दस्तक-विशेष

पांचों लोकसभाओं पर जीत के साथ 47 से 60 विस पर पहुंचे धामी

दस्तक ब्यूरो, देहरादून

हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में उत्तराखंड में पांच सीटों पर हैट्रिक के बाद मुख्यमंत्री धामी के सामने एक बार फिर विधानसभा की दो सीटों के उपचुनाव में प्रदर्शन दोहराने की चुनौती खड़ी हो गई है। हालांकि मुख्यमंत्री पुष्कर्र ंसह धामी समेत पार्टी हाईकमान को भी पूरा भरोसा है कि उत्तराखंड की दोनों विधानसभा सीटों पर भाजपा जबरदस्त जीत दर्ज करेगी। भाजपा ने लोकसभा चुनाव के समाप्त होते ही इस दिशा में काम भी शुरू कर दिया था। सरकार और संगठन की ओर से लगातार इस दिशा में कार्य किया जा रहा है। सीएम धामी भी जानते हैं कि उनको इन उपचुनाव में किस प्रकार की रणनीति अपनानी है और कैसे भाजपा के दोनों प्रत्याशियों को जीत मिलेगी। इस दिशा में लगातार कार्य किया जा रहा है। बताते चलें कि उत्तराखंड में बदरीनाथ और मंगलौर विधानसभा सीट खाली हुई थीं। बदरीनाथ सीट पर लोकसभा चुनाव के दौरान वहां के विधायक राजेंद्र भंडारी ने भाजपा में शामिल होते हुए विधायक पद से इस्तीफा दे दिया था। वहीं हरिद्वार की मंगलौर सीट पर बसपा प्रत्याशी सरवत करीम अंसारी के निधन के बाद खाली हुई थी। इसके बाद भाजपा ने बदरीनाथ सीट पर राजेंद्र्र ंसह भंडारी को ही टिकट दिया है, जबकि मंगलौर सीट पर करतार सिंह भड़ाना को भाजपा ने प्रत्याशी बनाया है। दोनों ही विधानसभा में 10 जुलाई को मतदान और 13 जुलाई को मतगणना होगी। भाजपा ने दोनों सीटों पर जीत के लिए लगातार रणनीति बना रही हैं। इसी क्रम में पिछले दिनों केंद्रीय राज्यमंत्री अजय टम्टा के नई दिल्ली आवास पर भाजपा के बड़े दिग्गज नेता जुटे।

इस बैठक में भाजपा के दिग्गजों ने उत्तराखंड की दो विधानसभा सीटों पर उपचुनाव, आसन्न निकाय चुनाव और उसके बाद होने वाले पंचायत चुनाव की रणनीति पर मंथन किया। बैठक में बदरीनाथ और मंगलौर विधानसभा सीट पर हो रहे उपचुनाव में खड़े प्रत्याशियों के समर्थन में रणनीतिक तरीके से प्रचार करने पर जोर दिया गया। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट ने बदरीनाथ सीट पर अभी तक की स्थिति के बारे में जानकारी दी। अब इस बार के चुनाव में भाजपा के संगठन व मुख्यमंत्री की असली परीक्षा होनी है। उनके सामने दो विधानसभा उपचुनाव के बाद निकाय चुनाव भी बड़ी चुनौती होने वाली है। हालांकि सरकार की ओर से पूरी व्यूहरचना की गई है कि वह दोनों सीटों पर भारी बहुमत से जीते। इसके साथ ही उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव का इतिहास यही रहा है कि अब तक जिस भी पार्टी की सरकार होती है, उसी पार्टी के प्रत्याशी की जीत होती है। पुष्कर्र ंसह धामी का कहना है कि भाजपा ने लोकसभा चुनाव में जिस प्रकार से पांचों सीटों पर जीत दर्ज की, उसी प्रकार उपचुनाव में भी प्रदर्शन करेंगे। वहीं दूसरी ओर विपक्षी कांग्रेस भी उपचुनाव में किसी प्रकार की हीलाहवाली करने के मूड में नहीं है। विपक्षी गठबंधन आईएनडीआईए एक बार फिर उपचुनाव में नजर आएगा। आइएनडीआइ गठबंधन में शामिल सभी दलों ने इन दोनों सीटों पर कांग्रेस प्रत्याशियों के पक्ष में प्रचार करने का निर्णय लिया है। अब बदरीनाथ तथा मंगलौर विधानसभा उपचुनाव में एकजुटता के साथ चुनाव लड़कर भाजपा की विघटनकारी नीतियों के खिलाफ मजबूती से लड़ेंगे तथा जीत दर्ज करेंगे। कांग्रेस की ओर से कहा जा रहा है कि उसने दोनों सीटों पर जमीनी कार्यकर्ता को उतारा है।

