दस्तक ब्यूरो, देहरादून
उत्तराखंड के युवा हृदय सम्राट मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने सत्ता संभालते ही कहा था कि उनकी सरकार का मंत्र विकास तो है ही, इसके अलावा भ्रष्टाचार पर किसी प्रकार की कोताही नहीं बरती जाएगी। चाहे वह कितना ही बड़ा अधिकारी या फिर मंत्री, पूर्व मंत्री ही क्यों न हो। इसी क्रम में सीएम धामी नकल के मामले में जिस प्रकार से कई अधिकारियों व नेताओं को जेल के पीछे भेज चुके हैं, अब इसी तर्ज पर सरकार ने बहुचर्चित कार्बेट टाइगर रिजर्व घोटाले में सीबीआई को जांच सौंपी है और पूर्व मंत्री व कांग्रेस नेता हरर्क सिंह रावत के अलावा कई अधिकारी भी इसकी जद में आ रहे हैं। ऐसे में सरकार के कदम से घाटाले से जुड़े नेताओं और अधिकारियों की धड़कनें बढ़ी हैं। कार्बेट टाइगर रिजर्व के अंतर्गत कालागढ़ टाइगर रिजर्व वन प्रभाग में पाखरो टाइगर सफारी प्रकरण की सीबीआई जांच के लिए भी सरकार तैयार है। वन मंत्री सुबोध उनियाल ने कहा कि इस मामले में हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की सरकार की इच्छा नहीं है। हाईकोर्ट ने छह सितंबर को इस प्रकरण की सीबीआई से जांच कराने के आदेश दिए थे। पूर्ववर्ती त्रिवेंद्र सरकार के कार्यकाल में पाखरो में टाइगर सफारी बनाने का निर्णय लिया गया था। इसके पीछे मंशा यह थी कि कार्बेट टाइगर रिजर्व पर पर्यटकों का दबाव कम किया जाए। बाद में टाइगर सफारी के लिए 106 हेक्टेयर भूमि गैर वानिकी कार्यों को दी गई। इसके साथ ही राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण, राष्ट्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण समेत अन्य एजेंसियों से स्वीकृति आदि की औपचारिकताएं ली गईं। वर्ष 2020 में इसका निर्माण कार्य शुरू हुआ।
इस बीच सितंबर 2021 में यह शिकायत हुई कि टाइगर सफारी के नाम पर क्षेत्र में बड़े पैमाने पर अवैध निर्माण के साथ ही स्वीकृति से अधिक पेड़ों का कटान किया गया था। राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण की टीम ने स्थलीय निरीक्षण कर शिकायतों को सही पाया और जिम्मेदार अधिकारियों के विरुद्ध कार्रवाई की संस्तुति सरकार से की। इसके बाद हड़कंप मचने के बाद हुई विभिन्न जांचों में बात सामने आई कि पाखरो टाइगर सफारी के निर्माण में नियमों की अनदेखी करने के साथ ही बिना वित्तीय व प्रशासनिक स्वीकृति के निर्माण कराए गए। साथ ही स्वीकृति से अधिक पेड़ों का कटान किया गया। प्रकरण में दो आइएफएस अधिकारियों समेत चार कार्मिकों को निलंबित किया गया था। बीते छह सितंबर को हाईकोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए इस प्रकरण की सीबीआई जांच के आदेश पारित किए थे। कार्बेट टाइगर रिजर्व के अंतर्गत बहुचर्चित टाइगर सफारी प्रकरण के सामने आने के बाद से अब तक आठ एजेंसियां इसकी जांच कर चुकी हैं। अब हाईकोर्ट के आदेश पर सीबीआई जांच में जुटी है। इस प्रकरण में अब तत्कालीन वन मंत्री डा हरर्क ंसह रावत की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। टाइगर सफारी के निर्माण के संबंध में मिली शिकायतों के बाद सबसे पहले राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण ने जांच की। इसके पश्चात पाखरो से लेकर कालागढ़ वन विश्राम गृह तक हुए निर्माण कार्य ध्वस्त किए गए। डीएफओ व एसडीओ पर कार्रवाई हुई। अक्टूबर 2021 में केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के क्षेत्रीय कार्यालय ने जांच की, जिसमें मोरघट्टी, पाखरो, सनेह, कुगड्डा में भवन निर्माण पर आपत्ति जताई गई। साथ ही रेंजर, डीएफओ को दोषी ठहराया गया। इसके बाद उच्च न्यायालय ने प्रकरण का स्वत: संज्ञान लेकर न विभाग को तीन सदस्यीय जांच कमेटी बनाने को कहा। उसकी रिपोर्ट पर अवैध निर्माण ढहाए गए। डीएफओ व रेंजर के विरुद्ध कार्रवाई की संस्तुति की गई।
