दस्तक-विशेषराजनीतिस्तम्भ

भारत की आर्थिक और सामाजिक स्थिति (सन 1980-2020) : एक विहंगावलोकन

के.एन. गोविन्दाचार्य

भाग-3

वियतनाम की तरह ब्राजील ने भी गन्ना के क्षेत्र मे अपने उत्पादन को दो धाराओं मे बाँट दिया। एक चीनी उद्योग और दूसरा एथनाल उद्योग और उनके सह उत्पाद के क्षेत्र को विकसित किया। फलतः 1990 के बाद चीनी उद्योग के क्षेत्र के ब्राजील धीरे-धीरे आगे बढ़ गया। एथनाल और चीनी उद्योग मे उत्पादन का संतुलन बाजार के हिसाब से ब्राजील ने बिठा लिया।

LPG के बारे में समझ बढे, इस हेतु सार्वजनिक प्रयास कम हुए। विदेशी प्रतिष्ठानों, कंपनियों के द्वारा तो मत निर्माण के अनेक विध प्रयास हुए। उसमे से कुछ प्रयास तत्काल प्रभावी जनों से संपर्क साधकर अनुकूल निर्णय के लिए हुए। कुछ अधिक लंबे समय मे फलदायी होते। सन् 92 से 97 का एन्रान के साथ की गई डील आँखें खोलने के लिये एक उदाहरण मात्र है।

ऊर्जा, क्षेत्र मे भारत मे कार्य करने के इरादे से सक्रिय कंपनी एनरान् थी। बिजली निर्माण के क्षेत्र में इसका कोई बड़ा, पुराना या विशेष अनुभव नही था। उन्होंने अपने बारे में अभिमत बनने, छवि निर्माण करने के मद में करोड़ों रूपये खर्च किये। यह सारा व्यय करोड़ों मे था जो निर्णय कर्ताओं, नीति नियामकों पर खर्च किया जाना था। सत्ता पक्ष, विपक्ष सभी को प्रशिक्षित करना उन्हें आवश्यक लगा होगा। वैसा ही हुआ।

धीरे-धीरे परिणाम रंग लाया। विपक्षी दलों के लोगों ने हवा बनाई हुई थी कि अगर वे सत्ता मे आयेंगे तो एनरान प्रतिष्ठान को अरब सागर मे डुबो दिया जायेगा। इससे उत्साहित होकर व्यापक स्वदेशी आंदोलनों जिसमे स्वदेशी जागरण मंच की भी हिस्सेदारी थी ने भरपूर परिश्रम किया। कुछ ने घर बार छोड़ा। कुछ ने नौकरी। परिश्रम रंग लाया। वातावरण बनाने में।

फलतः शिवसेना, भाजपा आघाडी की सरकार भी बन गई। पर एनरान यथावत् विद्यमान रहा। आंदोलन फिर चला। अब आंदोलन की उपादेयता पर सवाल उठने लगे। कई तरह की मतभेद, मनभेद भी उभरे। आंदोलन टूट गया पर अपनी छाप छोड़ गया।

आघाडी की संयुक्त सरकार बनते ही सरकार की ओर से एनरान की प्रमुख सुश्री रेबेका मार्क को पुनार्वार्ता का निमंत्रण गया। आर्थिक समझौते के कुछ पहलू पर गंभीर चर्चा चली। काउंटर गारंटी का विषय भी उठा।

इन बातों के लिये विशेषज्ञों की समिति बनी। जैसा हमेशा ऐसी स्थितियों का अनुभव है, विशेषज्ञों की समिति ने वह सब नही किया जो आंदोलनकारियों को अपेक्षित था। इन सब परिदृश्य में ताबूत की आखिरी कील था सन् 96 की 13 दिनों की सरकार के अंतिम दिन। विशेष कैबिनेट बैठक मे काउंटर गारंटी की बात मान ली गई। देश के सामान्य जन को 1993 से 1997 तक के घटनाक्रम की इतनी ही स्मृतियाँ शेष हैं। यह बात अलग है कि एनरान कंपनी की जो छवि पहले से संदिग्ध थी उसकी जांच आदि के परिणामस्वरूप कंपनी बंदप्राय हो गई। इस सारे वाकये से ऐसी विदेशी कंपनियों की नीतियों, निर्णयों को प्रभावित करने की क्षमता का कुछ अंदाज मिलता है।

उसके बाद स्व. जा. मंच महाराष्ट्र से फिर तेजस्वी रूप नही पा सका है यह एक तथ्य है। कारण मीमांसा जिसे जब करना हो, तब करे। कम लिखा है अधिक बांचना-यह पुराने लोगों की शिक्षा है।

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