मंगलौर सीट पर आसान नहीं होगी भाजपा की राह

उत्तराखंड की 70 विधानसभाओं में से एक विधानसभा ऐसी भी है जहां भारतीय जनता पार्टी कभी भी दूसरे नंबर पर नहीं आई है। मोदी मैजिक भी इस सीट पर कभी बीजेपी की नैया पार नहीं लगा पाया। साल 2002 के बाद अस्तित्व में आई इस विधानसभा में बीजेपी हमेशा ही जीत से काफी दूर रही। इस सीट पर कभी कांग्रेस का कब्जा रहा तो कभी बहुजन समाज पार्टी ने यहां राज किया। इस बार के उपचुनाव में मंगलौर विधानसभा सीट पर भी त्रिकोणीय मुकाबला है। हरिद्वार जिले के अंतर्गत आने वाली इस लोकसभा सीट पर पहली बार अलग से चुनाव साल 2002 में हुआ। पहले यह सीट हरिद्वार के ही लक्सर विधानसभा का हिस्सा थी। इस विधानसभा के अंतर्गत उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की सीमा नारसन बॉर्डर भी आता है। उत्तर प्रदेश से सटे होने की वजह से बीजेपी ने इस बार इस सीट पर उत्तर प्रदेश से तीन बार के विधायक रहे करतार्र ंसह भड़ाना को मैदान में उतारा है। खतौली से कभी विधायक रहे करतार्र ंसह भड़ाना ने एक साल पहले बीजेपी उत्तराखंड का दामन थामा। उत्तराखंड में शायद ही ऐसी कोई विधानसभा सीट होगी जहां भाजपा तीसरे नंबर पर रहती हो, लेकिन, मंगलौर एकमात्र विधानसभा सीट ही ऐसी है, जहां पर बीजेपी लाख कोशिशों के बाद भी जीत से दूर है। भौगोलिक परिस्थितियों और माहौल के हिसाब से बीजेपी के पक्ष में यहां वोट बेहद कम पड़ता है। मंगलौर विधानसभा सीट पर इस बार कांग्रेस ने पूर्व विधायक और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता काजी निजामुद्दीन को मैदान में उतारा है, जबकि बहुजन समाज पार्टी ने स्वर्गीय शरबत करीम अंसारी के पुत्र उदेबुर्हमान को टिकट दिया है। अभी तक उत्तराखंड में उपचुनावों का इतिहास रहा है कि यहां पर जब-जब विधानसभा के उपचुनाव हुए हैं तब तब जो पार्टी सत्ता में रही है जीत उसी की हुई है। इस बार यह मिथक भी इस सीट पर तभी टूट पाएगा, जब भाजपा यहां से चुनाव जीत लेती है। उत्तराखंड में अब तक 15 उपचुनाव हुए हैं, जिसमें 14 उपचुनाव में वही पार्टी जीती है जिस पार्टी की राज्य में सरकार रही। राज्य गठन के बाद से लेकर अब तक एक ही उपचुनाव में यूकेडी के दिवंगत विधायक विपिन त्रिपाठी के पुत्र पुष्पेश त्रिपाठी चुनाव जीते हैं।

