नई दिल्ली। गेमिंग की लत की वजह से लोग अपने प्रियजनों से दूर होने लगते हैं और इसके अलावा इस लत की वजह से नींद और शारीरिक गतिविधियों में कमी की समस्या भी उत्पन्न होने लगती है।
गेमिंग की लत
हार्ट केअर फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष पद्मश्री डॉ. केके अग्रवाल ने कहा, “ऐसे लक्षणों पर आमतौर पर कम से कम 12 महीने तक निगाह रखनी चाहिए। धीरे धीरे, ऐसा व्यक्ति परिवार के सदस्यों से बातचीत कम कर देता है, क्योंकि उनमें से हरेक किसी न किसी स्क्रीन पर आंखें गड़ाये बैठे रहते हैं या किसी और उलझन में होते हैं।”
इस बारे में वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. जितेंद्र नागपाल ने कहा, “इस स्थिति से बाहर निकालने के लिए 6 से 8 सप्ताह की थेरेपी चाहिए होती है। इसके तहत, उन्हें सिखाया जाता है कि गेम खेलने, असुविधा का सामना करने और अन्य स्वस्थ मनोरंजन के साधनों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए कैसे खुद को संभालना है। अकेले बच्चे को ही ठीक नहीं किया जा सकता।”
उन्होंने कहा, “आज माता-पिता के पास पुराने समय के विपरीत, अपने बच्चों के साथ बैठने या बात करने का समय ही नहीं है। बच्चों को इस तरह के व्यसनों से रोकने के लिए पर्याप्त समय और ध्यान देना महत्वपूर्ण है। समय की कमी को उपहारों से पूरा नहीं किया जा सकता, और न ही ऐसा करना चाहिए।”
कई माता-पिता को बच्चे की इस बीमारी का तब पता चलता है जब उसकी पढ़ाई में भारी गिरावट आती है, पेशेवर जीवन में विफलता होने लगती है या सामाजिक अलगाव दिखाई देने लगता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन(डब्ल्यूएचओ) ने हाल ही में रोगों के नए अंतर्राष्ट्रीय वर्गीकरण (आईसीडी) में मानसिक स्वास्थ्य विकार के रूप में डिजिटल और वीडियो गेमिंग को एक व्यसन के रूप में वर्गीकृत किया है।