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क्या आप जानते है पूजा के बाद आरती करने का धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व, जानिए !!

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार आरती करने और आरती में शामिल होने से बहुत पुण्य लाभ मिलता है। पद्म पुराण में वर्णन है कि कुमकुम, अगर, कपूर, घृत और चन्दन की पांच या सात बत्तियां बनाकर या रुई और घी से बनी बत्तियों से आरती करनी चाहिए। आरती शंख, घंटी बजाकर करनी चाहिए। आइए, आज जानते हैं पूजा के बाद आरती करने का धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व…

आरती का धार्मिक महत्व
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार आरती ऊंचे स्वर व एक ही लय ताल में गाई  जाती है, जिससे पूरा वातावरण भक्तिमय, संगीतमय हो जाता है। यह माहौल हर स्थिति में मन को सुकून देने वाला होता है। अलग-अलग देवताओं की स्तुति के लिए अलग-अलग वाद्ययंत्रों को बजाकर गायन करने से देवी-देवता शीध्र प्रसन्न हो जाते हैं। धर्म शास्त्रों के अनुसार आरती करने वाले व्यक्ति पर ईश्वर की सदैव कृपा बनी रहती है। 

आरती करने का वैज्ञानिक महत्व
आरती के लिए प्रयोग में लाई जाने वाली रूई की बत्ती के संग घी या कपूर जब जलते हैं, तो वातावरण सुगंधित हो जाता है। जिससे आस-पास की नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होने लगता है। मंदिरों में आरती शंख ध्वनि, घंटे-घड़ियाल के साथ होती है। घंटे-नाद से कई शारीरिक कष्ट दूर होते हैं व मन की शांति के साथ-साथ नई मानसिक ऊर्जा मिलती है। अनेक शोधों से स्पष्ट हो चुका है कि घंटे और शंख से निकली ध्वनियां कई तरह के संक्रामक कीटाणुओं का नाश कर देती है।

आरती से पूर्ण होती है ईश्वर की पूजा
स्कंद पुराण में भगवान की आरती के संबंध में कहा गया है कि यदि कोई व्यक्ति मंत्र नहीं जानता हो, पूजन की विधि भी नहीं जानता हो, तो ऐसे पूजन कार्य में यदि श्रद्धा के साथ सिर्फ आरती ही कर ली जाए तो भी प्रभु उसकी पूजा को पूर्ण रूप से स्वीकार कर लेते हैं।

आरती के बाद जरूर करें ये काम
आरती के पश्चात दोनों हाथों से आरती ग्रहण करना चाहिए। ऐसा करने के पीछे माना गया है कि ईश्वर की शक्ति उस ज्योति में समा जाती है, जिसको भक्त अपने मस्तक पर ग्रहण करके धन्य हो जाते हैं। आरती वह माध्यम है, जिसके द्वारा दैवीय शक्ति को पूजन-स्थल तक पहुंचने का मार्ग मिल जाता है। 

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