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विकलांग खिलाड़ी को नहीं जाने दिया बहरीन, दृष्टिबाधित महिला खिलाड़ी को एयरपोर्ट से वापस लौटाया

नई दिल्ली: शालिनी चौधरी की मां सरोज के आंसू थम नहीं रहे हैं। उनकी बेटी की आंखों की रोशनी बचपन में ही चली गई थी। बावजूद इसके उन्होंने शालिनी को एथलीट बनाया। शालिनी और उनकी मां रविवार की शाम तक बेहद खुश थे। आखिर उनकी बेटी को बहरीन में होने जा रहे एशियाई यूथ पैरा गेम्स में खेलने का मौका मिलने जा रहा था।

दोनों मां-बेटी राजस्थान से बहरीन जाने के लिए दिल्ली के इंदिरा गांधी एयरपोर्ट पर पहुंचे, लेकिन इमिग्रेशन की ओर से उनका वीजा को गलत ठहराते हुए उन्हें वापस लौटा दिया गया। उन्होंने पैरालंपिक कमेटी ऑफ इंडिया से लेकर आयोजकों तक से गुहार लगाई, लेकिन हल नहीं निकला। सिर्फ शालिनी ही नहीं बल्कि डिस्कस थ्रोअर विकास भाटीवाल को भी एयरपोर्ट से लौटना पड़ा।

इन खेलों में 92 सदस्यीय दल को हिस्सा लेना है। पीसीआई की ओर से वीजा के लिए आयोजकों को पासपोर्ट की प्रति काफी देर से भेजी गई, जिसमें कुछ गलतियां भी थीं। इन्हीं के हिसाब से वीजा जारी कर दिया गया। इन खेलों की आयोजन समिति से जुड़ी लतीफा बुहेजी का कहना है कि उन्हें पीसीआई से काफी देर से पासपोर्ट की प्रतियां मिली।

बावजूद इसके एक दिन के अंदर इन्हें निपटाते हुए वीजा जारी किया गया। जो सूचनाएं पीसीआई ने दी थीं उसी के आधार पर वीजा दिया गया है। वहीं पीसीआई का कहना है कि टाइपिंग के दौरान हुई गलतियों के चलते सूचनाएं गलत गई है। दोनों खिलाडिय़ों का वापस वीजा लगवाने की कोशिश की जा रही है।

शालिनी 2019 में स्विटजरलैंड में हुई अंडर-17 दृष्टिबाधित विश्व चैंपियनशिप में खेलने वाली देश की पहली महिला खिलाड़ी थीं। वह इन खेलों में भी झंडे गाडना चाहती थीं। उन्हें टी-11 वर्ग में 400, 800 मीटर में भाग लेना था। जिसमें एक गाइड ट्रैक पर उन्हें साथ लेकर चलता है और निर्देश देता रहता है। शालिनी के साथ यहां भी गाइड जा रहा था। उसका वीजा सही होने के चलते वह तो बहरीन चला गया लेकिन शालिनी यहीं रह गईं।

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