पटना : तीसरी बार केंद्र में सत्तारूढ़ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की नजर अब बिहार में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव पर है। नरेंद्र मोदी के तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ के दौरान बिहार से बनाये गए आठ मंत्रियों के जरिये भाजपा ने जहां बिहार में जातीय समीकरण साधने की कोशिश की है, वहीं क्षेत्रीय संतुलन पर भी जोर दिया है। नए मंत्रिमंडल में बिहार से आठ लोगों को मंत्री बनाकर इस प्रदेश को केंद्रीय मंत्रिमंडल में बड़ी हिस्सेदारी देकर भाजपा ने साफ कर दिया है कि पीएम की नजर बिहार के विकास पर भी है।
इस मंत्रिमंडल में जिन आठ मंत्रियों को स्थान दिया गया है, उसमें चार कैबिनेट मंत्री बनाए गए हैं। जिनमें भाजपा के चार, जदयू के दो और लोजपा (रामविलास) तथा हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के एक-एक सांसद हैं इस मंत्रिमंडल में बिहार से सभी घटक दलों को स्थान दिया गया है। राष्ट्रीय लोक मोर्चा के प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा चुनाव हार गए थे।
बिहार की राजनीति में ‘सोशल इंजीनियरिंग’ के प्रभाव को नकारा नहीं जा सकता है। इस मंत्रिमंडल में भी बिहार में जातीय समीकरण का पूरा ख्याल रखा गया है। पांच मंत्री दलित, पिछड़े, अति पिछड़े वर्ग से आते हैं। इनमें पासवान जाति से चिराग पासवान, मुसहर जाति से जीतन राम मांझी, अति पिछड़ी जाति से जदयू के रामनाथ ठाकुर और भाजपा के राजभूषण चौधरी को मंत्री बनाया गया है। इसके अलावा, पिछड़े वर्ग से भाजपा के नित्यानन्द राय तथा सवर्ण जातियों में भूमिहार से गिरिराज सिंह, ललन सिंह और ब्राह्मण जाति से सतीश चंद्र दुबे को मंत्री बनाया गया है।
हालांकि राजपूत जाति से आने वाले किसी सांसद को मंत्रिमंडल में स्थान नहीं दिया गया है। मंत्री बनाने में एनडीए ने क्षेत्रीय संतुलन को भी बनाये रखने का ख्याल रखा है। उत्तर बिहार से छह मंत्री बनाये गए हैं, जबकि पूर्वी बिहार और मगध क्षेत्र से एक-एक को स्थान दिया गया है।
इससे पहले के मंत्रिमंडल में भी उत्तर बिहार को तरजीह मिली थी। ललन सिंह मुंगेर से चुनकर आए हैं, जबकि मांझी गया यानी दक्षिण बिहार से चुनकर संसद पहुंचे हैं। देखा जाय तो उत्तर बिहार में एनडीए ने बड़ी सफलता हासिल की है। सीमांचल और कोसी की तीन सीट — किशनगंज, पूर्णिया और कटिहार को छोड़ दें तो सभी सीटों पर एनडीए के प्रत्याशियों ने परचम लहराया है। ऐसे में मंत्रियों की संख्या भी उत्तर बिहार से ज्यादा देखने को मिली है।