट्टी और रामबाड़ा में कहर बरपा चुका था।

मदद को आगे आए लोग
केदानाथ धाम समेत पैदल मार्ग पर फंसे हजारों यात्रियों को भोजन उपलब्ध कराना भी चुनौती था। ऐसे में स्थानीय लोग और संगठन आगे आए। प्रशासन ने हेलीकाप्टर से धाम व पैदल मार्ग पर भोजन भिजवाया तो स्थानीय निवासियों ने जगह-जगह भंडारा लगाकर यात्रियों की मदद की। धाम में मंदिर समिति और केदारसभा भी यात्रियों के लिए भोजन का प्रबंध करती रही। बचाव अभियान में सबसे बड़ी चुनौती मौसम ने खड़ी की। पैदल मार्ग बुरी तरह क्षतिग्रगस्त होने से इस पर आवाजाही संभव नहीं थी। ऐसे में वायु सेना के चिनूक व एमआइ-17 हेलीकाप्टर को रेस्क्यू के लिए पहुंचाया गया, लेकिन मौसम खराब होने के कारण चिनूक चार दिन तक उड़ान ही नहीं भर सका। हालांकि, सावधानियों के साथ छोटे हेलीकाप्टर से और पैदल रेस्क्यू जारी रखा गया। अभियान के दौरान 3,347 यात्री हेली सेवा से रेस्क्यू किए गए और शेष को एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, सेना, डीडीआरएफ व पुलिस ने पैदल निकाला।

ड्रोन ने बचाईं छह जिंदगी
जिलाधिकारी, रुद्रप्रयाग डा. सौरभ गहरवार ने कहा कि इस अभियान में ड्रोन ने भी देवदूत की भूमिका निभाई। पूरे अभियान के दौरान एसडीआरएफ की टीम ने छह भटके हुए यात्रियों को ड्रोन की मदद से खोजकर सकुशल निकाला। इसके अलावा हरियाणा निवासी एक युवक की मौत का पता भी ड्रोन से खोजबीन के दौरान ही चला। आपदा के बाद पैदल मार्ग ध्वस्त होने से कई यात्री त्रियुगीनारायण के रास्ते लौटे। यह रास्ता घने जंगलों से होकर जाता है, इस कारण यात्री भटक जाते हैं। वर्ष 2013 की आपदा में सैकड़ों लोगों के कंकाल इस पैदल मार्ग पर मिले थे। इसी को देखते हुए एसडीआरएफ लगातार ड्रोन से जंगल में खोजबीन करती रही। स्निफर डॉग की भी मदद ली गई। आपदा के तत्काल बाद रेस्क्यू शुरू कर दिया गया था। स्थानीय लोगों की मदद के साथ ही सभी एजेंसियों ने आपसी समन्वय स्थापित कर बेहतरीन कार्य किया और लोगों की जान बचाई।

ताजा हो गई वर्ष 2013 में केदारनाथ घाटी में आई आपदा की याद
वर्ष 2013 की आपदा के 11 वर्ष बाद केदारघाटी में फिर से प्रकृति का ताडंव देखने को मिला। दोनों आपदाओं में परिस्थितियां लगभग समान थीं। अंतर सिर्फ इतना था कि उस समय संसाधन और सूचनाएं समय पर नहीं मिलने के कारण रेस्क्यू शुरू करने में तीन से चार दिन का समय लग गया, जिससे हजारों जिंदगियां मौत के मुंह में समा गईं। इसके अतिरिक्त इस बार की आपदा में केदारपुरी पूरी तरह सुरक्षित रही और पैदल मार्ग व गौरीकुंड में ही इसका असर दिखा। आपदा के तत्काल बाद ही प्रशासन सजग हो गया था। रेस्क्यू टीम भी दिन-रात जुटी रहीं। यही कारण रहा कि मौसम अनुकूल नहीं होने और पीड़ितों तक पहुंचने की राह में तमाम दिक्कतें होने के बावजूद 15 हजार से अधिक जिंदगी बचा ली गईं।

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