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धार भोजशाला मामले में ASI की रिपोर्ट के बाद भी फंसा पेंच, जानें क्या है वजह

धार: मध्य प्रदेश के भोजशाला मामले में 22 जुलाई को सुनवाई होनी है. सभी लोगों को हाईकोर्ट के फैसले का इंतजार है. इस पूरे प्रकरण को जितना आसान समझा जा रहा है उतना है नहीं. क्योंकि मुस्लिम पक्ष की तरफ से पहले ही दो याचिकाएं लगाई गई हैं. वहीं दूसरी तरफ सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मामले में कहा है कि सर्वे रिपोर्ट के आधार पर कोई भी कार्रवाई करने से पहले कोर्ट के संज्ञान में यह मामला लाया जाए, उसके बाद ही कोई फैसला हो. इसलिए इंदौर हाईकोर्ट भी सुप्रीम कोर्ट के डायरेक्शन का इंतजार कर रहा है.

दरअसल, धार भोजशाला मामले में मुस्लिम पक्ष का कहना है कि उनकी बात को सुने बिना ही इंदौर हाई कोर्ट ने सर्वे का ऑर्डर दे दिया. सुप्रीम कोर्ट में मुस्लिम पक्ष ने जो अपनी बात रखी है, उसमें कहा है कि साल 2003 में हिंदू पक्ष 2003 के ऑर्डर के खिलाफ कोर्ट चला गया और 2019 में जो याचिका मुस्लिम पक्ष ने लगाई थी उस याचिका को अनदेखा कर दिया गया.

इस तरह हाईकोर्ट ने याचिका सुने बिना सर्वे आर्डर जारी कर दिया. 2019 में मुस्लिम पक्ष ने जो याचिका लगाई थी, उसमें कहा गया कि धार की भोजशाला में कुछ काम गैर कानूनी तरीके से किया जा रहे हैं. आरोप लगाया गया कि यहां जो पुरातन महत्व की चीज रखी गई है वो बाद में लाकर रखी गई. इस याचिका पर भी सुनवाई अभी होना बाकी है.

इसके बाद 20 अप्रैल को धार भोजशाला प्रकरण में मुस्लिम समुदाय ने सुप्रीम कोर्ट में अवमानना याचिका दायर की. इसमें कहा गया कि पुरातत्व विभाग की ओर से जो सर्वे किया जा रहा है, उसमें गाइडलाइन को फॉलो नहीं किया जा रहा और भोजशाला में तोड़फोड़ की गई है. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने आर्कियोलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया को नोटिस जारी किया.

इस मामले में अगली तारीख तय नहीं की गई है, लेकिन इसपर भी सुनवाई होना बाकी है. इधर एएसआई ने बीते दिनों इंदौर हाईकोर्ट में 3 महीने तक किए गए सर्वे की रिपोर्ट जमा कर दी है. ऐसे में अगर अवमानना साबित हो जाती है तो ASI की ओर से प्रस्तुत की गई सर्वे रिपोर्ट संदिग्ध मानी जाएगी.

दूसरी और मुस्लिम पक्ष की ओर से जबलपुर हाईकोर्ट में भी 2004 में याचिका लगाई गई थी, जिसका निराकरण अभी नहीं हुआ है. इस याचिका में कोर्ट के 2003 के आदेश को चुनौती दिया गया था. इसके अलावा 2019 में मुस्लिम पक्ष ने एक अन्य याचिका और लगाई थी, जिसमें पूजा के लिए भोजशाला के अंदर ले जाने वाले अन्य सामान पर आपत्ति जताई गई थी.

2019 में जो याचिका लगाई गई उसके करीब 3 साल के बाद हिंदू पक्ष ने 2022 में एक अन्य याचिका दायर की, जिसमें भोजशाला को मंदिर घोषित करने की मांग की थी. इसमें यह मांग की गई कि पूजा का अधिकार पूरे दिन के लिए दिया जाए और नमाज को स्थगित कर दिया जाए. इस तरह मुस्लिम पक्ष की दो याचिकाएं फिलहाल सुनवाई के लिए पेंडिंग हैं. पूरे प्रकरण को लेकर मुस्लिम पक्ष का कहना है कि जो याचिका सुनवाई के लिए शेष हैं. उनपर अभी कोई फैसला नहीं आया है. ऐसे में 2022 की याचिका पर कोर्ट कैसे फैसला दे सकता है.

भोजशाला प्रकरण में हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस के एडवोकेट विष्णु शंकर जैन ने एक वीडियो जारी करते हुए कहा कि जो मूर्तियां वहां पर मिली हैं वह एएसआई के सर्वे के दौरान मिली है न कि पहले से रखी गई हैं. इस प्रकरण में मुस्लिम पक्ष का आरोप सरासर गलत है. उन्होंने कहा कि इंटरनेशनल कोर्ट आफ जस्टिस जाने की बात मुस्लिम पक्ष कर रहा है. लेकिन जो नियम है वह यह है कि इंटरनेशनल कोर्ट आफ जस्टिस केवल एक देश जा सकता है न की कोई व्यक्ति या संस्था विशेष. इसके अलावा हिंदू पक्ष ने भी कुछ तथ्य पेश किए हैं.

भोजशाला प्रकरण में याचिकाकर्ता आशीष गोयल ने कहा कि ASI के वैज्ञानिक सर्वे की रिपोर्ट के विरोध में किसी भी प्रकार की कोई भी याचिका अभी तक सुप्रीम कोर्ट में दाखिल नहीं की गई है. सुप्रीम कोर्ट में पूर्व से ही मामला चल रहा है. मुस्लिम पक्ष सर्वे रोकने हेतु सुप्रीम कोर्ट में याचिका पूर्व से ही लगा चुका था. इसमें पिछली बार 1 अप्रैल 2024 को सुनवाई हुई थी.

सुप्रीम कोर्ट ने एएसआई की ओर से किए गए सर्वे की रिपोर्ट पर बिना सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान के कुछ भी क्रियान्वयन करने पर रोक लगा रखी है. 1 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट की ओर से जारी नोटिस के जवाब दे दिए गए हैं. क्रियान्वयन की रोक हटाने की सुनवाई हेतु हमारे वकील विष्णु शंकर जैन ने सुप्रीम कोर्ट से निवेदन किया है. बहुत जल्द ही सुप्रीम कोर्ट में मामला पटल पर आएगा. सूचीबद्ध कर लिया गया है. हाई कोर्ट इंदौर खंडपीठ में 22 जुलाई अगली तारीख नियत है.

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