मामले ने तूल पकड़ा तो वन विभाग ने अपर प्रमुख मुख्य वन संरक्षक डा. कपिल जोशी की अध्यक्षता में जांच कमेटी गठित की। कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में पाया कि निर्माण कार्यों के लिए वित्तीय व प्रशासनिक स्वीकृति नहीं ली गई थी। इस रिपोर्ट के आधार पर तत्कालीन मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक जेएस सुहाग (अब दिवंगत), कालागढ़ के डीएफओ किशन चंद (अब सेवानिवृत्त) निलंबित हुए थे, जबकि कार्बेट के निदेशक राहुल को तब वन मुख्यालय से संबद्ध किया गया। साथ ही सभी को आरोप पत्र सौंपे गए थे। पेड़ कटान के दृष्टिगत भारतीय वन सर्वेक्षण ने अपनी जांच में पाया कि पाखरो में टाइगर सफारी के लिए 6093 पेड़ काटे गए, जबकि स्वीकृति 163 की थी। सरकार ने विजिलेंस को भी प्रकरण की जांच सौंपी, जिसने प्राथमिकी दर्ज की। फिर रेंज अधिकारी, डीएफओ को गिरफ्तार किया गया। जांच अभी चल रही है और विजिलेंस ने कुछ समय पहले ही तत्कालीन वन मंत्री डा. हरक सिह रावत से जुड़े संस्थानों से दो जेनरेटर बरामद किए थे। सुप्रीम कोर्ट की सेंट्रल इंपावर्ड कमेटी ने भी प्रकरण की जांच की।
इसमें पहली बार तत्कालीन वन मंत्री डा हरक सिंह की भूमिका पर भी प्रश्न उठाए गए। इसके अलावा नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की ओर से कराई गई जांच में भी टाइगर सफारी निर्माण में कदम-कदम पर अनियमितता की बात सामने आई। जांच रिपोर्ट में तत्कालीन वन मंत्री हरक सिंह समेत विभागीय अधिकारियों को जिम्मेदार ठहराया गया। खास बात यह है कि इस मामले में उत्तराखंड की सीबीआई पहले ही जांच कर रही है और तत्कालीन वन मंत्री हरर्क ंसह रावत से लेकर विभाग के कई आईएफएस अधिकारी भी इसकी जांच के घेरे में हैं। बड़ी बात यह है कि शासन स्तर पर वित्तीय मंजूरी दिए जाने के विषय पर भी कुछ बड़े अधिकारियों के नाम सामने आ रहे हैं। सीबीआई जांच के दौरान शासन के अधिकारी भी पूछताछ के दायरे में आ सकते हैं। कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के बफर जोन में हुए निर्माण और पेड़ कटान पर ऐसे कई फैसले हैं, जो नियम कानून के खिलाफ हुए हैं। बड़ी बात यह है कि जांच के दौरान कई ऐसे अधिकारियों के नाम भी सामने आए हैं, जिन पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है।
उधर दूसरी ओर केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क में टाइगर सफारी निर्माण मामले की जांच शुरू कर दी है। सीबीआई ने इस मामले में विजिलेंस से संबंधित दस्तावेज मांगे थे, जो उन्हें सौंप दिए गए हैं। निदेशक विजिलेंस डॉ.वी मुरुगेशन ने इसकी पुष्टि की है। अब इस मामले में सीबीआई शीघ्र संबंधित अधिकारियों से पूछताछ शुरू कर सकती है। नैनीताल हाईकोर्ट के निर्देश पर सीबीआई इस मामले की जांच कर रही है। इससे पहले कॉर्बेट में 106 हेक्टेयर में बनने वाली पाखरो टाइगर सफारी निर्माण के दौरान छह हजार से अधिक पेड़ काटे जाने अवैध निर्माण के मामले में उत्तराखंड हाईकोर्ट ने सख्त रुख अपनाया था। हाईकोर्ट ने सरकार से पूछा था कि इस मामले की केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) से जांच क्यों नहीं कराई जाए। अब तक आठ एजेंसियों की जांच में सामने आया है कि जिम कॉर्बेट में टाइगर सफारी और अन्य पर्यटक सुविधाओं के निर्माण में तमाम तरह की अनियमितताएं बरती गई हैं। संख्या से ज्यादा पेड़ तो काटे ही गए, तमाम तरह के निर्माण बिना वित्तीय और प्रशासनिक स्वीकृति के करा दिए गए। राष्ट्रीय पार्क में चाहरदीवारी और इमारतों का भी निर्माण किया गया। इस मामले में देहरादून निवासी अनु पंत ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी।
