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डॉलर की मजबूती और मंदी की आशंका से सहमे एशियाई बाजार, जाने मंदी का कारण

नई दिल्‍ली. एशियाई शेयर बाजार बुधवार 28 सितंबर को भी लाल निशान में कारोबार कर रहे हैं. कई देशों के केंद्रीय बैंकों द्वारा ब्‍याज दरों में बढ़ोतरी से मांग में कमी से मंदी आने की आशंका और डॉलर मजबूत होने से निवेशक शेयर बाजार से दूर हो रहे हैं. अमेरिका में बेकाबू महंगाई, ब्रिटेन सहित लगभग बड़े यूरोपिय देशों में खराब होते आर्थिक हालात भी एशियाई बाजारों के लिए विलेन बन गए हैं. आज शुरुआती कारोबार में ही भारत सहित लगभग सभी एशियाई बाजार गिर गए हैं.

बुधवार को भारतीय शेयर बाजारों में लगातार छठे कारोबारी सत्र में गिरावट दिखी और सेंसेक्‍स खुलते ही 500 अंक टूट गया.सुबह 9.28 बजे सेंसेक्‍स 519 अंकों के नुकसान के साथ 56,589 पर ट्रेडिंग कर रहा था, जबकि निफ्टी 159 अंक टूटकर 16,871 पर पहुंच गया. जापान का निक्‍की 2.1% और दक्षिण कोरियाई शेयर बाजार 2.4% गिरकर दो साल के निचले स्तर पर आ गए हैं. चीन के हालात भी कुछ अच्‍छे नहीं है. चीनी ब्लू चिप्स 0.6% गिरा है. वहीं, अमेरिकी एसएंडपी 500 वायदा 0.8% फिसल गया है. जबकि नैस्डैक वायदा 1.0% गिरा. S&P 500 लगातार 7 सत्रों गिर रहा है.

मनीकंट्रोलकी एक रिपोर्ट के अनुसार, बढ़ती ब्‍याज दरों और और धीमी वृद्धि दर शेयर बाजारों के लिए बहुत घातक है. जापान को छोड़कर एशिया-प्रशांत शेयरों का MSCI सूचकांक 1.7% गिरकर अप्रैल 2020 के बाद से अपने सबसे निचले स्तर पर आ गया है. आज भी चीन का यूआन डॉलर के मुकाबले रिकॉर्ड लो पर चला गया है. वहीं, भारतीय रुपया भी डॉलर के मुकाबले 81.83 के रिकॉर्ड निचले स्‍तर पर चला गया है.

अमेरिकी बॉन्‍ड यील्‍ड के 4 फीसदी से ऊपर होने और अमेरिकी फेडरल रिजर्व के ब्‍याज दरों में बढ़ोतरी करने की संभावना एशियाई बाजारों को उठने नहीं दे रही है. कैपिटल इकनोमिक्‍स में ग्‍लोबल इकनोमिक्‍स के हेड जेनिफर मेककैन का कहना है कि, “अब यह स्पष्ट हो गया है कि विकसित अर्थव्‍यवस्‍थाओं के केंद्रीय बैंक अपनी ब्‍याज दरों को बढ़ाएंगे और दरें तीन दशक के उच्‍चतम स्‍तर पर होंगी. अगले साल में हमें वैश्विक मंदी दिखेगी भी और यह महसूस भी होगी. इसलिए हम कह रहे हैं कि मंदी आ रही है.” मंदी की आशंका से निवेशक बुरी तरह डरे हुए हैं.

जेपी मॉर्गन के विश्लेषकों ने एक नोट में कहा कि ब्रिटेन द्वारा अपनी आर्थिक नीतियों में बदलाव और इटली में सत्‍ता दक्षिणपंथी पार्टी के हाथ में आने से यूरोप के हालातों में फिलहाल सुधार आने की संभावना नहीं है. यूरोप में महंगाई उच्‍च स्‍तर पर है और यूरोपियन सॉवेरिन यील्‍ड भी दो साल के उच्‍च स्‍तर पर चली गई है. स्‍टर्लिंग और यूके बॉन्‍ड में गिरावट का भी नकारात्‍मक असर हो रहा है.

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