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केंद्र से फंड के अभाव में मनरेगा श्रमिकों की अटकी मजदूरी? सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से मांगा जवाब

नई दिल्ली : मनरेगा के तहत पेमेंट को लेकर लगाए गए आरोपों पर सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को सुनवाई हुई। इस दौरान अदालत ने केंद्र सराकर से फंड के अभाव वाले दावे को लेकर जवाब मांगा। दरअसल, राजनीतिक दल ‘स्वराज अभियान’ की ओर से इस मामले को लेकर SC में याचिका दायर की गई थी। इसमें केंद्र को यह सुनिश्चित करने का निर्देश देने की अपील की गई कि राज्यों के पास मनरेगा को लागू करने के लिए पर्याप्त धन हो। जस्टिस अजय रस्तोगी और अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने मामले को लेकर ग्रामीण विकास मंत्रालय (MoRD) को नोटिस जारी किया। इसमें कहा गया, ‘लाभार्थियों को उनका बकाया मिलना ही चाहिए। योजना को और अधिक व्यावहारिक व सार्थक बनाने के लिए केंद्र को अपने सुझाव देने दें।’ इसे लेकर अगली सुनवाई अब जुलाई में होगी।

अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (ASG) केएम नटराज नोटिस स्वीकार करने के लिए कोर्ट में मौजूद थे। उन्होंने आवेदन को इस तरह से पेश करने पर आपत्ति जताई जैसे कि केंद्र की ओर से इसे लेकर कुछ भी नहीं किया जा रहा है। उन्होंने अदालत को बताया कि आवेदन कार्यवाही में दायर किया गया है जिसे एससी ने 2016 में विस्तृत फैसले से निपटाया था। नटराज ने बताया कि एनजीओ की ओर से चुनिंदा रूप से पश्चिम बंगाल का उदाहरण चुना गया, जहां दिसंबर 2021 से मनरेगा के तहत एक भी पैसा आवंटित नहीं हुआ। बंगाल में 3.4 करोड़ श्रमिकों को 2762 करोड़ रुपये की मजदूरी का भुगतान नहीं किया गया है।

इस पर पीठ ने केंद्र से कहा कि हमारा किसी राज्य से कोई सरोकार नहीं है। सरकार और राजनीति को इस मामले से दूर रखा जाए। बता दें याचिका में कहा था कि देश में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम, 2005 (मनरेगा) के तहत काम करने वाले करोड़ों श्रमिकों के सामने गंभीर संकट है। उनकी बकाया मजदूरी बढ़ रही है और अधिकतर राज्यों में ऋण शेष भी बढ़ रहा है। इसमें कहा गया कि 26 नवंबर, 2021 की स्थिति के अनुसार, राज्य सरकारें 9682 करोड़ रुपये की कमी का सामना कर रही हैं। वर्ष के लिए आवंटित धन का 100 प्रतिशत वर्ष के समापन से पहले ही समाप्त हो गया है।

मनरेगा मजदूरी भुगतान पर SC के फैसले का हवाला देते हुए स्वराज अभियान ने कहा था, ‘धन की कमी का यह बहाना कानून का घोर उल्लंघन है।’ याचिका में कहा गया, ‘केंद्र सरकार को यह सुनिश्चित करने के लिए एक तंत्र स्थापित करने के लिए निर्देश जारी किए जाएं कि राज्यों के पास अगले महीने के लिए कार्यक्रम को लागू करने के वास्ते पर्याप्त धन हो। जिस महीने की मांग पिछले साल में सबसे अधिक थी, उसे आधार महीने के रूप में इस्तेमाल किया जाना चाहिए, जिसके लिए राज्य सरकार को अग्रिम रूप से न्यूनतम धन प्रदान किया जाना चाहिए।’

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