उत्तर प्रदेश में स्थायी DGP को लेकर संशय बरकरार, कार्यकारी पुलिस चीफ से ही काम चलाएगी Yogi सरकार ?
लखनऊ : उत्तर प्रदेश में पुलिस विभाग का नेतृत्व एक ‘कार्यवाहक’ डीजीपी देवेश चौहान कर रहे हैं। इनके पास डीजी, इंटेलिजेंस का प्रभार भी है। स्थायी डीजीपी की नियुक्ति के मुद्दे पर कुछ दिनों पहले ही संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) ने राज्य सरकार को एक सवाल भेजा था कि यूपी सरकार ने पिछले डीजीपी मुकुल गोयल को क्यों हटाया गया। स्थायी डीजीपी के सवाल पर कोई भी अफसर बोलने को तैयार नहीं है। हालांकि सूत्रों की माने तो अगर यूपीएससी 30 सितंबर के बाद अक्टूबर में पैनल तय करने बैठती है तो देवेश चौहान भी डीजीपी की रेस से बाहर हो जाएंगे।
सीएम कार्यालय के एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी ने इस बात की पुष्टि या खंडन करने से इनकार कर दिया कि यूपीएससी के प्रश्न का उत्तर सरकार की तरफ भेजा गया है या नहीं। पुलिस सुधारों पर सुप्रीम कोर्ट के 2006 के आदेश के बाद राज्य सरकारें डीजीपी पैनल में शामिल अधिकारियों के नाम यूपीएससी को भेजने के लिए बाध्य हैं। यूपीएससी तीन नामों को चुनता है और उनमें से किसी एक का चयन करने के लिए राज्य को वापस भेजता है।
देवेश चौहान को कार्यवाहक डीजीपी बनाए जाने के बाद सरकार ने यूपीएससी को गोयल के उत्तराधिकारी के नाम भेजने की कोई तत्परता नहीं दिखाई है। सितंबर के पहले सप्ताह में सूची भेजी गई थी। सूत्रों ने बताया कि डीजीपी पद के लिए संभावित उम्मीदवारों के नाम भेजने में देरी की वजहें अपनी वजहें भी थीं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश में कहा गया है कि यूपीएससी पुलिस बल का नेतृत्व करने के लिए उनकी सेवा की अवधि, रिकॉर्ड और अनुभव की सीमा के आधार पर तीन अधिकारियों का एक पैनल बनाएगी। एक बार नौकरी के लिए चुने जाने के बाद उम्मीदवार का कम से कम दो साल का कार्यकाल होना चाहिए।
सूत्रों ने बताया कि जिन आईपीएस अधिकारियों के नाम यूपीएससी को भेजे गए थे उनमें कार्यवाहक डीजीपी देवेश चौहान, वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी आरपी सिंह, जीएल मीणा, डीजी (जेल) आनंद कुमार और अनिल अग्रवाल (प्रतिनियुक्ति पर) शामिल हैं। वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों के मुताबिक अगर यूपीएससी तीन नामों का पैनल भेजे जाने के बाद डीजीपी की नियुक्ति की तारीख से सेवानिवृत्ति से पहले छह महीने की सेवा की गणना करता है, तो संभावना है कि डीजीपी की सूची में आरपी सिंह और जीएल मीणा नहीं होंगे।