मंगलौर उपचुनाव के लिए 20 जून को बीजेपी कैंडिडेट करतार सिंह भड़ाना ने नॉमिनेशन किया। इस दौरान बीजेपी के तमाम बड़े नेता करतार सिंह भड़ाना के साथ नामांकन स्थल पहुंचे। इस दौरान बीजेपी ने ताकत दिखाने की कोशिश की, हरिद्वार से सांसद बने त्रिवेंद्र् सिंह रावत भी जमीन पर उतरकर मंगलौर उपचुनाव के लिए प्रचार कर रहे हैं। बीजेपी के तमाम विधायकों के साथ-साथ दुष्यंत गौतम भी मंगलौर में पहुंचकर जनता से रूबरू हो रहे हैं। मंगलौर उपचुनाव सीट न केवल बीजेपी के लिए बल्कि त्रिवेंद्र सिंह रावत के लिए भी कई मायनों में चुनौती भरी रहेगी। त्रिवेंद्र्र ंसह रावत हाल ही में हरिद्वार से सांसद बने हैं। ऐसे में बीजेपी को मंगलौर से जीताने की जिम्मेदारी उनके कंधों पर ही होगी। त्रिवेंद्र्र ंसह रावत लगातार इस सीट पर चुनाव प्रचार में जुटे हुए हैं। उनके साथ-साथ आसपास के तमाम विधायकों की टीम भी चुनावी कार्यक्रम में शिरकत कर रही है। राजनीतिक विश्लेषक आदेश त्यागी कहते हैं बीजेपी जानती है कि वह यह उपचुनाव तभी जीत सकती है जब कोई चमत्कार होगा। उसका सबसे बड़ा कारण यह है कि यह पूरा विधानसभा क्षेत्र मुस्लिम बाहुल्य है। अब तक का इतिहास देखने के बाद यह स्पष्ट हो जाता है कि कोई भी गैर मुस्लिम उम्मीदवार या यह कह बीजेपी का उम्मीदवार यहां से नहीं जीत पाया है। अगर बीजेपी ऐसा कर देती है तो न केवल बीजेपी के लिए बल्कि स्थानीय सांसद और मुख्यमंत्री के लिए भी यह बड़ा अचीवमेंट होगा।

आदेश त्यागी कहते हैं बीते दिनों राज्य में हल्द्वानी में जो कुछ भी हुआ या फिर यूसीसी का जिस तरह से प्रचार प्रसार कांग्रेस ने किया, उसके बाद एक विशेष समुदाय थोड़ा सा बीजेपी से दूर भी हो रहा है। यही कारण है कि कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी इस सीट पर बीजेपी से आगे दिखाई दे रहे हैं। मंगलौर विधानसभा में लगभग एक लाख 19 हजार वोटर हैं जिसमें 62 से 65 हजार मुस्लिम, लगभग 7 हजार गुर्जर, 10 हजार जाट, 18 से 20 हजार एससी वोटर इस विधानसभा में आते हैं। साल 2002 से लेकर साल 2012 तक इस सीट पर बहुजन समाज पार्टी के नेता काजी निजामुद्दीन विधायक रहे। इसके बाद साल 2012 में सरवत करीम अंसारी बहुजन समाज पार्टी के ही यहां से विधायक रहे। इसके बाद काजी निजामुद्दीन ने दल बदल कर कांग्रेस का दामन थामा। साल 2017 में वह एक बार फिर से विधायक बने। साल 2022 में हुए विधानसभा चुनाव में एक बार फिर से सरवत करीम अंसारी ने ही यहां से जीत दर्ज की। साल 2022 के चुनाव में भाजपा यहां तीसरे नंबर पर रही। बसपा पहले और कांग्रेस दूसरे नंबर पर रही। इसी तरह से साल 2017 के विधानसभा के चुनाव में भी कांग्रेस पहले और बसपा दूसरे नंबर पर रही, जबकि भाजपा तीसरे नंबर पर रही। साल 2012 के चुनाव में भी नतीजा कुछ ऐसा ही रहा।

