आपदा से भविष्य में खड़ा होगा ‘कृषि एवं खाद्यान्न संकट’
![कृषि संकट](https://dastaktimes.org/wp-content/uploads/2023/12/कृषि-संकट.jpg)
देहरादून (गौरव ममगाईं)। जलवायु परिवर्तन की समस्या से आज दुनिया चौतरफा मार झेल रही है। अभी तक जलवायु परिवर्तन भविष्य में आपदाओं का कारण बनता नजर आ रहा था, लेकिन अब इसके कृषि एवं खाद्यान्न पर भी बुरा असर पड़ने की हैरान करने वाली तस्वीर सामने आई है।
एग्रीकल्चर फूड आर्गेनाइजेशन (एएफओ) की ओर से एक महत्त्वपूर्ण रिपोर्ट जारी की गई है। इसके कहा गया है कि विश्व में कृषकों की संख्या तेजी से कम हो रही है। वर्ष 2000 में विश्व में कृषि में कार्य करने वाले श्रमिकों की संख्या 102.7 करोड़ थी, जो कुल श्रमबल का 40 प्रतिशत थी। जबकि, 2021 में यह संख्या घटकर 87.3 करोड़ रह गई। यह कुल श्रमबल का 27 प्रतिशत है। इसका सीधा अर्थ है कि लोग कृषि को छोड़ रहे हैं, इसकी वजह किसानों के बड़े कर्ज में होने को बताया है। इसके मूल कारण को समझें तो पता चलता है कि पैदावार न होने या कम होने के कारण किसान कर्ज में डूब रहे हैं, जिसके कारण वे कृषि छोड़ने का फैसला लेने को मजबूर हैं।
कृषि से मोहंभग होने के कारण लोग गांवों से पलायन कर रहे हैं, शहरों का रूख करते हैं। इससे शहरीकरण के रूप में दबाव देखने को मिलता है, जो कि सामाजिक एवं पर्यावरणीय दुष्प्रभावों को बढ़ावा दे रहा है।
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भारत समेत एशिया पर बुरा असरः
रिपोर्ट के अनुसार, 1991 से 2021 तक में भारत समेत एशिया में कृषि के क्षेत्र में करीब 143.13 लाख करोड़ का नुकसान होने का अनुमान है। भारत पर भी इसका बुरा असर पड़ रहा है। वहीं, अफ्रीका में भी कृषि संकट पर गहरी चिंता जताई गई है। यहां कृषि संकट का गहराना इसलिए भी चिंता का कारण है क्योंकि इस महाद्वीप में अधिकांश देश गरीब हैं। यहां कृषि संकट से भविष्य में खाद्यान्न संकट गहरानें के हालात पैदा होंगे। इससे इन देशों में खाने के दाने के लाले पड़ने की आशंका बनेगी। दुनिया में कृषि में कुल करीब 316.6 लाख करोड़ रुपये का नुकसान होने का अनुमान है। इससे पश्चिमी देश भी अछूते नहीं हैं।
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जलवायु परिवर्तन कैसे है जिम्मेदारः
कृषि पर संकट की मुख्य वजह आपदा को बताया है, जिसमें बाढ़ व सूखा के हालात शामिल हैं। हम जानते हैं कि जलवायु परिवर्तन के कारण मानसून पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जिससे मानसून कमजोर पड़ता है या मानसून आने-जाने के समय में परिवर्तन देखने को मिलता है। इससे वर्षा के काल एवं स्थानिक स्वभाव में भी बदलाव होता है। यही परिस्थिति कहीं बाढ़ तो कहीं सूखा के हालात पैदा करती हैं। इससे वर्षा आश्रित कृषि पर बुरा असर पड़ता है। इतना ही नहीं, दुनियाभर के वैज्ञानिक जलवायु परिवर्तन के कारण भविष्य में पेयजल संकट खड़ा होने का अंदेशा भी जता चुके हैं।