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सफला एकादशी 19 दिसम्बर को, नारायण के साथ करें लक्ष्मी पूजा, व्रत का मिलता है पूरा फल

नई दिल्ली : सोमवार 19 दिसंबर को पौष महीने की पहली एकादशी है। इसे सफला एकादशी कहा जाता है। कृष्ण पक्ष में आने वाली इस एकादशी का जिक्र महाभारत, पद्म, विष्णु और स्कंद पुराण में हुआ है। पौष मास की एकादशी होने से इस दिन उगते हुए सूरज की पूजा करने का विधान है। पौष महीने के स्वामी नारायण हैं। ये भगवान विष्णु का ही एक नाम है। इसलिए इस व्रत में नारायण रूप में भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। इस व्रत को करने से जल्दी ही पुण्य मिल जाता है। इसमें सुख-समृद्धि और सौभाग्य की कामना से व्रत रखा जाता है। भगवान विष्णु और लक्ष्मीजी की पूजा की जाती है। महाभारत काल में युधिष्ठिर ने इस एकादशी का व्रत किया था। साथ ही तुलसी पूजा करने का भी विधान बताया है।

इस दिन विष्णु जी की पूजा किसी भी रूप में कर सकते हैं। इनमें शालग्राम पूजा करने का विशेष महत्व बताया गया है। दस अवतारों की भी पूजा कर सकते हैं। एकादशी पर तुलसी पूजा करने से मिलने वाला पुण्य कभी खत्म नहीं होता।

इस दिन सूर्योदय से पहले उठकर नहाएं। फिर व्रत और पूजा का संकल्प लें। फिर पीले कपड़े पहनकर पीले फूल, फल और चंदन से भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। गाय के दूध से भगवान विष्णु का अभिषेक करें। फिर शंख में गंगाजल भर कर स्नान करवाएं। इसके बाद भगवान विष्णु को पीले रंग के कपड़े पहनाएं और धूप-दीप, दिखाएं। इस एकादशी पर सुबह और शाम, दोनों समय भगवान विष्णु-लक्ष्मी जी की पूजा करनी चाहिए। पूजा में पहले देवी लक्ष्मी फिर विष्णु जी का अभिषेक करना चाहिए। तुलसी-शालग्राम को शुद्ध जल चढ़ाएं। शंख में पानी और दूध भरकर अभिषेक करें। इसके बाद पंचामृत और शुद्ध जल से नहलाएं। फिर चंदन, अक्षत और फल-फूल सहित पूजन सामग्री अर्पित करें। धूप-दीप जलाएं। पूजा के बाद विष्णु जी को तुलसी पत्र जरूर चढ़ाएं। मौसमी फल और मिठाई का नैवेद्य लगाएं। इसके बाद प्रणाम करें।

सूर्योदय के बाद और सूर्यास्त के पहले तुलसी के पौधे में जल चढ़ाकर प्रणाम करना चाहिए। इसके बाद गमले के पास घी का दीपक लगाएं। फिर परिक्रमा करें। इस बात का खास ध्यान रखें कि सूर्यास्त होने के बाद तुलसी को न छूऐंं। गमले में तुलसी के पास भगवान शालग्राम की मूर्ति भी रखनी चाहिए।

हर तरह के दुख और दुर्भाग्य से मुक्ति दिलाने वाले सफला एकादशी का व्रत महाभारत काल में युधिष्ठिर ने भी किया था। श्री कृष्ण ने उन्हें एकादशी के महत्व को बताया था। मान्यता है कि श्रद्धा, विश्वास के साथ एकादशी का व्रत करने पर भगवान विष्णु शीघ्र ही अपने भक्तों पर प्रसन्न होकर उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।

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