साल 2012 के चुनाव में बहुजन समाज पार्टी पहले नंबर पर रही। कांग्रेस दूसरे और राष्ट्रीय लोक दल तीसरे नंबर पर रहा। साल 2007 के चुनाव में भी ऐसा ही हुआ। इस चुनाव में भी भाजपा चौथे नंबर पर रही। साल 2000 यानी पहली बार जब विधानसभा सीट पर चुनाव हुआ तो भाजपा तीसरे नंबर पर रही। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट कहते हैं कि ऐसा नहीं है कि राज्य में कोई सीट ऐसी है जहां बीजेपी की पहुंच न हो, हम इस बार मंगलौर की जनता को विश्वास दिलवा रहे हैं कि इस विधानसभा में हम काम करवाएंगे। हम केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं की जानकारी लोगों तक पहुंचाएंगे। उन्होंने कहा कि हमें उम्मीद है कि जनता इस बार बीजेपी उम्मीदवार को जिता कर विधानसभा में भेजेगी। मोदी-धामी की जोड़ी इस क्षेत्र का और अधिक विकास करेगी। कांग्रेस नेता हरीश रावत ने कहा कि जो लोग लोकसभा चुनाव जीतकर संविधान बदलना चाहते थे उनकी हकीकत अब देश के सामने आ गई है। यही कारण है कि बीजेपी लाख कोशिशों के बाद भी पूर्ण बहुमत नहीं मिला। उन्होंने कहा मंगलौर या बदरीनाथ उपचुनाव जीतने का जो सपना बीजेपी देख रही है उसका वो कभी पूरा नहीं होगा।

भाजपा के लिए दस विधानसभा सीटों पर अब भी चुनौती

उत्तराखंड में लोकसभा की पांच सीटों के लिए हुए चुनाव में इस बार भले ही मतदान प्रतिशत कम रहा हो, लेकिन भाजपा ने अपने विधानसभा चुनाव के प्रदर्शन में सुधार किया है। 70 सदस्यीय राज्य विधानसभा के पिछले चुनाव में पार्टी को 23 सीटों पर पराजय मिली थी, जबकि लोकसभा चुनाव में उसे केवल 10 विधानसभा क्षेत्रों में हार का सामना करना पड़ा। पार्टी के सामने अब इन विधानसभा क्षेत्रों में प्रदर्शन सुधारने की चुनौती है। इसके लिए अब नए सिरे से रणनीति तय की जाएगी। राज्य विधानसभा के वर्ष 2022 में हुए चुनाव में भाजपा ने लगातार दूसरी बार जीत दर्ज की। पार्टी ने विस की 70 में 47 सीटों पर विजय हासिल की। यद्यपि, यह संख्या वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में उसे मिली सीटों से 10 कम थी। इन सबको देखते हुए इस बार के लोकसभा चुनाव में पार्टी के सामने राज्य के सभी विधानसभा क्षेत्रों में प्रदर्शन सुधारने की चुनौती थी। इसी क्रम में उन सीटों पर अधिक ध्यान केंद्रित किया गया, जहां विस चुनाव में पार्टी को पराजय का सामना करना पड़ा था। लोकसभा चुनाव के नतीजे भाजपा के पक्ष में आने के बाद तस्वीर साफ हुई कि राज्य में 60 विस क्षेत्रों में भाजपा को जीत मिली, जबकि 10 में हार। लोस चुनाव में जिन विधानसभा क्षेत्रों में उसे हार का सामना करना पड़ा, उनमें हरिद्वार संसदीय सीट के अंतर्गत आने वाले लक्सर, भगवानपुर, झबरेड़ा, मंगलौर, पिरान कलियर व ज्वालापुर, टिहरी संसदीय सीट के अंतर्गत यमुनोत्री, पुरोला व चकराता और नैनीताल-ऊधर्म ंसह नगर संसदीय सीट का जसपुर विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं।

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