याचिकाकर्ता ने कोर्ट को बताया कि कॉर्बेट में छह हजार पेड़ों के अवैध कटान के संबंध में कई रिपोर्टें कोर्ट के सामने रखी गईं। ये सभी रिपोर्ट याचिकाकर्ता के वकील अभिजय नेगी ने कोर्ट को विस्तार से दिखाईं। इस मामले में सीबीआई सबसे पहले पाखरो सफारी निर्माण से जुड़े सेवानिवृत्त और मौजूदा वन अफसरों समेत रेंज में काम करने वाले करीब एक दर्जन वन अधिकारियों, कर्मचारियों और ठेकेदारों से पूछताछ कर सकती है। सीबीआई की जांच का मुख्य केंद्र्र ंबदु तत्कालीन वन मंत्री हरक सिंह रावत भी होंगे क्योंकि विजिलेंस और अन्य जांचों में यह बात सामने आई है कि हरक सिंह के दबाव में ही कॉर्बेट टाइगर सफारी में वित्तीय और अन्य स्वीकृतियां लिए बिना ही काम शुरू कर दिया गया था। इधर, निदेशक विजिलेंस डॉ. वी मुरुगेशन ने बताया कि सीबीआई को एफआईआर की कॉपी पहले ही सौंपी जा चुकी है। अब जो भी संबंधित साक्ष्य हैं, उन्हें सौंपा जा रहा है। सीबीआई की ओर से अब तक की जांच से संबंधित जो भी कागजात इत्यादि मांगे जाएंगे, उन्हें सौंप दिया जाएगा।
क्या है पूरा मामला
साल 2019-20 में तत्कालीन त्रिवेंद्र सरकार के कार्यकाल में कॉर्बेट नेशनल पार्क की कालागढ़ टाइगर रिजर्व प्रभाग के पाखरो में 106 हेक्टेयर वन क्षेत्र में टाइगर सफारी के निर्माण को मंजूरी मिली थी। हालांकि कुछ समय बाद ही पाखरो टाइगर सफारी पर ग्रहण लग गया और यह योजना पूरी होने से विवाद में आ गई। दरअसल, पाखरो टाइगर सफारी के निर्माण को लेकर वन विभाग के अधिकारियों पर कुछ सवाल खड़े किए गए। आरोप है कि पाखरो टाइगर सफारी के निर्माण में पर्यावरणीय मानकों को दरकिनार किया गया है और बड़े पैमाने पर पेड़ों का कटान किया गया है। सच का पता लगाने के लिए राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण की टीम ने खुद मौके पर स्थलीय निरीक्षण किया था। राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण की जांच में आरोप सही पाए गए थे। बाद में विभागीय जांच कराई गई तो उसमें भी आरोप सही पाए गए। इस मामले में तत्कालीन मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक जेएस सुहाग और कालागढ़ के तत्कालीन डीएफओ किशन चंद पर गाज गिरी थी। दोनों अधिकारियों को इस मामले में सस्पेंड किया गया था।
फिलहाल दोनों अधिकारी रिटायर हो चुके हैं। इतना ही नहीं, सुप्रीम कोर्ट के सीईसी यानी सेंट्रल इंपावर्ड कमेटी ने भी इस प्रकरण पर कड़ा रुख अपनाया था। पाखरो टाइगर सफारी में कितने पेड़ काटे गए, इसकी सही जानकारी के लिए भारतीय वन सर्वेक्षण से इलाके का सर्वे भी कराया गया था। भारतीय वन सर्वेक्षण के सर्वे में जो बात निकलकर सामने आयी, उसके मुताबिक पाखरो टाइगर सफारी के लिए 163 पेड़ों को काटने की अनुमति दी गई थी, लेकिन वहां पर 6093 पेड़ काट दिए गए। 21 अक्टूबर 2022 को एनजीटी ने पाखरो टाइगर सफारी के निर्माण पर रोक लगा दी थी। साथ ही सभी पहलुओं की जांच के लिए कमेठी भी गठित की थी। तीन सदस्यों की इस कमेठी ने मार्च 2023 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल यानी एनजीटी को करीब 128 पेज की रिपोर्ट सौंपी, जिसमें अवैध कार्यों की पूरी जानकारी दी गई। इस रिपोर्ट में वन विभाग के कुछ बड़े अधिकारियों के नाम भी दिए गए थे। साथ ही तत्कालीन वन मंत्री हरर्क ंसह रावत पर भी सवाल खडे किए गए थे।